बलरामपुर: छत्तीसगढ़ में ऐसे अनेकों स्थान मौजूद हैं, जहां भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी रामायण काल में वनवास के दौरान आए थे. ऐसा ही एक विशेष स्थान रामचौरा पहाड़ी है जो जिला मुख्यालय बलरामपुर से करीब 16 किलोमीटर दूर एवं प्राचीन धार्मिक महत्व के स्थल तातापानी से 06 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. आज रामनवमी के दिन रामचौरा पहाड़ी पर स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पहाड़ी की चोटी पर पहुंचकर पारंपरिक रूप से पूजा-अनुष्ठान किया गया और भगवा ध्वज लगाया गया.
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वनवास के दौरान यहां आए थे भगवान राम: स्थानीय लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि यहां रामायण काल के दौरान भगवान राम और हनुमान जी आए हुए थे. रामचौरा पहाड़ी की चोटी पर भगवान राम और हनुमान जी की पूजा होती है. यहां 15 अगस्त के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
तातापानी की धरती से निकला गर्म पानी: रामचौरा पहाड़ी के संबंध में पौराणिक मान्यताएं हैं कि वनवास काल के दौरान रामचौरा पहाड़ी की चोटी से भगवान राम ने बाण चलाया था. यह बाण सीधे तातापानी में जाकर गिरा, जिस स्थान पर बाण गिरा था उस स्थान पर धरती के भीतर से चमत्कारिक रूप से गर्म पानी निकलने लगा जो लाखों वर्षों के बाद आज भी अनवरत निकल रहा है.
घने जंगलों के बीच कठिन रामचौरा पहाड़ी की चढ़ाई: रामचौरा पहाड़ी की चढ़ाई बहुत कठिन है. पहाड़ी के चारों तरफ घने जंगल है, जहां सैकड़ों पहाड़ियों की श्रृंखला है. इस श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी रामचौरा पहाड़ी है. पहाड़ी के ऊपर पहुंचने के लिए झाड़ियों की सफाई करके वैकल्पिक रास्ता बनाया गया है. स्थानीय लोगों की मांग है कि पहाड़ी के ऊपर चढ़ने के लिए बेहतर रास्ता बनाया जाए. यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को ऊपर चढ़ने के लिए सुगम मार्ग मिल सके.
पहाड़ी के नीचे मुख्य द्वार पर विराजे राम भक्त हनुमान: ग्राम रजबंधा और यहां आसपास क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान हनुमान हमारे गांव सहित आसपास क्षेत्र के रक्षक हैं. हम सभी की रक्षा करते हैं. गांव के स्थानीय लोगों द्वारा आपसी सहयोग से रामचौरा पहाड़ी के नीचे मुख्य द्वार पर भगवान हनुमान जी की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है. स्थानीय लोग विशेष अवसर पर यहां पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं. रामचौरा पहाड़ी के नीचे बड़े से तालाब का निर्माण भी कराया गया है. रामचौरा समिति के सदस्यों का कहना है कि अगर स्थानीय प्रशासन द्वारा प्राचीन स्थल को विकसित कराया जाता है तो भविष्य में यह स्थान जिले की पहचान बनेगा.