बलरामपुर: कोरोना वायरस संक्रमण के कारण पूरे प्रदेश में अब तक स्कूल बंद हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. ग्राम पंचायत सिधमा के स्थानीय युवाओं ने मिसाल पेश करते हुए बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया और गांव में ही मोहल्ला क्लास की शुरुआत कर दी है. गांव के 3 स्थानीय युवकों ने बच्चों की पढ़ाई शुरू कराई है. बता दें तीनों ही युवा निस्वार्थ भाव से बिना तनख्वाह के बच्चों को रोज घंटों पढ़ा रहे हैं.
मार्च में बंद हुए स्कूल कब खुल सकेंगे इसकी कोई जानकारी भी नहीं है. सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई के लिए पढ़ई तुंहर दुआर और मोहल्ला क्लास जैसे विकल्पों पर जोर दिया. इसके लिए शिक्षा विभाग और शिक्षकों को जिम्मेदारी भी दी गई. लेकिन बलरामपुर जिले में ज्यादातर जगहों पर इस तरह की व्यवस्था नहीं हो सकी है. ऐसे में अपने ग्राम पंचायत के बच्चों की पढ़ाई के लिए युवकों ने जिम्मेदारी उठाई है.
3 जगहों पर चला रहे क्लास
तीनों युवक सुबह 11 बजे से रात के 8 बजे तक क्लास चलाते हैं. एक नहीं बल्कि तीन जगहों पर मोहल्ला क्लास की शुरूआत की गई है. इन क्लास के जरिए रोज 100 से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. युवाओं की इस पहल को जिले में अब एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है. बता दें यहां एलकेजी से लेकर 10वीं तक के बच्चों को मोहल्ला क्लास में पढ़ाया जा रहा है.
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बच्चों में भी उत्साह
लंबे वक्त से बच्चों की पढ़ाई बंद है. ऐसे में घर के पास ही पढ़ाई का मौका मिलने से बच्चे उत्साहित हैं. बच्चे सुबह से ही पढ़ने के लिए मोहल्ले में जमा हो जाते हैं. सभी अपने साथ घरों से टिफिन भी लेकर आते हैं. जब खाने की छुट्टी होती है तो सभी भोजन करके फिर पढ़ने बैठ जाते हैं. इस मोहल्ला क्लास में बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं दिया जा रहा है, बल्कि इनसे पेंटिंग भी कराई जा रही है. साथ ही कविता और कहानियों का ज्ञान भी दिया जा रहा है. ताकि, बच्चों का मन पढ़ाई में लगा रहे.
शिक्षक की पहल
मिडिल स्कूल के शिक्षक ऋषिकेश उपाध्याय ने गांव के युवाओं में ये जज्बा भरा है. ऋषिकेश उपाध्याय ने बताया की बच्चों की पढ़ाई ज्यादा प्रभावित न हो इसके लिए उन्होंने इसकी शुरुआत की है. उन्होंने राज्य सरकार की ओर से हुई एक वेबीनार का भी जिक्र किया. जहां से उन्हें इसकी प्रेरणा मिली थी.
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युवाओं में भी खुशी का माहौल
ग्राम पंचायत के स्थानीय युवा आज शिक्षक के तौर पर अपने ग्रामीण अंचल के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. इससे वे काफी खुश हैं. उन्होंने बताया कि वे शिक्षक बनना चाहते थे. लेकिन उन्हें कभी मौका नहीं मिल सका था. आपदा के समय उन्हें इसका लाभ मिला और वो अपना ज्ञान बांट रहे हैं. इन युवाओं को आर्थिक रूप से कुछ नहीं मिलता. लेकिन बच्चों को पढ़ाकर वे काफी खुश हैं.