अंबिकापुर: सरगुजा रियासत के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंहदेव ने भारतीय गणराज्य में विलय के लिये सबसे पहले सहमती दी और उनकी ओर से उनके पुत्र और राजा अम्बिकेश्वर शरण सिंहदेव ने संधि में हस्ताक्षर किये. इसके साथ ही एक एक करके 562 रियासतों ने डोमिनियन ऑफ इंडिया की प्रभुता स्वीकार की लेकिन 3 रियासतें शामिल नहीं हो रही थी. जिनमे काश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद शामिल थे. जब काश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला कर दिया तब वहां के राजा ने भारत की सत्ता स्वयं स्वीकार कर ली. जूनागढ़ में जनता के विद्रोह के कारण भारत ने उसे मिलाया और हैदराबाद पर सैनिक कार्रवाई कर उसे डोमिनियन ऑफ इंडिया का हिस्सा बनाया गया.
3 रियासतों ने चुनी थी अलग सत्ता: इस सम्बंध में सरगुजा के इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं "31 दिसंबर 1947 तक भारत मे सभी 562 रियासते अस्तित्व में थी. 1 जनवरी 1948 से भारत संघ बना, जिसमें ये रियासते मर्ज हो गई. एक दो रियासत वालों ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाना चाहा जैसे जम्मू एंड काश्मीर, जूनागढ़, हैदराबाद के निजाम हुए. लेकिन उन्हें सरेंडर करना पड़ा. जब भारत आजाद हुआ और भारत के विलीनीकरण की बात हो रही थी."
सबको मिलाने के लिये की थी पहल: "यहां के अधिकारियों के सामने 562 रियासतों को मिलाने में खतरा नजर आ रहा था. कहीं बगावत ना हो जाये. तब महाराज रामानुज शरण सिंहदेव के बहुत अच्छे संबंध डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से, पट्टाभी सीता रामैया से, सुभाष चंद्र बोस से, कांग्रेसियों से थे. जब सरदार पटेल ने महाराज से सम्पर्क किया तो तब रियासत पर कैसे काम किया जाए हम लोगों की सोंच ये है. महाराज बोले बिल्कुल सही सोच है. भारत का एक राष्ट्र के रूप में उदय हो. मैं सबसे पहले शुरुआत करता हूँ, ताकि मैं दूसरों के लिए नजीर बन सकूं."
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अम्बिकेश्वर शरण सिंहदेव ने किए हस्ताक्षर: "पहले महाराजा थे 562 रियासतों में. जिन्होंने वहीं पर डिक्लेयर कर दिया था कि भारत संघ में विलीनीकरण की स्वीकारोक्ति दी थी. संधि में हस्ताक्षर करने के लिए महाराज रामानुज शरण सिंहदेव ने महाराज अम्बिकेश्वर शरण सिंहदेव को भेजा. उस समय वो युवराज थे, उन्होंने पवार ऑफ अटॉर्नी उनको देकर संधि करने भेजा, जो मध्यप्रदेश के पूर्व चीफ सेक्रेटरी एमएस सिंहदेव के पिता और छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के दादा थे."
बुजुर्गों से भी सुनी थी मर्जर की कहानी: मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी हरिशंकर अवस्थी बताते हैं कि "उनके पिता स्वर्गीय सुंदर लाल अवस्थी ने उनसे यह वृतांत बताया था. हरिशंकर अवस्थी सरगुजा के ही रहने हैं लेकिन कुछ वर्षों से इंदौर में ही शिफ्ट हो चुके हैं. हरिशंकर अवस्थी कहते हैं कि पिता जी और अन्य बुजुर्गों से सुना करते थे कि जब सभी रियासतों को एक करने और देश का निर्माण करने की प्रक्रिया की जानी थी तो सबसे पहले सरगुजा स्टेट के महाराज ने अपनी ओर से इसकी शुरुआत की थी, और सबसे पहले सरगुजा रियासत का विलय डोमिनियन आफ इंडिया में हुआ था."
स्टर्न स्टेट एजेंसी में थे 40 सदस्य: वर्तमान में रियासती नियमों और संधि के अनुसार सरगुजा महाराज और छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने बताया "इसके लिये अलग अलग एजेंसियों को जिम्मेदारी दी गई थी. इस्टर्न स्टेट एजेंसी थी. वेस्टर्न स्टेट एजेंसी अलग थी, जिसमें गुजरात वगैरह उधर की रियासतें थी वो शामिल थी. ईस्टर्न स्टेट एजेंसी में जो वर्तमान में राजकुमार कालेज है. छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड यहां की जो रियासतें थी. इसके 40 सदस्य थे. तो उनमें सरगुजा ने पहले से सहमति दी थी. और 1 जनवरी 1948 को ये संधि साइन हुई थी. तो 1 जनवरी 1948 को सरगुजा रियासत का डोमिनियन ऑफ इंडिया में विलय हुआ था.