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SPECIAL: खेती के साथ-साथ राखी मेकिंग, स्वदेशी राखियां बना आत्मनिर्भर बन रहीं गांव की महिलाएं

बलरामपुर में स्वसहायता समूह की महिलाएं आकर्षक राखियां बना रही हैं. जिनसे स्वदेशी को बढ़ावा मिलने के साथ ही गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर भी बन रही हैं.

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राखी
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Published : Jul 30, 2020, 1:01 PM IST

बलरामपुर: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की सहायता से राजपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत भिलाईखुर्द की नवा अंजोर स्वसहायता समूह की महिलाएं राखी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. खेती-बाड़ी के बीच समय निकालकर गांव की महिलाएं राखी बनाकर आर्थिक तौर पर मजबूत बन रही हैं.

पढ़ें: राखी बाजार में कोरोना का साया,नहीं पहुंच रहे ग्राहक

गूगल और यूट्यूब से सीखकर बना रही राखियां

कोरोना काल में इस बार राखी का त्योहार कुछ खास है, क्योंकि इस बार राखी सिर्फ चंद धागों और डोरी से नहीं बनी है बल्कि ये बनी हैं मेहनत, लगन, विश्वास और उम्मीद से. ये उन हाथों से बनी राखियां हैं, जो राखी बनाने के साथ-साथ कई सपने भी बुनने लगते हैं. जी हां बलरामपुर के विकासखंड राजपुर के ग्राम पंचायत भिलाईखुर्द की नवा अंजोर स्वसहायता समूह की महिलाएं ऐसी ही राखियां बना रही हैं. खास बात ये है कि इन महिलाओं को ना तो प्रशिक्षण मिला और ना ही किसी ने इन्हें सिखाया. गूगल और यूट्यूब से देखकर खुद इस समूह की महिलाएं राखियां बना रही हैं. महिलाएं राखी के साथ ही खेतों में भी काम कर रही हैं और सुबह-शाम समय निकालकर राखियां बना रही हैं.

राखी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही गांव की महिलाएं

पढ़ें: गोधन न्याय योजना: यह परिवार गोबर से बना रहा खूबसूरत राखियां

चाइनीज से तौबा

कोरोना से पहले तक रक्षाबंधन के त्योहार पर हर साल चाइनीज राखियों से पूरा बाजार सज जाता था. लोग इन राखियों की काफी खरीदारी भी करते थे. कोरोना उसके बाद लॉकडाउन और उसके बाद देश में चाइनीज सामानों के बहिष्कार के लोगों के फैसले के बाद सरकार ने देशी राखियां बनाने पर जोर दिया. यही वजह है कि स्व सहायता समूह की महिलाएं अब खुद राखी बना रही हैं. राखी बनाने के लिए समूह की ये महिलाएं स्थानीय चीजों का इस्तेमाल कर सुन्दर और आकर्षक राखियां तैयार कर रही हैं.

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स्वदेशी राखियां

पढ़ें: बेमेतरा: कर्ज लेकर खरीदी राखी, विक्रेताओं ने कलेक्टर से 3 दिन दुकान खोलने की इजाजत मांगी

बाजार में देशी राखियों का क्रेज

इन राखियों की मांग अब स्थानीय स्तर पर भी बढ़ने लगी है. स्व सहायता समूह की महिलाएं कलेश्वरी और बिनिता बेक बताती हैं कि जनपद पंचायत राजपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने उन्हें राखी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. समूह में 8 महिलाएं हैं, जो 5 रुपए से लेकर 100 रुपए तक की राखियां बना रही हैं. स्वदेशी राखियों को बाजार में ज्यादा अहमियत मिलने के कारण स्थानीय व्यापारी भी राखी खरीदने इनके पास पहुंच रहे हैं. स्थानीय व्यापारी विष्णु गर्ग ने बताया कि हर साल बाहर से राखी आने पर वो व्यापार अच्छे से कर लेते थे, लेकिन इस वर्ष कोविड-19 के कारण लाॅकडाउन होने से उन्हें उम्मीद नहीं थी कि राखी का व्यापार कर पाएंगे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि गांव की महिलाएं अपने हुनर से राखी बना रही हैं, तो उन्हें भी सुनकर अच्छा लगा और अब वे यहां से राखी खरीदकर बाजार में बेच रहे हैं.

पढ़ें: SPECIAL: राखी व्यापारियों पर कोरोना की मार, टोटल लॉकडाउन से सूना पड़ा बाजार

जनपद पंचायत राजपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी महिलाओं द्वारा किए जा रहे कार्य की सराहना कर रहे हैं. उन्होंने महिलाओं को प्रशासन द्वारा हरसंभव मदद करने की बात कही है. इसके साथ ही अपने स्टाफ और अन्य शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों को भी समूह से राखी खरीदने को कहा, जिससे महिलाओं का हौसला बढ़ाया जा सके.

बलरामपुर: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की सहायता से राजपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत भिलाईखुर्द की नवा अंजोर स्वसहायता समूह की महिलाएं राखी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. खेती-बाड़ी के बीच समय निकालकर गांव की महिलाएं राखी बनाकर आर्थिक तौर पर मजबूत बन रही हैं.

पढ़ें: राखी बाजार में कोरोना का साया,नहीं पहुंच रहे ग्राहक

गूगल और यूट्यूब से सीखकर बना रही राखियां

कोरोना काल में इस बार राखी का त्योहार कुछ खास है, क्योंकि इस बार राखी सिर्फ चंद धागों और डोरी से नहीं बनी है बल्कि ये बनी हैं मेहनत, लगन, विश्वास और उम्मीद से. ये उन हाथों से बनी राखियां हैं, जो राखी बनाने के साथ-साथ कई सपने भी बुनने लगते हैं. जी हां बलरामपुर के विकासखंड राजपुर के ग्राम पंचायत भिलाईखुर्द की नवा अंजोर स्वसहायता समूह की महिलाएं ऐसी ही राखियां बना रही हैं. खास बात ये है कि इन महिलाओं को ना तो प्रशिक्षण मिला और ना ही किसी ने इन्हें सिखाया. गूगल और यूट्यूब से देखकर खुद इस समूह की महिलाएं राखियां बना रही हैं. महिलाएं राखी के साथ ही खेतों में भी काम कर रही हैं और सुबह-शाम समय निकालकर राखियां बना रही हैं.

राखी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही गांव की महिलाएं

पढ़ें: गोधन न्याय योजना: यह परिवार गोबर से बना रहा खूबसूरत राखियां

चाइनीज से तौबा

कोरोना से पहले तक रक्षाबंधन के त्योहार पर हर साल चाइनीज राखियों से पूरा बाजार सज जाता था. लोग इन राखियों की काफी खरीदारी भी करते थे. कोरोना उसके बाद लॉकडाउन और उसके बाद देश में चाइनीज सामानों के बहिष्कार के लोगों के फैसले के बाद सरकार ने देशी राखियां बनाने पर जोर दिया. यही वजह है कि स्व सहायता समूह की महिलाएं अब खुद राखी बना रही हैं. राखी बनाने के लिए समूह की ये महिलाएं स्थानीय चीजों का इस्तेमाल कर सुन्दर और आकर्षक राखियां तैयार कर रही हैं.

nava anjor self help group
स्वदेशी राखियां

पढ़ें: बेमेतरा: कर्ज लेकर खरीदी राखी, विक्रेताओं ने कलेक्टर से 3 दिन दुकान खोलने की इजाजत मांगी

बाजार में देशी राखियों का क्रेज

इन राखियों की मांग अब स्थानीय स्तर पर भी बढ़ने लगी है. स्व सहायता समूह की महिलाएं कलेश्वरी और बिनिता बेक बताती हैं कि जनपद पंचायत राजपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने उन्हें राखी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. समूह में 8 महिलाएं हैं, जो 5 रुपए से लेकर 100 रुपए तक की राखियां बना रही हैं. स्वदेशी राखियों को बाजार में ज्यादा अहमियत मिलने के कारण स्थानीय व्यापारी भी राखी खरीदने इनके पास पहुंच रहे हैं. स्थानीय व्यापारी विष्णु गर्ग ने बताया कि हर साल बाहर से राखी आने पर वो व्यापार अच्छे से कर लेते थे, लेकिन इस वर्ष कोविड-19 के कारण लाॅकडाउन होने से उन्हें उम्मीद नहीं थी कि राखी का व्यापार कर पाएंगे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि गांव की महिलाएं अपने हुनर से राखी बना रही हैं, तो उन्हें भी सुनकर अच्छा लगा और अब वे यहां से राखी खरीदकर बाजार में बेच रहे हैं.

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जनपद पंचायत राजपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी महिलाओं द्वारा किए जा रहे कार्य की सराहना कर रहे हैं. उन्होंने महिलाओं को प्रशासन द्वारा हरसंभव मदद करने की बात कही है. इसके साथ ही अपने स्टाफ और अन्य शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों को भी समूह से राखी खरीदने को कहा, जिससे महिलाओं का हौसला बढ़ाया जा सके.

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