सरगुजा: विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा और पंडो ग्रामीणों का जीवन सुधारने के लिए विशेष पहल की जा रही है. डाइटीशियन पंडो और पहाड़ी कोरवा ग्रामीणों को पौष्टिक भोजन के बारे में जागरुक कर रहे हैं.इसका बेहतर परिणाम देखने को भी मिल रहा है.
सुधर रहा है जीवन स्तर: पंडो और पहाड़ी कोरवा ग्रामीणों में खान पान को लेकर जागरुकता देखी जा रही है. फिर भी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य करने की जरूरत है. सरगुजा के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा और पंडो ग्रामीण निवास करते हैं. ग्रामीणों की जीवनशैली और खान पान ऐसा है कि वे कुपोषण, सिकलसेल जैसी बीमारियों से ग्रसित होते हैं. इसके साथ ही अपने खान पान के कारण वे कई बार डायरिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं.
इलाज की क्या व्यवस्था है: शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्तपाल में पंडो और पहाड़ी कोरवा ग्रामीणों को उपचार के लिए भर्ती कराया जाता है.अस्पताल में आने वाले पंडो और पहाड़ी कोरवा ग्रामीणों के उपचार के दौरान अस्पताल आहार पोषण विभाग में पदस्थ डाइटीशियन सुमन सिंह उनके भोजन और खान पान का विशेष अध्ययन करती हैं.
"पहाड़ी कोरवा व पंडो ग्रामीण बहुत ही सीमित संसाधन में अपना जीवन यापन करते हैं. अगर उनके खान पान की बात करें तो उनके आस पास पौष्टिक आहारों की उपलब्धता है, लेकिन आहार से संबंधित जानकारी के कारण वे उन्हें अपने जीवन शैली में शामिल नहीं करते हैं, वे ज्यादातर आसानी से बनने वाले भोजन खाते हैं और इनमें से ज्यादातर भोजन नुकसान दायक होते हैं. अस्पताल में कुपोषित माताएं, बच्चे बड़ी संख्या में भर्ती होते हैं. इनमें ज्यादातर सिकलसेल, कुपोषण की समस्या होती है. इसके साथ ही जंगली मशरूम व कई दिनों पुराने भोजन खाने से डायरिया जैसी बीमारी के मरीज भी अस्पताल आते हैं." सुमन सिंह, डाइटीशियन, शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्तपाल
बीमारी की जानकारी: अस्पताल आने वाले मरीजों में महिलाओं, बच्चों के पेट फूले हुए होते हैं, जबकि हाथ पैर कमजोर होते हैं. ऐसे मरीजों को अस्पताल में भोजन आहार की जानकारी प्रदान करने के साथ ही उनकी काउंसिलिंग कर पौष्टिक आहार सेवन करने के लिए जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है, और इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है. अस्पताल में आने वाले विशेष संरक्षित जनजाति के मरीज पुनः अस्पताल आकर अपनी दिनचर्या और सेहत की जानकारी देते हैं लेकिन अभी इस दिशा में बड़े पैमाने पर कार्य किए जाने की आवश्यकता है.
अब तक अस्पताल में लगभग 15 हजार पंडो, पहाड़ी कोरवा ग्रामीणों की काउंसिलिंग की जा चुकी है. काउंसिलिंग के दौरान यह बात सामने आई कि पहाड़ी कोरवा व पंडो जनजाति के ग्रामीण जंगली मशरूम, खुखड़ी का सेवन करते हैं. वे कई दिनों पहले बने हुए चावल को अपने आहार में शामिल करते हैं. इसके साथ ही कई ऐसे पदार्थों का सेवन करते हैं, जो उनके लिए हानिकारक है. यही वजह है कि विशेष संरक्षित जनजाति के बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास में कमी देखी गई है.