सरगुजा : देश में माउंटेन मैन के नाम से मशहूर दशरथ मांझी ने अकेले ही पहाड़ का सीना चीरकर सड़क बना दी थी, जो लोगों के लिए आज भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं. ऐसी ही एक कहानी सरगुजा के कदनाई गांव की भी है, जहां के लोग आने वाले दिनों में किसी मिसाल से कम नहीं होंगे और यहां का हर एक आदमी 'मांझी' कहलाएगा. ये हम नहीं कह रहे हैं, ये उनका काम कह रहा है. ये कहानी भी दशरथ मांझी की कहानी से कम नहीं है.
कदनाई गांव के सभी 'मांझी' ने आपस में मिलकर लगभग 2 किलोमाटर की सड़क बना डाली. सड़क बनाने के लिए यहां का हर एक व्यक्ति 'मांझी' बनने को तैयार हो गया और खुद फावड़ा, तगाड़ी और छेनी उठाकर सड़क बनाने के लिए निकल पड़े. यह गांव सालों से सड़क की बाट जोह रहा था.
इस सड़क के बनते ही लोगों को न बारिश की मार झेलनी पड़ेगी और न ही नदी, नाले पार करने पड़ेंगे. साथ ही 60 किलोमीटर की जगह 20 किलोमीटर का ही सफर तय कर अंबिकापुर पहुंच जाएंगे.
पढ़े क्या कह रहे 'मांझी'
- उन्होनें ये कदम खुद क्यों उठाया. इस पर उनका जवाब था कि अंबिकापुर से गांव की दूरी 60 किलोमीटर है. साथ ही रास्ते में नदी नाले भी हैं, जो मुख्यालय से इन्हें अलग कर देते थे पर अब सड़क बनने पर उनकी डगर आसान हो जाएगी.
- जब उनसे पूछा गया कि प्रशासन से मदद क्यों नहीं ली, तो उनका जवाब था 'कई बार वे मांग कर चुके हैं, यहां अधिकारी आ भी चुके हैं पर वे जनसंख्या कम होने का हवाला देकर सड़क नापकर चले गए.
- गांव के सरंपच से इस संबंध में पूछा गया कि वे खुद सरपंच होकर प्रशासन से मदद दिलाने के बजाए खुद फावड़ा क्यों उठा लिए. इसके जवाब में उनका कहना है कि उनकी मांग पर कई बार अधिकारी-कर्मचारी मीटर लेकर आए, लेकिन अब तक सड़क नहीं बनी. लिहाजा वो भी ग्रामीणों के साथ मिलकर सड़क बनाने में जुट गए हैं.
मंत्री अमरजीत ने नहीं किया गांव का दौरा
- इस पूरे मामले में खाद्य मंत्री और स्थानीय विधायक अमरजीत भगत का जवाब हैरान कर देने वाला था. क्योंकि भगत इस क्षेत्र से 4 बार के विधायक रहे हैं पर पुल और सड़क नहीं होने से वे खुद कदनई तक नहीं पहुंच पाते थे.
- मंत्रीजी के मुताबिक अब वो सरकार में हैं और अगले बजट में वो इस गांव की तकदीर बदलने का दावा भी कर रहें है.
बहरहाल, अब ये देखना होगा कि ये दावा भी चुनावी वादों की तरह फुस्स न हो जाए और कदनई के लोगों की तरह ही विकास की मार झेल रहे हर गांव के लोगों को मांझी न बनना पड़े.