बालोद: तांदुला जलाशय से निकलने वाली नहर पर अंग्रेजों के जमाने में बना पुल जर्जर हो गया है. पुल की दीवारों से पानी का रिसाव हो रहा है. जिससे कभी भी बड़ा हादसा होने का खतरा मंडरा रहा है.
इसी नहर से भिलाई इस्पात संयंत्र को भी पानी दिया जाता है. अगर पुल को किसी तरह का नुकसान हुआ तो भिलाई संयंत्र को भारी नुकसान हो सकता है. यहां से हर रोज सैकड़ों गाड़ियां गुजरती है, जिससे हमेशा खतरे की आशंका बनी है. पुल के दोनों तरह सुरक्षा के लिए लगाई गई रेलिंग भी टूट चुकी है.
बेहतरीन कारीगरी और इंजीनियरिंग का उदाहरण
नहर पर जगतरा गांव के पास बना यह पुल तांदुला जलाशय के साथ ही करीब 100 साल पहले अंग्रेजों के शासन में बनाया गया था. यह पुल बेहतरीन कारीगरी और वास्तुकला का नमुना माना जाता है.
पुल निर्माण का निर्माण ऐसे किया गया है, जिसे देख कोई नहीं बता सकता है कि एक पुल के नीचे से 2 नहरें एक साथ बहती हों. जबकि पुल से 2 नहरें निकली है, इसमें एक नहर भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए जाती है.
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लापरवाही का नतीजा है पुल का जर्जर होना
अंग्रेज शासन के इंजीनियरों ने इस पुल के जरिए बेहतरीन इंजीनियरींग का उदाहरण पेश किया है, लेकिन प्रशासन ने अब तक इस प्राचीन पुल को बचाने के लिए कोई पहल नहीं की है. आज यह पुल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.