सरगुजा: किसानों की हितैषी बनकर सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार ने ही अब किसानों के माथे पर बल डाल दिए हैं. 'धान का कटोरा' कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान ही किसानों के लिए सिर का दर्द बन गया है. सत्ता में आने के साथ प्रदेश सरकार ने किसानों का कर्ज तो माफ कर दिया लेकिन उसके बाद इस वर्ष की धान फसल के बाद धान के समर्थन मूल्य पर स्थिति साफ नहीं है और रही-सही कसर धान खरीदी पर देरी ने पूरी कर दी है. उधर धान खरीदी को लेकर प्रशासन की सख्ती से किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है.
इस बीच सरकार ने सभी जिले में फरमान जारी किया कि अवैध धान के परिवहन और संग्रहण पर सख्ती से कार्रवाई की जाए, जिसके बाद प्रदेश के सभी जिलों में प्रशासन, पुलिस, और मंडी विभाग की टीमें दिन-रात धान पर लगातार कार्रवाई करती नजर आ रही है. ऐसी कार्रवाई की वजह से बाजार में जो स्थिति निर्मित हुई है वह भयावह है. वस्तु विनिमय की पद्धति से चलने वाले सरगुजा के हाट बाजार में वस्तु विनिमय की दुकानें बंदी के कगार पर हैं. वहीं किसान अपनी मूलभूत जरूरतों की चीजों के लिए मोहताज हो चुका है.
किसानों के सामने नया संकट
सरगुजा में गरीब किसान के पास फसल काटकर कमाए गए धान के सिवा और कुछ नहीं होता और किसान इसी धान के बदले में वह रोजमर्रा के उपयोग में आने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं को व्यापारी से धान के बदले प्राप्त करता है. बाजार में व्यापारी तराजू पैसे और कुछ सामग्रियां लेकर बैठता है. किसान उसे धान देते हैं और उस धान के बदले में उसे अपनी जरूरत के सामान उपलब्ध हो जाते थे. लेकिन धान को अवैध बताकर जिस तरह से कार्रवाई की जा रही है उससे व्यापारी डरे हुए हैं और वह किसान से 1 किलो भी धान नहीं खरीदना चाहते, लिहाजा किसानों के सामने घर चलाने का संकट आ खड़ा हुआ है.
कार्रवाई से किसानों में डर
सरगुजा जिले के सुकरी गांव में रहने वाले नरेंद्र राजवाड़े के घर प्रशासन ने कार्रवाई की. नरेंद्र का कहना है कि वह अपने ही खेत के धान को खलिहान में रख कर अपने घर में रखा था. जिसे प्रशासन ने अवैध बताकर कार्रवाई कर दी, ऐसे में किसानों के सामने अब यह संकट मंडरा रहा है. कि वह अपने खेत का धान आखिर कहां ले जाकर रखें.
व्यापारी धान लेने से कर रहे हैं इनकार
ETV भारत की टीम ने जब मामले की पड़ताल की तो पाया कि बाजार में व्यापारी दुकान तो लगा रहे हैं और वह किसान से अन्य चीजें खरीद रहे हैं. लेकिन जैसे ही किसान धान लेकर आता है, व्यापारी उसे साफ मना कर देता है. किसान मायूस होकर बाजार से खाली हाथ वापस लौट जाता है. बहरहाल धान के वास्तविक रकबे से अधिक धान पर समर्थन मूल्य लेने के गोरखधंधे पर लगाम लगाने के लिए शुरू की गई सरकारी कवायद का विपरीत असर किसानों के जनजीवन पर पड़ रहा है. क्योंकि इस कार्रवाई में ना सिर्फ धान माफिया प्रभावित हो रहे हैं बल्कि बेगुनाह किसान भी कार्यवाही का शिकार हो रहे हैं.