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बलरामपुरः धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा

जानकारों की मानें तो धान आदि की तरह यदि महुआ की खरीदी भी शासकीय दरों पर होने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगी.

धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा
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Published : May 8, 2019, 10:44 AM IST

बलरामपुरः महुआ का सीजन शुरू हो चुका है और ग्रामीण इसे चुनने में जुट गए हैं. महुआ वनांचल के लोगों का आय का एक बड़ा स्त्रोत माना जाता है. जिसके कारण अब छत्तीसगढ़ में धान की तरह महुआ की खरीदी दर बढ़ाने की मांग उठने लगी है.

धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा

इन दिनों ग्रामीण सुबह से ही इसे बीनने का काम शुरू कर देते हैं. साथ ही प्रत्येक दिन इसको सुखा कर खुले बाजारों में 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं.

सुबह से महुआ चुनने में लग जाते हैं ग्रामीण
ग्रामीण महुआ चुनने का यह काम सुबह तीन बजे से दोपहर 2 बजे तक करते हैं और बाद में इसे बाजार में औने-पौने दामों पर व्यवसायियों को बेच देते हैं. इसके बाद कारोबारी इसे ज्यादा दामों पर बाजारों में बेचते हैं.

अवैध शराब में निर्माण में आएगी कमी
जानकारों की मानें तो धान आदि की तरह यदि महुआ की खरीदी भी शासकीय दरों पर होने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगी. वहीं ग्रामीण महुआ के पेड़-पौधों को भी संरक्षित करेंगे. इसके साथ महुआ से बनने वाली अवैध शराब के निर्माण में भी कमी आएगी.

बलरामपुरः महुआ का सीजन शुरू हो चुका है और ग्रामीण इसे चुनने में जुट गए हैं. महुआ वनांचल के लोगों का आय का एक बड़ा स्त्रोत माना जाता है. जिसके कारण अब छत्तीसगढ़ में धान की तरह महुआ की खरीदी दर बढ़ाने की मांग उठने लगी है.

धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा धान की तर्ज पर महुआ खरीदी की मांग, खुले बाजार में बिचौलिए उठा रहे फायदा

इन दिनों ग्रामीण सुबह से ही इसे बीनने का काम शुरू कर देते हैं. साथ ही प्रत्येक दिन इसको सुखा कर खुले बाजारों में 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं.

सुबह से महुआ चुनने में लग जाते हैं ग्रामीण
ग्रामीण महुआ चुनने का यह काम सुबह तीन बजे से दोपहर 2 बजे तक करते हैं और बाद में इसे बाजार में औने-पौने दामों पर व्यवसायियों को बेच देते हैं. इसके बाद कारोबारी इसे ज्यादा दामों पर बाजारों में बेचते हैं.

अवैध शराब में निर्माण में आएगी कमी
जानकारों की मानें तो धान आदि की तरह यदि महुआ की खरीदी भी शासकीय दरों पर होने से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगी. वहीं ग्रामीण महुआ के पेड़-पौधों को भी संरक्षित करेंगे. इसके साथ महुआ से बनने वाली अवैध शराब के निर्माण में भी कमी आएगी.

Intro:बलरामपुर: बलरामपुुर जिले में एक अकेले महुए की फसल ही जरा सी शासकीय नीतियों में बदलाव से जिले के गरीब परिवारों की आर्थिक तस्वीर बदल सकती है और गरीबों की जिंदगी में खुशहाली ला सकती है साथ ही उनकी आर्थिक दशा में क्रांतीकारी परिवर्तन भी ला सकती है. जरूरत है तो बस धान, मक्का व तेंदूपत्ते की तरह महुवे की शासकीय खरीदी करके।
Body:बलरामपुर जिले में धान, मक्का, तेंदूपत्ता की शासकीय दर पर खरीदी यहां केे किसानों व गरीबों की आर्थिक आय का एक बड़ा जरिया है ,,,, शासकीय दर पर होने वाली खरीदी किसानों व गरीबों को आर्थिक शोषण से बचाता तो है ही साथ ही एकमुश्त आय भी प्रदान करता है. शासन की इन नितियों ने क्षेत्र की आर्थिक दशा और दिशा बदलने में एक बड़ी भूमिका निभाई है. यहाँ के लोग महुवे के सीजन में सुबह से ही घरों से बाहर आ कर महुवा बीनने का काम शुरू कर देते है साथ ही प्रत्येक दिन इन महुवे को सुखा कर खुले बाज़ारों में रोज 5 से 6 किलो 40 रुपये के हिसाब से बेच देते है,,,महुवे के फल का सीजन समाप्त होने के बाद उसके फल को भी ये ग्रामीण अपने आय का जरिया बनाते है जिसे भी ये बाजारों में खुले दामो पर बेचते है,,,
बाइट1,,,देवमणि,, ग्रामीण
बाइट2,,सुखदेव,,,, ग्रामीण
महुवे के इस मौसम में जिले के प्रायः गरीब परिवार में बूढ़े से लेकर अबोध बच्चे तक महुआ चुनने में जी-जान से भीड़ जाते हैं. महुआ चुनने का यह क्रम भोर के तीन बजे से दिन के 2-3 बजे तक बिना खाए पिए लोग महुआ चुनने में लगे रहते हैं और बाद में उसे सुखाकर खुले बाजार में औने-पौने दामों पर व्यवसायियों को बेच देते हैं. इससे उन्हें नगद राशि की तत्काल प्राप्ती हो जाती है, जो उनके रोजमर्रा की जिंदगी में जरूरतों को पूरा करने में एक बड़ी मद्दगार साबित होती है. वर्तमान में जिले में खुुले बाजारों में महुआ लगभग 30-40 रूपये की दर पर व्यवसायियों द्वारा खरीदा जा रहा है और बाद में व्यवसायियों द्वारा इसे बाहर के बाजारों में 60-70 रूपये के दर पर बेचा जा रहा है. जानकारों की माने तो महुए का एक पेड़ इस सीमा तक आर्थिक लाभ दे सकता है कि बड़े-बड़े आर्थिक वविश्लेषक भी चौक उठेंगे. महुए के एक पेड़ की औसत आयु सौ वर्ष से ऊपर होती है. एक मौसम में एक महुए का पेड़ 80-150 किलों तक फसल देता है. यही नहीं महुए का एक पेड़ तीन पीढ़ी तक फसल के सीजन में नगद आय का जरिया होता है. अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि बाजार में महुए की औसत कीमत 30 रू. प्रति किलो है तो एक महुए का पेड़ जो औसत 80 किलो महुआ एक सीजन में देता है तो जिले में लाखों पेड़ कितना नगदी राशि उगलते होंगे. यही नहीं तीन पीढ़ियों तक तीन महीने तक एक पेड़ यदि एक परिवार को इतना नगदी दे सकता है तो ये लाखों पेड़ गरीबों को सैकड़ो सालों से किस सीमा तक पालते आ रहे हैं.
बाइट3 उमाकांत पाण्डेय,,, वरिष्ट पत्रकार एवं जानकर,,
Conclusion:बहरहाल यदि धान आदि की तरह महुवे की खरीदी भी शासकीय दरों पर होने लगी तो जिले की आर्थिक तस्वीर बदलते देर नहीं लगेेगी. साथ ही गांव -गांव में हजारो की संख्या में स्वतः उग आए महुए के पेड़-पौधों को लोग देवता की तरह मानकर संरक्षित करने में लग जाएंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी यह पेड़ नगद पैसे उगलता रहेगा,, साथ ही गाँव मे महुवे से बनने वाली शराब पर भी कमी आएगी।
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