अंबिकापुर: छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में मौजूद ये मजार तकिया शरीफ के नाम से मशहूर है. यहां की खासियत यह है कि यहां बाबा मोहब्बत शाह की मजार के साथ ही उनके तोते की भी मजार है.
मोहब्बत शाह के साथ है तोते की मजार
यहां आने वाले जायरीनों में जितनी शिद्दत मोहब्बत शाह के लिए है उतनी ही आस्था उनके तोते के लिए भी है. यहां आने वाले जायरीन बाबा के साथ-साथ उनके तोते की मजार में भी चादर चढ़ाते हैं.
हर संप्रदाय के लोग टेकते हैं मात्था
बाबा का रसूक इतना है कि यहां आने वाले श्रद्धालु जात-पात धर्म- संप्रदाय भूलकर एक साथ उनकी इबादत करते हैं. यहां हर साल उर्स मनाया जाता है जिसमें हर समुदाय के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. यह मज़ार छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी मज़ार है. साल 1951 में जब उन्होनें झोपड़ी नुमा मज़ार के स्थान पर इमारत बनाने की शुरुआत की तो खुदाई के दौरान मज़ार की ज़मीन से राख निकलने लगी. कई फीट तक खुदाई करने के बाद जब राख निकलने का सिलसिला नहीं थमा तो रख की ढेर पर ही इसकी तामीर रखी गई. यह किसी अजूबे के कम नहीं कि मजार की बुनियाद राख पर रखी गई है और अर्से बाद भी वो सलामत है. वे बताते हैं कि मज़ार की ज़मीन से मिले साक्ष्यों के आधार पर यह मालूम होता है कि यह सूफी सिलसिले के मदारी संप्रदाय से संबंधित है.
मजार की दीवार से सटा है मंदिर
इसी मज़ार की दीवार से सटा एक मंदिर भी है जिसे स्थानीय बोली में नकट्टी देवी का मंदिर कहा जाता है. अब्दुल रशीद सिद्दीकी बताते हैं कि यह कोरवा जनजाति का पहला और एकमात्र मंदिर है. इस मंदिर में मुसलमान और हिन्दू दोनों ही धर्म से जुड़े लोग समान आस्था रखते हैं.
खाली नहीं लौटती किसी की झोली
यहां इबादत के लिए आने वाले लोग बताते हैं मुरादशाह वली के दर पर आने वाला कोई इंसान खाली हाथ नही लौटता. क्या हिन्दू क्या मुसलमान सब अपनी अपनी मन्नत लिए तकिया शरीफ की दर पर माथा टेकटे हैं सरगुज़ा ही नहीं आस पास के जिले और बिहार-झारखंड जैसे राज्यों से भी यहां लोग अपनी मुरादें लेकर यहां पहुंचते हैं. अब इसे आस्था की ताकत कहें या विश्वास की ताकत लेकिन यहां आने वाले ज्यादातर लोगों का कहना है कि बाबा ने उनकी झोली कभी कभी खाली नहीं रखी.
जुड़ी हैं कई किवदंती
इस मज़ार से जुड़ी क्षेत्र में किवदंती है कि 600 साल पहले सरगुजा रियासत के राजा रघुनाथ शरण सिंहदेव की कोई संतान नहीं थी. समय से संतान नहीं होने पर राजा ने तकिया शरीफ की मज़ार में मन्नत मांगी कि, अगर उनके वंश को आगे बढ़ाने के लिए बेटे का जन्म हुआ तो वो मज़ार में अहाता का निर्माण कराएंगे.
मानवता की डोर बनी मजार
मन्नत मांगने के लिए कुछ वक्त बाद ही रानी को बेटा हुआ. इसके बाद राजा ने मन्नत के अनुसार यहां अहाते का निर्माण कराया,जिसके अवशेष आज भी यहां देखे जा सकते हैं. तकिया शरीफ की मजार मानवता को बांधे रखने में एक डोर का काम कर रही है. यहां आने वाले लोग न जात देखते न धर्म बस आस्था के साथ मुरादे लेकर बाबा के पास आते हैं और झोली भरकर खुशी-खुशी चले जाते हैं.