बलरामपुर/प्रतापपुर: आज से पूरे देश में पोषण माह की शुरुआत हुई है. सरकार कुपोषण दूर करने के लिए न जाने कितनी ही योजनाएं संचालित कर रही है, लेकिन इसका लाभ जमीनी स्तर पर लोगों को नहीं मिल पा रहा है. राज्य सरकार ने कुपोषण मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने का सपना लिए 2019 में सुपोषण अभियान की शुरुआत बड़े ही जोर-शोर से की थी, लेकिन इसकी असलियत कुछ और ही है. कोड़ाकू जनजाति के एक मासूम ने भूख से तड़पकर दम तोड़ दिया. कुपोषण के शिकार 2 साल के बाबू की मां पहले ही गुजर चुकी थी, जिसके बाद बच्चे का पालन पोषण उसके नाना के घर पर हुआ. जहां राशन की कमी और मुफलिसी से ये परिवार जूझ रहा है.
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बलरामपुर के प्रतापपुर ब्लॉक का ग्राम पंचायत भगवानपुर केनारापारा कोड़ाकू जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है. इस जगह पर सालों से ये परिवार निवास करता आ रहा है. हैरानी की बात तो ये है कि जिन ग्रामीणों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार सारी योजनाएं बनाती हैं, वो लोगों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. सुपोषण अभियान के तहत सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में गर्म खाना उस क्षेत्र के बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन इस गांव के बच्चे को न तो गर्म खाना मिला और न ही किसी तरह की कोई स्वास्थ्य सुविधा. ये परिवार आज भी झिरिया का पानी पीकर गुजारा कर रहा है.
अधिकारी पहुंचे गांव
सरपंच की मानें तो उसने राशन कार्ड बनवाने की पूरी कोशिश की थी, ताकि इस परिवार को दो वक्त का भोजन मिल सके, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता की वजह से अब तक न तो राशन मिला और न ही सरकार की किसी और योजना का लाभ. बच्चे की मौत की खबर मिलते ही विभागीय अमला तत्काल गांव में पहुंचा और इसकी जांच में जुट गया. जिसके बाद कुछ ही देर में इस परिवार को राशन उपलब्ध हो गया. बच्चे की मौत को लेकर अनुविभागीय अधिकारी का कहना है कि सरपंच और विभाग के बीच तालमेल नहीं होने की वजह से ये परिवार सरकार की योजनाओं से वंचित रह गया है.
अधिकारी भले ही जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई की बात कह रहे हैं, लेकिन इस घटना ने सरकार के सुपोषण अभियान की पोल जरूर खोल दी है.