सरगुजा: अब तक आपने कई तरह के सत्याग्रह देखे होंगे. महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से लेकर अन्ना हजारे तक के आंदोलन को आपने देखा और सुना होगा. हालांकि छत्तीसगढ़ का एक समाजसेवी समाज कल्याण के लिए जूते चप्पल पहनना छोड़ कर नंगे पांव सत्याग्रह पर निकल पड़ा है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं सरगुजा के रहने वाले राजेश सिंह सिसोदिया की, जिन्होंने सात साल पहले अपना सत्याग्रह खत्म कर चप्पल पहनना शुरू किया. हालांकि अब एक बार फिर उन्होंने चप्पल जूते उतार समाज कल्याण के लिए सत्याग्रह का संकल्प लिया है.
पहले तीन बार समाज कल्याण के लिए किया सत्याग्रह: राजेश सिंह सिसोदिया पहले भी 3 बार नंगे पैर सत्याग्रह कर चुके हैं. समाज कल्याण के लिए 17 सालों में 3 चरण में उन्होंने सत्याग्रह किया. 12 मार्च 1999 को सबसे पहले सबकी शिक्षा, एक सी शिक्षा, बाल मजदूरी, मानदेय बढ़ाने की मांग इन्होंने की थी. बाल वैश्यावृत्ति के खिलाफ भी इन्होंने नंगे पैर सत्याग्रह किया. फिर साल 2001 में बचपन बचाओ आंदोलन से ये जुड़े. कैलाश सत्यार्थी के साथ मध्यप्रदेश के स्टेट कोऑर्डिनेटर भी इनके साथ थे. कुछ दिन बाद इनसे अलग होकर राजेश ने एक अलग संगठन बनाया, जिसका नाम नंगे पैर सत्याग्रह रखा गया. बाल आयोग की स्थापना, मानव अधिकार शिक्षा लागू करने की मांग संगठन की ओर से की गई. फिर साल 2004 में मानव अधिकार संगठन से ये जुड़े. साल 2008 में भ्रष्टाचार के मामलों को उठाया और 14 अप्रैल 2016 को सत्याग्रह खत्म कर इन्होंने चप्पल जूता पहनना शुरू किया.
फिर शुरू किया नंगे पांव सत्याग्रह: अब एक बार फिर राजेश सिंह नंगे पांव सत्याग्रह कर रहे हैं. इस बार ये सत्याग्रह कई मांगों को लेकर कर रहे हैं. पहले के 17 साल में राजेश सिंह सिसोदिया 24 घंटे नंगे पैर रहते थे, लेकिन इस बार इन्होंने सत्याग्रह में थोड़ा बदलाव किया है. अपने स्वास्थ्य को देखते हुए सुबह मॉर्निंग वॉक के समय कुछ घंटे राजेश जूते पहनेंगे.
शिक्षा से जुड़ी है इनकी मांग : इनकी मांग है कि छत्तीसगढ़ में अमीरों के लिए बड़ी बड़ी शिक्षण संस्थाएं है. तो दूसरी तरफ गरीब बच्चों के नसीब में शिक्षक विहीन सरकारी स्कूल. एक तरफ राजशाही कॉलेज है, तो दूसरी तरफ अबूझमाड़ और बलरामपुर में सामरीपाठ का सरकारी स्कूल. दोहरी शिक्षा प्रणाली के कारण आने वाले समय में हम दो तरह के छत्तीसगढ़ देखेंगे. इसलिए ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जाए, जिसमें महंगे स्कूलों को लोग खुद छोड़ दें.
भू माफियावाद के खिलाफ छेड़ी मुहिम (satyagraha against corruption and land mafia) :भू अभिलेख अधिनियम के प्रावधानों के तहत हर 30 साल में भूमि का पुर्नव्यवस्थापन होना चाहिए. लेकिन सरगुजा जिले में यह ना तो 1973 में हुआ और ना ही 2013 में हुआ. सरगुजा में पहला भू व्यवस्थापन 1943 में हुआ था. इसके दुष्परिणाम राजस्व विभाग में भ्रष्टाचार और भू-माफियावाद के रूप में देखने को मिल रहा है.
मंत्रियों के स्टाफ की संपत्ति की हो जांच:राजेश सिंह सिसोदिया ने ईटीवी से बातचीत के दौरान कहा, " सरगुजा संभाग के मंत्रियों के निजी स्टाफ में संलग्न कर्मचारियों की अनुपातहीन संपत्ति और नगदी की जांच की जाए. सरगुजा संभाग के मंत्रियों के निजी स्टाफ की संपत्ति बेतहाशा बढ़ने का उन्होंने आरोप लगाया. मंत्री अमरजीत भगत के साथ अटैच शिक्षक के जमीन हड़पने वाले कारनामे सबके सामने आए हैं. अन्य अधिकारी डॉक्टर फ्रंकलीन टोप्पो माननीय लोक आयोग छत्तीसगढ़ में शासकीय राशि के गबन में दोषी पाये गये हैं. इस मामले में मंत्रियों के स्टाफ के संपत्तियों की जांच हो."
टीएस बाबा के निजी स्टॉफ में अटैच आनंद सागर सिंह, जो कि शासकीय सेवा में भाजपा शासनकाल के दौरान पिछले दरवाजे से दाखिल हुए थे. इन्होंने साढ़े चार सालों में अनुपातहीन आर्थिक प्रगति की है. महंगी कारों के साथ रायपुर के सिग्नेचर मैगनेटो कॉलोनी में आलीशान महलनुमा भवन के मालिक भी बने. विनोद गुप्ता- सहायक ग्रेड 2 शिक्षा विभाग शासकीय सेवा में आने से पहले, ये पूंजीपति पृष्ठभूमि के भी नहीं थे.आज की तारीख में इनके पास महंगी गाड़ियां हैं. अम्बिकापुर और रायपुर में महलनुमा मकानों के साथ कई जमीनें हैं. -राजेश सिंह सिसोदिया, समाजसेवी
हमर हसदेव क्षेत्र में सिसोदिया ने कई व्यवस्थाएं करने की मांग की है. हसदेव क्षेत्र के गांव हरिहरपुर, फतेहपुर, घाटबरी, साल्ही और परसा का औद्योगीकरण तो हुआ, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इक्कीस सरकारी स्कूल और अदानी की ओर से संचालित एक स्कूल है. कुल मिलाकर स्थिति संतोषजनक है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं शून्य की स्थिति में हैं. सरकार और अदानी प्रबंधन दोनों ने स्वास्थ्य सुविधाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया. इनकी मांग है कि सभी राजनैतिक दलों ने गरीबों को प्राथमिकता देने की बात आजादी के बाद से आज तक की है. लेकिन कभी गरीबी लोगों को नेतृत्व नहीं दिया. जिसके कारण बड़े कार्यक्रमों के बाद भी गरीबी उन्मूलन की नीतियां विफल रहीं है.