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छत्तीसगढ़ में पहली बार शुरू हुआ पीएचसी में सिकलसेल का इलाज

छत्तीसगढ़ में पहली बार सिकलसेल बीमारी का इलाज पीएचसी सेंटर में शुरू किया गया है. सरगुजा के पीएचसी से इसकी शुरुआत हुई है.

Sickle cell treatment started in PHC of surguja
पीएचसी में सिकलसेल का इलाज
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Published : Feb 23, 2022, 10:23 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुज़ा : सिकलसेल की बीमारी छत्तीसगढ़ के लिये एक बड़ा अभिशाप है. लेकिन अब तक इस दिशा में सरकारों ने कोई खास पहल नहीं की है. लेकिन अब अम्बिकापुर के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सिकलसेल के निवारण का काम शुरू किया गया है. अब इसे पूरे प्रदेश में शुरू किया जायेगा. सिकलसेल की बीमारी को जड़ से उखाड़ने के लिये 3 चरणों मे काम करने की योजना बनाई गई है. रेड क्रॉस सोसायटी सरगुज़ा के सहयोग से स्वास्थ्य विभाग इसे नवापारा शहरी स्वास्थ्य केंद्र में शुरू कर चुका है.

पीएचसी में सिकलसेल का इलाज

सिकलसेल से छत्तीसगढ़ की दस फीसदी आबादी प्रभावित
दरअसल सिकलसेल से प्रदेश की 10% आबादी प्रभावित है. मतलब लगभग 30 लाख लोग सिकलसेल की बीमारी से ग्रसित हैं. इनमें ज्यादातर बिना लक्षण वाले हैं. वहीं बीमार लोगों के 2% लोगों में गंभीर लक्षण हैं. जिन्हें हर महीने अपना ब्लड बदलवाने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में खून देने वाले लोगों के सामने भी ये एक बड़ी समस्सया के रूप में है. लेकिन अब हाइड्रोक्सी यूरिया नामक दवाई के इस्तेमाल से सिकलसेल के मरीज को हर महीने लगने वाला खून 7 से 8 महीने में लगेगा और मरीज के लक्षणों में भी सुधार हो सकेगा.

विश्व सिकलसेल दिवस: जन्म कुंडली मिलाने के साथ 'सिकल कुंडली' मिलाना भी जरूरी

डॉक्टरों को दी जा रही ट्रेनिंग

लेकिन इस दवाई का स्तेमाल आसान नहीं है इसलिए संगवारी के डॉक्टरों की टीम शासकीय डॉक्टरों को प्रशिक्षण दे रही है. वहीं अगले चरण में सिकलसेल के जांच की प्रकिया की जाएगी. क्योंकि अभी तक जो जांच प्रदेश में होती है वो काफी नहीं है और इसकी जांच की पद्धति बेहद महंगी थी. लेकिन हालही में सिकलसेल की जांच के लिए टेस्ट किट आ गई है. जिससे अब स्वास्थ्य विभाग एंटीजेन टेस्ट की तरह सिकलसेल की भी जांच कर सकेगा. तीसरे चरण में स्वास्थ्य विभाग पहले लोगों का इलाज कर उनका भरोसा जीतेगा उसके बाद सामाजिक रूप से इसे रोकने में लोगों की मदद लेगा.

प्वाइंट ऑफ केयर जांच तकनीक: अब 10 मिनट में आ जाएगी सिकलसेल जांच की रिपोर्ट

कैसे फैलती है सिकलसेल बीमारी ?

क्योंकि सिकलसेल एक से दूसरे में तभी फैलता है जब दो सिकलसेल के मरीज आपस से विवाह कर लें तो उनसे होने वाली संतान सिकलसेल की बीमारी से ग्रसित हो जाती है. अगर पति, पत्नी दोनों में से किसी एक को भी सिकलिंग नहीं है तो आने वाली नस्ल को भी सिकलिंग की समस्या नहीं होगी. इसलिए सिकलसेल कुंडली के मिलान की अनिवार्यता समाज मे लाने के लिये सामाजिक जागरूकता की जरूरत होगी और कुछ दिनों बाद स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में भी काम शुरू करेगा.



क्या होता है सिकलसेल
असल मे हमारे ब्लड में जो सेल्स होते हैं वो गोल होते हैं और इन सेल्स का सिकल यानी की (हंसिये) के आकर में बदलना सिकलसेल कहलाता है, जब ब्लड सेल हँसिये के जैसे हो जाते हैं जो रक्त खराब भी होने लगता है, और शरीर मे विभिन्न प्रकार की दिक्कतें शुरु हो जाती है, किसी का चेहरा सूज जाता है तो किसी को किसी अन्य प्रकार की समस्या होती है, लेकिन इसका सीधा सबंध शरीर के अंदर दौड़ने वाले रक्त से होता है, और हाइड्रोक्सी यूरिया नामक दवाई जो इन ब्लड सेल को दोबारा हँसिये से गोल आकर का बनने में मदद करता है, और मरीजों को राहत मिलती है।

सरगुज़ा : सिकलसेल की बीमारी छत्तीसगढ़ के लिये एक बड़ा अभिशाप है. लेकिन अब तक इस दिशा में सरकारों ने कोई खास पहल नहीं की है. लेकिन अब अम्बिकापुर के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सिकलसेल के निवारण का काम शुरू किया गया है. अब इसे पूरे प्रदेश में शुरू किया जायेगा. सिकलसेल की बीमारी को जड़ से उखाड़ने के लिये 3 चरणों मे काम करने की योजना बनाई गई है. रेड क्रॉस सोसायटी सरगुज़ा के सहयोग से स्वास्थ्य विभाग इसे नवापारा शहरी स्वास्थ्य केंद्र में शुरू कर चुका है.

पीएचसी में सिकलसेल का इलाज

सिकलसेल से छत्तीसगढ़ की दस फीसदी आबादी प्रभावित
दरअसल सिकलसेल से प्रदेश की 10% आबादी प्रभावित है. मतलब लगभग 30 लाख लोग सिकलसेल की बीमारी से ग्रसित हैं. इनमें ज्यादातर बिना लक्षण वाले हैं. वहीं बीमार लोगों के 2% लोगों में गंभीर लक्षण हैं. जिन्हें हर महीने अपना ब्लड बदलवाने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में खून देने वाले लोगों के सामने भी ये एक बड़ी समस्सया के रूप में है. लेकिन अब हाइड्रोक्सी यूरिया नामक दवाई के इस्तेमाल से सिकलसेल के मरीज को हर महीने लगने वाला खून 7 से 8 महीने में लगेगा और मरीज के लक्षणों में भी सुधार हो सकेगा.

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डॉक्टरों को दी जा रही ट्रेनिंग

लेकिन इस दवाई का स्तेमाल आसान नहीं है इसलिए संगवारी के डॉक्टरों की टीम शासकीय डॉक्टरों को प्रशिक्षण दे रही है. वहीं अगले चरण में सिकलसेल के जांच की प्रकिया की जाएगी. क्योंकि अभी तक जो जांच प्रदेश में होती है वो काफी नहीं है और इसकी जांच की पद्धति बेहद महंगी थी. लेकिन हालही में सिकलसेल की जांच के लिए टेस्ट किट आ गई है. जिससे अब स्वास्थ्य विभाग एंटीजेन टेस्ट की तरह सिकलसेल की भी जांच कर सकेगा. तीसरे चरण में स्वास्थ्य विभाग पहले लोगों का इलाज कर उनका भरोसा जीतेगा उसके बाद सामाजिक रूप से इसे रोकने में लोगों की मदद लेगा.

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कैसे फैलती है सिकलसेल बीमारी ?

क्योंकि सिकलसेल एक से दूसरे में तभी फैलता है जब दो सिकलसेल के मरीज आपस से विवाह कर लें तो उनसे होने वाली संतान सिकलसेल की बीमारी से ग्रसित हो जाती है. अगर पति, पत्नी दोनों में से किसी एक को भी सिकलिंग नहीं है तो आने वाली नस्ल को भी सिकलिंग की समस्या नहीं होगी. इसलिए सिकलसेल कुंडली के मिलान की अनिवार्यता समाज मे लाने के लिये सामाजिक जागरूकता की जरूरत होगी और कुछ दिनों बाद स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में भी काम शुरू करेगा.



क्या होता है सिकलसेल
असल मे हमारे ब्लड में जो सेल्स होते हैं वो गोल होते हैं और इन सेल्स का सिकल यानी की (हंसिये) के आकर में बदलना सिकलसेल कहलाता है, जब ब्लड सेल हँसिये के जैसे हो जाते हैं जो रक्त खराब भी होने लगता है, और शरीर मे विभिन्न प्रकार की दिक्कतें शुरु हो जाती है, किसी का चेहरा सूज जाता है तो किसी को किसी अन्य प्रकार की समस्या होती है, लेकिन इसका सीधा सबंध शरीर के अंदर दौड़ने वाले रक्त से होता है, और हाइड्रोक्सी यूरिया नामक दवाई जो इन ब्लड सेल को दोबारा हँसिये से गोल आकर का बनने में मदद करता है, और मरीजों को राहत मिलती है।

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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