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छत्तीसगढ़ में पहली बार वनांचल में शुरू हुई संस्कृत की शिक्षा - विधायक चिंतामणि महाराज

छत्तीसगढ़ में पहली बार वनांचल में संस्कृत की शिक्षा शुरू हुई. ट्राइबल्स को संस्कृत के माध्यम से संस्कृति सिखाई जा रही है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

sanskrit education vananchal in chhattisgarh
वनांचल में संस्कृत की शिक्षा
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Published : Aug 20, 2022, 9:37 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: वनों से आच्छादित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में 1965 में संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी गई थी. यह पहला मौका था जब छत्तीसगढ़ में संस्कृत की शिक्षा शुरू की गई. सामरबार में बने आश्रम में संत गहिरागुरू ने इसकी स्थापना की थी. आज संस्कृत के 10 स्कूल और 2 कॉलेज संचालित हैं. जिनमे करीब 11 सौ बच्चे संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शुरू हुई संस्कृत की शिक्षा

यह भी पढ़ें: सारंगढ़ विधायक उत्तरी गणपत जांगड़े पर भगवान कृष्ण के अपमान का आरोप, बीजेपी ने खोला मोर्चा

समाज सुधार था लक्ष्य: सरगुजा आदिवासी बाहुल्य संभाग है. यहां रहने वाले लोग मांस मदिरा के सेवन में अधिक लिप्त रहते थे. सनातन धर्म की पूजा पद्धति और जीवन शैली से दूर थे. धार्मिक अनुष्ठान के लिये यहां पंडित भी अन्य प्रदेशों से बुलवाये जाते रहे हैं. ऐसे में सरगुजा के एक समाज सुधारक ने संस्कृत के प्रसार का बीड़ा उठाया. संत गहिरा गुरु ने संभाग भर में आश्रम बनाये. संस्कृत स्कूल खोला और लोगों को मांस मदिरा से दूर कर समाज सुधारने का काम किया.

बड़े बेटे ने संभाली विरासत: अब संत गहिरागुरू के दोनों बेटे उनकी विरासत को संभाल रहे हैं. बड़े बेटे बभ्रुवाहन सिंह पूरी तरह अपना जीवन आश्रम को समर्पित कर चुके हैं. दूसरे बेटे चिंतामणि महाराज जो राजनीति में सक्रिय हैं. वर्तमान में सामरी विधानसभा से विधायक और संसदीय सचिव हैं. इस क्षेत्र में संत गहिरागुरू के लाखों अनुयायी हैं. जो आज भी उनके विचारों को लेकर समाज सुधार में लगे रहते हैं. सरगुजा में नशा मुक्ति का अभियान छेड़ने वाली माता राज मोहनी देवी भी इन्ही से प्रेरित थीं.

पूजा पाठ के लिए नहीं थे ब्राम्हण: हमने विधायक चिंतामणि महाराज से बातचीत की. उन्होंने बताया कि "संस्कृत महाविद्यालय को जब पिता ने 1965 में स्थापित किये. उनके मन में तब ये धरना हुई. जब एक बार उनको पूजन के लिये पंडित की जरूरत थी. लेकिन वहां कोई ब्राम्हण था नहीं, उस समय कुछ ब्राम्हण बिहार झारखंड से यहां भिक्षाटन के लिये आते थे. उनको देखने के बाद उनके मन मे प्रसन्नता हुई कि ब्राम्हण तो आ गए हैं. अब पूजा पाठ हो जायेगा. लेकिन जब वो उन ब्राम्हण देवता से पूछे की ये पूजा कराना है तो वो बोले महाराज मैं तो पढ़ा ही नही हूं. तब से उनके मन में ये बात आई की ब्राम्हण आज संस्कृत नहीं पढ़ रहे हैं तो मंत्रो का उच्चारण कैसे होगा. उसी समय से वो अपने मन मे ठान लिये थे कि एक संस्कृत महाविद्यालय खोला जाये"

यह भी पढ़ें: क्या छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को साइडलाइन करने की है तैयारी, क्या कहते हैं जानकार

बनारस से बुलाये गये शिक्षक: उन्होंने बताया कि "1965 में जब संस्कृत महाविद्यालय खोले तो बनारस के विद्वान लोगों से उन्होंने आग्रह किया और उन लोगों ने आकर यहां विद्या अध्ययन कराया. कैलाश गुफा में कुछ दिक्कतें आने के कारण कुछ दिन के बाद वहां से महाविद्यालय सामरबार में लगाया जाने लगा. 10 संस्कृत स्कूल संचालित हैं. जिनमें 3 हाईस्कूल और 7 मिडिल स्कूल संचालित हैं और 2 संस्कृत के कॉलेज हैं. अपने छत्तीसगढ़ में संस्कृत महाविद्यालय के नाम से कोई भी महाविद्यालय नहीं है. निश्चित ही एक रायपुर में है, लेकिन वहां शास्त्री आचार्य की डिग्री नहीं मिलती वहां संस्कृत एमए, संस्कृत बीए की उपाधि मिलती है. तो काफी समय तक ये छत्तीसगढ़ का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय रहा है. अब इसकी संख्या 2 हो गई है. बलरामपुर जिले के श्रीकोट में दूसरा महाविद्यालय अभी अभी खोला गया है."

करीब 11 छात्र कर रहे अध्ययन: विधायक चिंतामणि बताते है कि "दोनों महाविद्यालय में करीब 300 छात्र-छात्राएं हैं. कोरोना काल के कारण संख्या कम हुई है. वहीं हाई स्कूल और मिडिल स्कूल में करीब 800 बच्चे अध्ययनरत हैं. जब हम 1965 के आस पास की कल्पना करते हैं तो उस समय संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं थी. यहां पर जो लोग जंगलों में रहते थे उनका अचार विचार भी उसी प्रकार का था. तो पिता के मन में आया कि इन लोगों को मुख्य धारा में कैसे जोड़ा जाए, उसके लिये शिक्षा का जरूरत होगा और शिक्षा भी ऐसी शिक्षा हो जो शिक्षा के साथ साथ उनको संस्कार भी दे. तब उनके मन मे संस्कृत की शिक्षा का ख्याल आया और 1965 में उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की."

सरगुजा: वनों से आच्छादित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में 1965 में संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी गई थी. यह पहला मौका था जब छत्तीसगढ़ में संस्कृत की शिक्षा शुरू की गई. सामरबार में बने आश्रम में संत गहिरागुरू ने इसकी स्थापना की थी. आज संस्कृत के 10 स्कूल और 2 कॉलेज संचालित हैं. जिनमे करीब 11 सौ बच्चे संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शुरू हुई संस्कृत की शिक्षा

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समाज सुधार था लक्ष्य: सरगुजा आदिवासी बाहुल्य संभाग है. यहां रहने वाले लोग मांस मदिरा के सेवन में अधिक लिप्त रहते थे. सनातन धर्म की पूजा पद्धति और जीवन शैली से दूर थे. धार्मिक अनुष्ठान के लिये यहां पंडित भी अन्य प्रदेशों से बुलवाये जाते रहे हैं. ऐसे में सरगुजा के एक समाज सुधारक ने संस्कृत के प्रसार का बीड़ा उठाया. संत गहिरा गुरु ने संभाग भर में आश्रम बनाये. संस्कृत स्कूल खोला और लोगों को मांस मदिरा से दूर कर समाज सुधारने का काम किया.

बड़े बेटे ने संभाली विरासत: अब संत गहिरागुरू के दोनों बेटे उनकी विरासत को संभाल रहे हैं. बड़े बेटे बभ्रुवाहन सिंह पूरी तरह अपना जीवन आश्रम को समर्पित कर चुके हैं. दूसरे बेटे चिंतामणि महाराज जो राजनीति में सक्रिय हैं. वर्तमान में सामरी विधानसभा से विधायक और संसदीय सचिव हैं. इस क्षेत्र में संत गहिरागुरू के लाखों अनुयायी हैं. जो आज भी उनके विचारों को लेकर समाज सुधार में लगे रहते हैं. सरगुजा में नशा मुक्ति का अभियान छेड़ने वाली माता राज मोहनी देवी भी इन्ही से प्रेरित थीं.

पूजा पाठ के लिए नहीं थे ब्राम्हण: हमने विधायक चिंतामणि महाराज से बातचीत की. उन्होंने बताया कि "संस्कृत महाविद्यालय को जब पिता ने 1965 में स्थापित किये. उनके मन में तब ये धरना हुई. जब एक बार उनको पूजन के लिये पंडित की जरूरत थी. लेकिन वहां कोई ब्राम्हण था नहीं, उस समय कुछ ब्राम्हण बिहार झारखंड से यहां भिक्षाटन के लिये आते थे. उनको देखने के बाद उनके मन मे प्रसन्नता हुई कि ब्राम्हण तो आ गए हैं. अब पूजा पाठ हो जायेगा. लेकिन जब वो उन ब्राम्हण देवता से पूछे की ये पूजा कराना है तो वो बोले महाराज मैं तो पढ़ा ही नही हूं. तब से उनके मन में ये बात आई की ब्राम्हण आज संस्कृत नहीं पढ़ रहे हैं तो मंत्रो का उच्चारण कैसे होगा. उसी समय से वो अपने मन मे ठान लिये थे कि एक संस्कृत महाविद्यालय खोला जाये"

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बनारस से बुलाये गये शिक्षक: उन्होंने बताया कि "1965 में जब संस्कृत महाविद्यालय खोले तो बनारस के विद्वान लोगों से उन्होंने आग्रह किया और उन लोगों ने आकर यहां विद्या अध्ययन कराया. कैलाश गुफा में कुछ दिक्कतें आने के कारण कुछ दिन के बाद वहां से महाविद्यालय सामरबार में लगाया जाने लगा. 10 संस्कृत स्कूल संचालित हैं. जिनमें 3 हाईस्कूल और 7 मिडिल स्कूल संचालित हैं और 2 संस्कृत के कॉलेज हैं. अपने छत्तीसगढ़ में संस्कृत महाविद्यालय के नाम से कोई भी महाविद्यालय नहीं है. निश्चित ही एक रायपुर में है, लेकिन वहां शास्त्री आचार्य की डिग्री नहीं मिलती वहां संस्कृत एमए, संस्कृत बीए की उपाधि मिलती है. तो काफी समय तक ये छत्तीसगढ़ का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय रहा है. अब इसकी संख्या 2 हो गई है. बलरामपुर जिले के श्रीकोट में दूसरा महाविद्यालय अभी अभी खोला गया है."

करीब 11 छात्र कर रहे अध्ययन: विधायक चिंतामणि बताते है कि "दोनों महाविद्यालय में करीब 300 छात्र-छात्राएं हैं. कोरोना काल के कारण संख्या कम हुई है. वहीं हाई स्कूल और मिडिल स्कूल में करीब 800 बच्चे अध्ययनरत हैं. जब हम 1965 के आस पास की कल्पना करते हैं तो उस समय संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं थी. यहां पर जो लोग जंगलों में रहते थे उनका अचार विचार भी उसी प्रकार का था. तो पिता के मन में आया कि इन लोगों को मुख्य धारा में कैसे जोड़ा जाए, उसके लिये शिक्षा का जरूरत होगा और शिक्षा भी ऐसी शिक्षा हो जो शिक्षा के साथ साथ उनको संस्कार भी दे. तब उनके मन मे संस्कृत की शिक्षा का ख्याल आया और 1965 में उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की."

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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