सरगुजा: मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है. दूर-दूर से सैलानी यहां घूमने आते हैं. यहां के अद्भुत नजारे को एक झलक देखने की लालसा हर किसी सैलानी के मन में रहती है. ये सब इसलिए होता है क्योंकि यहां बहुत कुछ अजीब है, सुंदर प्राकृतिक मनोरम पहाड़ियों के बीच बसे इस क्षेत्र में कहीं पानी उल्टा बहता है, तो कहीं गाड़ी उल्टी चलती है और कहीं जमीन स्पंज की तरह दबती है. ETV भारत आपको एक ऐसी जगह लेकर जा रहा है, जिसे देखने के बाद आप भी कहेंगे कि अजब है लेकिन गजब है मैनपाट.
यहां स्पंज की तरह है जमीन
सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से 45 किलोमीटर दूर ऊंचे पहाड़ पर बसे मैनपाट के दलदली में जमीन गद्दे की तरह उछलती है. ऐसा लगता है मानो ये कोई जम्पिंग लैंड हो. दलदली की जमीन पर पैर रखते ही यहां जमीन किसी स्पंज की तरह धंसने लगती है. सैलानी इस जमीन पर खूब उछलते हैं और एन्जॉय करते हैं.
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ETV भारत की पड़ताल
ETV भारत ने इस उछलती हुई जमीन के रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास किया. हालांकि इस पर अब तक कोई वैज्ञानिक रिसर्च नहीं हो सका है. लेकिन स्थानीय रिसर्चर और विज्ञान के जानकार श्रीस मिश्र ने इस जगह पर निजी अध्ययन किया है. उन्होंने ETV भारत पर अपने अनुभव के आधार पर इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश की.
'ज्वालामुखी उद्गम का द्वार है दलदली'
दलदली के जंपिंग लैंड के बारे में श्रीस मिश्र ने बताया कि ये जगह ज्वालामुखी उद्गम का द्वार है. मिश्र का कहना है कि यहां कई ऐसे संकेत मिलते हैं जो इस क्षेत्र को ज्वालामुखी उद्गम का द्वार साबित करते हैं. वे बताते हैं कि दलदली छोटा नागपुर पठार का हिस्सा है और छोटा नागपुर पठार ज्वालामुखी पठार है. मैनपाट में बहुत सी ऐसी चीजें मिलती हैं जो इसे ज्वालामुखी के पठार से जोड़ती हैं.
किसी समय में दलदली में था दलदल
अपने रिसर्च में इन्होंने पाया की ज्वालामुखी के क्रेटर में जिस तरह की स्थिति रहती है, ठीक उसी तरह की स्थिति मैनपाट के दलदली में है. आम तौर पर ज्वालामुखी का क्रेटर 300 मीटर का माना जाता है. दलदली का भी औसतन व्यास 300 मीटर ही है. इसके अलावा इसके आसपास की जमीन पर अलग-अलग रंग की मिट्टियों का मिलना भी इसी की तरफ इशारा करता है. दलदली से कुछ ही दूरी पर स्थित जलप्रपात में गर्म लावा बहने से बनी चट्टानें भी मिली हैं. इस तरह के संकेत ये बताते हैं कि दलदली में ज्वालामुखी का क्रेटर था. जहां एक बड़ा दलदल था, समय के साथ इसमे हजारों जानवरों के फंसने और पेड़, पौधों सहित मिट्टी के पटाव से यह जमीन दलदल के ऊपर बनी मिट्टी और दूब (एक प्रकार की घास) की वजह से ऊपर से कठोर हो गई, लेकिन इसके नीचे दबे दलदल की वजह से यह जम्पिंग लैंड बन चुकी है, जो अब सैलानियों को लुभाने का काम करती है.
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मैनपाट में ही प्रकृति के कई अद्भुत रहस्य
ETV भारत ने मैनपाट के संबंध में पहले भी उल्टा पानी जैसे रहस्य के बारे में बताया कि यहां भी ऑप्टिकल इल्यूजन की वजह से होता है, भूगोल के जानकार ने भी यह आशंका व्यक्त करते हुए बताया था कि ये ज्वालामुखी से निर्मित पठार है और ज्वालामुखी से निर्मित पठार में ऐसी असामान्य घटनाएं होती हैं.
विज्ञान और भूगोल के अपने तथ्य और तर्क हैं, जिसकी सहायता से काफी हद तक इस रहस्य को समझा जा सकता है. लेकिन सरकार को इसकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता साबित करने की दिशा में काम करने की जरूरत है. फिलहाल तो यह कौतूहल का विषय बना हुआ है और सैलानियों के मनोरंजन का बेहतर विकल्प भी. जिस वजह से मैनपाट पर्यटन मानचित्र पर अपना स्थान मजबूत करता जा रहा है.