बालोद: साल 2002 में जब जिले में मां दंतेश्वरी सहकारी शक्कर कारखाने की नींव डाली गई तो किसानों ने इसे उम्मीदों का कारखाना माना. लेकिन जब इस कारखाने के निर्माण में सालों लग गए तो किसानों की उम्मीदें भी धुंधली होती चली गई. हालांकि 7 साल बाद 2009 को दंतेश्वरी मैया सहकारी शक्कर कारखाना शुरू किया गया. इतने सालों बाद भी सहकारी शक्कर कारखाने की व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाई है, क्योंकि शक्कर कारखाने को चलाने के लिए जो सबसे ज्यादा जरूरत है उसी की पूर्ति नहीं हो पा रही है.
दूसरे जिलों पर गन्ने की निर्भरता
कच्चे माल के रूप में गन्ने की खेती करने के लिए जिले के किसान अब भी रुचि नहीं ले रहे है. जिसकी वजह से ये कारखाना दूसरे जिलों के गन्ने पर निर्भर है. शक्कर कारखाने के लिए कच्चा माल दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, धमतरी, कवर्धा, बेमेतरा जैसे क्षेत्रों से लाया जा रहा है, जिससे इस कारखाने को लाभ कम, घाटा ज्यादा हो रहा है. प्रशासन लगातार इसकी स्थिति सुधारने की दिशा में लगा हुआ है, बावजूद इसके यहां के किसान धान की खेती को ही ज्यादा महत्व दे रहे है.
आंकड़ों में मां दंतेश्वरी सहकारी शक्कर कारखाना में शक्कर उत्पादन
साल 2009-10
- पहली पेराई सत्र की शुरुआत
- 129.84 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने की खरीदी
- 25 रुपये प्रति क्विंटल किसानों को बोनस
- 35 दिन गन्ने की पेराई
- 4074.205 टन गन्ने की पेराई
- 625 क्विंटल शक्कर का उत्पादन
- उत्पादन का प्रतिशत 4.02 रहा
साल 2010-11
- 139.12 रुपए की दर से किसानों से गन्ने की खरीदी
- 25 रुपये प्रति क्विंटल किसानों को बोनस
- 57 दिन गन्ने की पेराई
- 10370.039 टन गन्ने की पेराई
- 5620 क्विंटल शक्कर का उत्पादन
- उत्पादन का प्रतिशत 6.01 रहा
साल 2011- 2012
- 145 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने की खरीदी
- 35 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 114 दिन गन्ने की पेराई
- 74141.360 टन गन्ने की पेराई
- शक्कर का उत्पादन 52075 क्विंटल
- उत्पादन प्रतिशत रहा 7.20
साल 2012-13
- 170 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ने की खरीदी
- 35 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 80 दिन गन्ने की पेराई
- 79743.195 क्विंटल गन्ने की पेराई
- शक्कर का उत्पादन 68360 क्विंटल
- उत्पादन का प्रतिशत रहा 8.66
वर्ष 2013- 14
- 210 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीदी
- 50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 136 दिन गन्ने की पेराई
- 103931.345 टन गन्ने की पेराई
- शक्कर का उत्पादन 81332 क्विंटल
- उत्पादन का प्रतिशत रहा 7.92
वर्ष 2014- 15
- 220 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीदी
- 50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 106 दिन गन्ने की पेराई
- 75670 .53 टन गन्ने की पेराई
- शक्कर का उत्पादन 50515 क्विंटल
- उत्पादन का प्रतिशत रहा 6.79
वर्ष 2015- 16
- 230 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीदी
- 50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 93 दिन गन्ने की पेराई
- 49553- 610 क्विंटल गन्ने की पेराई
- 43151 क्विंटल शक्कर का उत्पादन
- 8.69 प्रतिशत का उत्पादन रहा
वर्ष 2016- 17
- 230 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ने की खरीदी
- 50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस
- 96 दिन गन्ने की पेराई
- 50918.30 टन गन्ने की पेराई
- 44440 क्विंटल शक्कर का उत्पादन
- 8.73 उत्पादन का प्रतिशत रहा
पानी की भी समस्या
मां दंतेश्वरी सहकारी शक्कर कारखाना के प्रबंध संचालक राजेंद्र प्रसाद राठिया ने बताया कि कारखाने में गन्ना पेराई के लिए हर रोज 1 लाख लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन भूजल की स्थिति काफी दयनीय है. जिससे कारखाने को पर्याप्त मात्रा में पानी की सप्लाई नहीं हो पाती है. जिसके चलते पानी के टैंकर लाने पड़ते है. उन्होंने बताया कि पानी के लिए कई बार बोर खनन भी हो चुका है लेकिन उसमें भी कोई सफलता हाथ नहीं लगी है.
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किसानों की परेशानी
किसानों की माने तो पिछले दिनों लगातार ब्रेक डाउन के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ी है. किसान गाड़ी किराए पर लेकर कारखाने जाते थे, लेकिन वहां तीन-चार दिन गाड़ियों की लंबी कतारें लग जाती थी, जिससे गन्ना सूखने के साथ ही वाहनों का भाड़ा भी बढ़ जाता था. इसके अलावा कारखाने में तकनीकी खराबी सुधारने में भी कभी-कभी काफी वक्त लग जाता है. जिससे भी किसान पेराई के लिए परेशान होते हैं.
हालांकि कुछ गन्ना कृषक गन्ने की खेती में रुचि लेने लगे हैं. गन्ना कृषक चंद्रेश हिरवानी ने बताया कि अब कारखाने में दिक्कत कम होती है. बीच मे ब्रेकडाउन की शिकायत आती थी, तो किसानों को परेशानी होती थी, लेकिन अब किसानों को आगे आकर गन्ने की खेती करना चाहिए. उन्होंने बताया कि यहां किसानों ने मिलकर गन्ने का रकबा अच्छा बढ़ा लिया था, जो कि अचानक अब कम होने लगा है. क्षेत्र में वॉटर लेवल कम होने लगा है, जिससे किसानों को अब गन्ने की खेती की ओर ध्यान देने की जरूरत हैं.
गन्ने का रकबा बढ़ाने की कोशिश
अब प्रशासन गन्ने का रकबा बढ़ाने के विषय पर फोकस कर रहा है. प्रबंधक ने बताया कि मशीन चाहे एक दिन चले या 6 महीने मेंटेनेंस बराबर करना पड़ता है. जितने गन्ने का अभी रकबा है उसमें मात्र एक महीने ही कारखाना चलाया जा सकता है, जिससे केवल नुकसान ही होगा. कृषि विभाग और कारखाने की संयुक्त टीम द्वारा गन्ने का रकबा बढ़ाने अब विशेष कार्ययोजना बनाई जा रही है ताकि बेहतर ढंग से कारखाने का संचालन हो सके.
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शक्कर के साथ और भी कई प्रोडेक्ट
बगास
शक्कर कारखाने में गन्ना पेराई के बाद निकलने वाले भूसे को बगास कहा जाता है. जिसका उपयोग मिल में लगी भट्टियों में ईंधन के रूप में किया जाता है. जबकि बाकी को कागज बनाने वाली कंपनियों को बेचा जाता है.
प्रेसमट
शक्कर कारखाने से दूसरे प्रोडेक्ट के रूप में प्रेसमट का निर्माण होता है. यह चूना, मीठा वेस्टेज का मिश्रण होता है. इसलिए यह एक खाद के रूप में उपयोग किया जाता है. इसे अनुदान के माध्यम से किसानों को दिया जाता है.
मोलासेस
कारखाने से सबसे अंतिम प्रोडक्ट के रूप में मोलासेस का निर्माण होता है. यह सबसे महंगा उत्पाद माना जाता है. इसका उपयोग ऐथनाल बनाने में होता है. एल्कोहल निर्माण के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है.