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प्यार की जीत: इश्क के लिए छोड़ा था लाल आतंक, परिवार समेत 15 साल बाद घर लौटा नक्सली कमांडर - Love victory

कहते हैं प्यार में वो ताकत है कि पत्थर को भी पिघला सकता है, फिर इंसान क्या है. प्यार ने न जाने कितनी ही बार इंसानी सरहदों को तोड़ा है. प्यार ने लोगों को इंसानियत भी सिखाया है.

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इश्क के लिए छोड़ा था लाल आतंक
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Published : Mar 14, 2021, 5:44 PM IST

बलरामपुर: मशहूर शायर गालिब कहते हैं 'मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का. उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले'. जी हां इश्क दुनिया बदल देता है. बड़े-बड़े लोगों ने प्यार की खातिर बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं. मोहब्बत ऐसी चीज है जो इंसान को बदल दे. यही बदलाव खूंखार नक्सली कमांडर गणेश (बदला हुआ नाम) की जिंदगी में आया, जब वो बलरामपुर की महुआ (बदला हुआ नाम) के प्रेम में गिरफ्तार हुआ.

परिवार समेत 15 साल बाद घर लौटा नक्सली कमांडर

स्कूल में हुआ था नक्सली कमांडर से प्यार

साल 2004 की बात है. महुआ दसवीं क्लास में थीं, उसका दिल नक्सली कमांडर गणेश पर आ गया. हथियार लेकर जंगलों में घूमने वाले नक्सली ने महुआ के साथ प्रेमयुद्ध में हथियार डाल दिए.इकरार हुआ और हिंसा का रास्ता छोड़कर गणेश ने महुआ के साथ साथ फेरे ले लिए. दोनों छत्तीसगढ़ छोड़कर असम रहने चले गए.

15 साल बाद भाई को लिखी चिट्ठी

पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान जब लोग घर लौट रहे थे तो नक्सली का दिल भी अपने घर लौटना चाहा. उसने अपने भाई गेंदलाल को चिट्ठी लिखी, जो ये मान चुका था कि गणेश इस दुनिया में है ही नहीं. लेटर में लिखे नंबर पर भाई ने कॉल किया तो उसकी बात गणेश से बात हुई.

मोहब्बत के दिन सात जन्मों के बंधन में बंधे 15 सरेंडर नक्सली जोड़े, झूमे एसपी

बेटा वायु सेना में बनना चाहता है विंग कमांडर

नक्सली कमांडर गणेश और महुआ के दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी है. बेटा असम में ही स्कूल में पढ़ता है और विंग कमांडर बनना चाहता है. 15 साल बाद नक्सली कमांडर के वापसी होने के बाद जिले के एसपी भी इस बात को कहते हैं कि आखिर इश्क की जीत हुई.

फिलहाल जेल में जुर्म की सजा काट रहा है नक्सली कमांडर

15 साल बाद एक नक्सली कमांडर की घर वापसी से भाई को उसका भाई मिल गया.गणेश फिलहाल अपने जुर्म की सजा काट रहा है. इस प्रेम कहानी ने ये साबित किया कि प्रेम से आप दुनिया जीत सकते हैं और प्रेम आपको जीत सकता है. कहते हैं कि प्यार की राहों में मंजिलें बदल जाती हैं. गणेश और महुआ की कहानी भी ऐसी ही है कि मन मिला तो जीवन बदल गया.

बलरामपुर: मशहूर शायर गालिब कहते हैं 'मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का. उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले'. जी हां इश्क दुनिया बदल देता है. बड़े-बड़े लोगों ने प्यार की खातिर बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं. मोहब्बत ऐसी चीज है जो इंसान को बदल दे. यही बदलाव खूंखार नक्सली कमांडर गणेश (बदला हुआ नाम) की जिंदगी में आया, जब वो बलरामपुर की महुआ (बदला हुआ नाम) के प्रेम में गिरफ्तार हुआ.

परिवार समेत 15 साल बाद घर लौटा नक्सली कमांडर

स्कूल में हुआ था नक्सली कमांडर से प्यार

साल 2004 की बात है. महुआ दसवीं क्लास में थीं, उसका दिल नक्सली कमांडर गणेश पर आ गया. हथियार लेकर जंगलों में घूमने वाले नक्सली ने महुआ के साथ प्रेमयुद्ध में हथियार डाल दिए.इकरार हुआ और हिंसा का रास्ता छोड़कर गणेश ने महुआ के साथ साथ फेरे ले लिए. दोनों छत्तीसगढ़ छोड़कर असम रहने चले गए.

15 साल बाद भाई को लिखी चिट्ठी

पिछले साल कोरोना महामारी के दौरान जब लोग घर लौट रहे थे तो नक्सली का दिल भी अपने घर लौटना चाहा. उसने अपने भाई गेंदलाल को चिट्ठी लिखी, जो ये मान चुका था कि गणेश इस दुनिया में है ही नहीं. लेटर में लिखे नंबर पर भाई ने कॉल किया तो उसकी बात गणेश से बात हुई.

मोहब्बत के दिन सात जन्मों के बंधन में बंधे 15 सरेंडर नक्सली जोड़े, झूमे एसपी

बेटा वायु सेना में बनना चाहता है विंग कमांडर

नक्सली कमांडर गणेश और महुआ के दो बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी है. बेटा असम में ही स्कूल में पढ़ता है और विंग कमांडर बनना चाहता है. 15 साल बाद नक्सली कमांडर के वापसी होने के बाद जिले के एसपी भी इस बात को कहते हैं कि आखिर इश्क की जीत हुई.

फिलहाल जेल में जुर्म की सजा काट रहा है नक्सली कमांडर

15 साल बाद एक नक्सली कमांडर की घर वापसी से भाई को उसका भाई मिल गया.गणेश फिलहाल अपने जुर्म की सजा काट रहा है. इस प्रेम कहानी ने ये साबित किया कि प्रेम से आप दुनिया जीत सकते हैं और प्रेम आपको जीत सकता है. कहते हैं कि प्यार की राहों में मंजिलें बदल जाती हैं. गणेश और महुआ की कहानी भी ऐसी ही है कि मन मिला तो जीवन बदल गया.

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