ETV Bharat / state

Worshiping Lord Ayyappa: भगवान अय्यपा की पूजा से मिलती है शनि के प्रभाव से मुक्ति, यहां करें पूजा - अय्यप्पा स्वामी की पूजा से शनि के दोषों से मुक्ति

दक्षिण भारत के सबरीमला पर्वत में विराजे भगवान अयप्पा की पूजा से शनि दोष से मुक्ति मिलती है. स्वामी अय्यपा का मंदिर छत्तीसगढ़ में भी 7 स्थानों पर है. सरगुजा में विश्रामपुर में स्वामी अय्यप्पा का मंदिर है. इस मंदिर में शनिवार को भारी भीड़ होती है. क्योंकि स्वामी अय्यप्पा को शनिश्वर यानी कि शनि ग्रह का देवता माना गया है. इसलिये अय्यप्पा स्वामी की पूजा से शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है.

Worshiping Lord Ayyappa
सबरीमला पर्वत में विराजे भगवान अयप्पा
author img

By

Published : Mar 10, 2023, 9:56 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

भगवान अय्यपा की पूजा

सरगुजा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अय्यप्पा भगवान शिव और मोहनी अवतार में भगवान विष्णु के पुत्र हैं. इनका जन्म महिषासुर की बहन महिषी के वध के लिये हुआ था. क्योंकि महिषी ने ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मौत सिर्फ शिव और विष्णु के पुत्र के हाथों ही सम्भव है. इसलिए भगवान विष्णु के मोहनी रूप और भगवान शिव का एक पुत्र हुआ, जो मणि कंठन के नाम से जाना गया. महिषी के वध के बाद भगवान शिव ने कंठन को अय्यप्पा नाम दिया. दक्षिण के एक राजा ने सबरीमला पर्वत में अयप्पा स्वामी के मंदिर की स्थापना की.

शनि से मिलती है मुक्ति: विश्रामपुर अय्यपा मंदिर समिति के उपाध्यक्ष अजय नायर बताते हैं कि "यहां अयप्पा शनिश्वर मंदिर 15 जनवरी 1984 में बना है. केरल के एक तांत्रिक थे. उनके नेतृत्व में यहां अयप्पा मंदिर की प्रतिष्ठा हुई. छत्तीसगढ़ में करीब 7 या 8 मंदिर हैं. भिलाई, कोरबा, विश्रामपुर, बिलासपुर, बालको, बस्तर, रायगढ़ और बस्तर में भी मंदिर है. सभी जानते हैं कि ये भगवान विष्णु और शंकर के पुत्र हैं. कलयुग अवतार हैं. जिनके भी शनि दोष हैं इनका दर्शन करने से पूजा करने से या, यहां निरंजना जलता है, उससे शनि दोष दूर हो जाते हैं."

यह भी पढ़ें: Papmochani Ekadashi 2023 : पापों से छुटकारा दिलाने वाली एकादशी के बारे में जानिए, इस दिन ऐसे रखें व्रत !


बाहर का प्रसाद नहीं चढ़ता: अजय नायर आगे कहते हैं "अयप्पा भगवान को प्रसाद में अलग अलग भोग चढ़ता है. यहां सुबह लाई और केले और गुड़ का भोग चढ़ता है. उसके बाद खीर का भोग, फिर लास्ट में चावल और खीर का भोग चढ़ता है. बाहर से लाया गया कोई भी प्रसाद भगवान को नहीं चढ़ता. होटल का लाया हुआ भोग नहीं चढ़ता. यहीं पर पंडित जी द्वारा बनाया गया प्रसाद का ही भगवान को भोग लगता है. अगर कोई प्रसाद भंडारा चढ़ाना चाहे, तो उसको समिति से आकर बताना होगा कि वो अपने से चढ़ाना चाहता है या मन्दिर में भी उसकी रसीद कटती है. जिसको मंदिर द्वारा बनवाया जाता है. रात में भगवान को सुलाने के लिए भजन गाया जाता है, जिसको अरुविलासरम बोलते हैं."

अय्यपा मंदिर बिश्रामपुर
अय्यपा मंदिर बिश्रामपुर



तत्वमसी का सिद्धांत, मैं भी स्वामी, तुम भी स्वामी: अजय नायर बताते हैं "शनिवार को हजारों की भीड़ होती है. काफी दूर दूर से लोग आते हैं. मध्यप्रदेश से भी लोग यहां दर्शन करने आते हैं. यहीं वो 18 सीढ़ी हैं, जिससे 41 दिन का व्रत रखने के बाद लोग इरुमणि सर पर रखकर दर्शन को जाते हैं. ये दर्शन मंडल पूजा या मकर सक्रांति के दिन ही होता है. बाकी दिनों में 18 सीढ़ी का मार्ग बंद रहता है. किनारे से दूसरी सीढ़ियों से लोग दर्शन करते हैं. व्रत के दौरान एक दूसरे को स्वामी इसलिये कहा जाता है. क्योंकि 41 दिन के व्रत में आप भी स्वामी जैसे बन जाएंगे."

भगवान अय्यपा की पूजा

सरगुजा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अय्यप्पा भगवान शिव और मोहनी अवतार में भगवान विष्णु के पुत्र हैं. इनका जन्म महिषासुर की बहन महिषी के वध के लिये हुआ था. क्योंकि महिषी ने ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मौत सिर्फ शिव और विष्णु के पुत्र के हाथों ही सम्भव है. इसलिए भगवान विष्णु के मोहनी रूप और भगवान शिव का एक पुत्र हुआ, जो मणि कंठन के नाम से जाना गया. महिषी के वध के बाद भगवान शिव ने कंठन को अय्यप्पा नाम दिया. दक्षिण के एक राजा ने सबरीमला पर्वत में अयप्पा स्वामी के मंदिर की स्थापना की.

शनि से मिलती है मुक्ति: विश्रामपुर अय्यपा मंदिर समिति के उपाध्यक्ष अजय नायर बताते हैं कि "यहां अयप्पा शनिश्वर मंदिर 15 जनवरी 1984 में बना है. केरल के एक तांत्रिक थे. उनके नेतृत्व में यहां अयप्पा मंदिर की प्रतिष्ठा हुई. छत्तीसगढ़ में करीब 7 या 8 मंदिर हैं. भिलाई, कोरबा, विश्रामपुर, बिलासपुर, बालको, बस्तर, रायगढ़ और बस्तर में भी मंदिर है. सभी जानते हैं कि ये भगवान विष्णु और शंकर के पुत्र हैं. कलयुग अवतार हैं. जिनके भी शनि दोष हैं इनका दर्शन करने से पूजा करने से या, यहां निरंजना जलता है, उससे शनि दोष दूर हो जाते हैं."

यह भी पढ़ें: Papmochani Ekadashi 2023 : पापों से छुटकारा दिलाने वाली एकादशी के बारे में जानिए, इस दिन ऐसे रखें व्रत !


बाहर का प्रसाद नहीं चढ़ता: अजय नायर आगे कहते हैं "अयप्पा भगवान को प्रसाद में अलग अलग भोग चढ़ता है. यहां सुबह लाई और केले और गुड़ का भोग चढ़ता है. उसके बाद खीर का भोग, फिर लास्ट में चावल और खीर का भोग चढ़ता है. बाहर से लाया गया कोई भी प्रसाद भगवान को नहीं चढ़ता. होटल का लाया हुआ भोग नहीं चढ़ता. यहीं पर पंडित जी द्वारा बनाया गया प्रसाद का ही भगवान को भोग लगता है. अगर कोई प्रसाद भंडारा चढ़ाना चाहे, तो उसको समिति से आकर बताना होगा कि वो अपने से चढ़ाना चाहता है या मन्दिर में भी उसकी रसीद कटती है. जिसको मंदिर द्वारा बनवाया जाता है. रात में भगवान को सुलाने के लिए भजन गाया जाता है, जिसको अरुविलासरम बोलते हैं."

अय्यपा मंदिर बिश्रामपुर
अय्यपा मंदिर बिश्रामपुर



तत्वमसी का सिद्धांत, मैं भी स्वामी, तुम भी स्वामी: अजय नायर बताते हैं "शनिवार को हजारों की भीड़ होती है. काफी दूर दूर से लोग आते हैं. मध्यप्रदेश से भी लोग यहां दर्शन करने आते हैं. यहीं वो 18 सीढ़ी हैं, जिससे 41 दिन का व्रत रखने के बाद लोग इरुमणि सर पर रखकर दर्शन को जाते हैं. ये दर्शन मंडल पूजा या मकर सक्रांति के दिन ही होता है. बाकी दिनों में 18 सीढ़ी का मार्ग बंद रहता है. किनारे से दूसरी सीढ़ियों से लोग दर्शन करते हैं. व्रत के दौरान एक दूसरे को स्वामी इसलिये कहा जाता है. क्योंकि 41 दिन के व्रत में आप भी स्वामी जैसे बन जाएंगे."

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.