बालोद: डौंडीलोहारा ब्लॉक के सहगांव को नई पहचान मिलने जा रही है. इसे स्थानीय भाषा में चितवा डोंगरी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां वर्षों पहले चितवा यानी चीते आया करते थे. अब उनकी आहट बंद हो गई है. सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता यहां नजर आती है. इस क्षेत्र में कई छोटी-छोटी गुफाएं और भित्ति चित्र भी बने हुए हैं. इसे संवारने के लिए वन विभाग ने बीड़ा उठाया है. अब पिकनिक स्पॉट बनाने की कवायद तेज हो गई है.
गोंदली जलाशय के विहंगम दीदार के लिए व्यू प्वाइंट है. पहाड़ियों के ऊपर से पूरा नजारा लोगों को आकर्षित करता है. अभी जिन लोगों को इस जगह के बारे में पता है. वह यहां पिकनिक मनाने के लिए जरूर आते हैं. लेकिन अधिकतर लोग इस जगह से आज भी अनजान हैं. ऐसे में वन विभाग इसे प्रदेश के कोने-कोने तक पहुंचाना चाह रहा है.
पढ़ें:लॉकडाउन में वीरान सड़क पर दिखा चीता और सांप, लोगों के उड़े होश
इस स्पॉट को संवारेगा वन विभाग
बालोद वन विभाग ने अब इसे संवारने का बीड़ा उठा लिया है. गांव से यहां तक पहुंचने के लिए पूरा रास्ता वन विभाग ने बनाया है. सात ही आसपास पेंटिंग भी कराया गया है. इसके अलावा भित्ति चित्र संवारने के लिए भी वन विभाग प्रयास कर रहा है. गुफा के सामने की जगह पर खूबसूरत फूलों की बागवानी तैयार की गई है.
बोटिंग की सुविधा होगी डेवलप
बालोद के तांदुला डैम को जिस तरह से पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप किया जाएगा. अब उसी की तर्ज पर बालोद जिले के दूसरे सबसे बड़े डैम गोंदली जलाशय में भी सुविधा देने की तैयारी हो रही है. कुछ महीनों के भीतर यहां वह सभी सुविधाएं उपलब्ध हो जाएगी.
पढ़ें: कर्नाटक: गांव में अचानक घुसा चीता, फिर क्या हुआ देखें वीडियो
गुफाओं के भीतर सुरंग होने का अनुमान
विभाग को गुफाओं के भीतर से सुरंग होने का भी अनुमान है. लेकिन आज तक कोई गुफा को अंदर से पूरी तरह नहीं देखा है. अलग-अलग छोर से गुफाओं में प्रवेश करने का रास्ता है. इससे यह अंदाजा है कि पहाड़ियों के बीचो-बीच गुफाओं से होकर सुरंग बनी हुई है.
शैल चित्र आकर्षण का केंद्र
डीएफओ सतोविशा समाजदार ने बताया कि यहां की गुफाओं की दीवार पर शैल चित्र बने हुए हैं. यह कब से हैं, इसे किसने बनाया होगा ?. इसका अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है. इसी को लेकर वन विभाग और पर्यटन मंडल संयुक्त रूप से सर्वे करवाएगी. ताकि इस कलाकारी को सहेजा जा सके. वर्षों से यह शैलचित्र चट्टानों पर बने हुए हैं, जो अमिट हैं.
इसलिए यह नाम पड़ा
बुजुर्गों के अनुसार वर्षों पहले इस जगह पर कई जंगली जानवर रहते थे. गुफाएं उन्हीं जानवरों का बसेरा हुआ करता था. इसलिए इसे चितवा डोंगरी कहा जाता है. पहले लोग यहां जाने से भी घबराते थे. लेकिन अब धीरे-धीरे लोगों की भीड़ यहां बढ़ने लगी है. लोग अब भय से नहीं बल्कि यहां की खूबसूरती देखने के लिए आते हैं. यह पिकनिट स्पॉट बन सकता है.