सरगुजा: साहित्यकार श्याम कश्यप 'बेचैन' ने 74 वर्ष की उम्र में देश भर के मंचों पर अपनी रचनाओं से श्रोताओं का मन मोहा है. बीतते वक्त के साथ इन्होंने गजल गीत के साथ कुछ कविताएं हास्य पर भी लिखीं. देश के लगभग हर ख्यातिलब्ध कवियों के साथ कवि सम्मेलनों में मंच साझा कर चुके श्याम साहित्य के पतन (decline of literature) से नाराज हैं. कवि सम्मेलनों के बदलते स्वरूप से खिन्न हैं. मंचों पर हिंदी, उर्दू की कविताओं और मुशायरों की जगह हास्य और व्यंग (humor and satire) ने ली है.
जिसे श्याम कश्यप साहित्य का पतन मानते हैं. हमने इनसे बातचीत की और गीत-गजल के माध्यम से ही श्याम जी ने अपनी बातें रख दीं. स्टैंडअप कॉमेडी, कविताओं के बदलते स्वरूप के खिलाफ हैं. इनका मानना है कि मूल कविताएं अब नहीं रहीं. उनकी जगह फूहड़ता ने ले ली है. लोग जिसमें ठहाके लगाएं, या धार्मिक उन्माद (religious frenzy) में बह जायें, ऐसी रचनाओं का बोल-बाला हो चुका है. सबसे दिलचस्प बात यह रही कि श्याम कश्यप ने अपने नाम के आगे बेचैन क्यों लिखा? इस सवाल का बड़ा ही मजेदार जवाब उन्होंने दिया.
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ताउम्र रहती है बेचैनी
श्याम कश्यप ने कहा कि इस दुनिया में जिसने भी जन्म लिया वह बेचैन है और ये बेचैनी ताउम्र रहती है. जब तक जिंदगी है, तब तक बेचैनी है. हर कोई बेचैन है. इसलिए उन्होंने अपने नाम के बाद बेचैन लगा दिया. मशहूर टीवी शो वाह-वाह क्या बात है में बतौर गेस्ट श्याम कश्यप पहुंचे थे. वहां भी उन्होंने अपनी रचनाओं से लोगों को वाह-वाह कहने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि अब उम्र काफी अधिक हो चुकी है. लिहाजा श्याम कश्यप अब मंचों पर ज्यादा प्रोग्राम (program) नहीं करते. लेकिन आज भी गीत और गज़ल को पेश करने का उनका अंदाज वही है. आज भी इन्हें सुनकर आप कह पड़ेंगे, वाह-वाह क्या बात है.