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MCH और SNCU फिर इतने रेफरल क्यों, जिम्मदारों पर होगी कार्रवाई - सरगुजा लेटेस्ट न्यूज

सरगुजा अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत (Newborn death in Surguja hospital) होना एक बड़े बवाल का कारण बना. वो भी उस शहर के अस्पताल में जहां खुद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री आते हैं. 4 नवजात बच्चों की मौत हुई. प्रदेश में हड़कंप मच गया, स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव को तत्काल हवाई मार्ग से जायजा लेने आना पड़ा, विपक्ष ने खूब हंगामा किया. मंत्री ने हंगामे के बीच जाकर विपक्ष की बात सुनी, फिर जांच और कार्रवाई भी हुई. स्वास्थ्य विभाग ने अपनी जांच अस्पताल के दायरे तक सीमित रखी और कार्रवाई भी की. अब सीमित दिखाई दे रही है. इन मौतों के कारण अस्पताल के बाहर ही नहीं बल्कि जिले के बाहर भी देखने की जरूरत है. ETV भारत ने इस मसले पर पड़ताल की (etv bharat digs into issue) है. पड़ताल में जो लापरवाही सामने आई है, उस पर अब तक विभाग या मंत्री की नजर जाती नहीं दिख रही है. ambikapur latest news

Ambikapur Mother Child Hospital
अम्बिकापुर का मातृ शिशु अस्पताल
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Published : Dec 16, 2022, 8:16 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

डॉक्टर आर मूर्ती से ईटीवी भारत की खास बातचीत

सरगुजा: इस पड़ताल को समझने से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि अम्बिकापुर का मातृ शिशु अस्पताल (Ambikapur Mother Child Hospital) और उसका एसएनसीयू वार्ड मेडिकल कॉलेज के अधीन है. यानी कि चिकित्सा शिक्षा विभाग इसका संचालन कर रहा है. जबकि इसके डेवलपमेंट और अन्य खर्चों का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग के पास होता है. चिकित्सा, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग ये दोनों ही अलग अलग विभाग हैं. फिलहाल समन्वय बनाकर काम किया जा रहा है.

हर जिले में मातृ शिशु अस्पताल: मातृ शिशु अस्पताल और एसएनसीयू की सुविधा सिर्फ अम्बिकापुर में ही नहीं है. केंद्र सरकार द्वारा इसे देश के हर जिले में स्थापित किया गया है. सरगुजा की बात करें तो हर जिले में एक मातृ शिशु अस्पताल एसएनसीयू के साथ संचालित है. लेकिन ये अस्पताल इलाज कम और रेफरल सेंटर के तौर पर ज्यादा काम कर रहे हैं. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि मातृ शिशु अस्पताल अम्बिकापुर के आंकड़े बताते हैं कि अम्बिकापुर में संभाग और उसके बाहर से भी गर्भवती माताओं को प्रसव के लिये या प्रसव के बाद नवजात बच्चों को इलाज के लिए भेजा जाता है.

स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहा चिकित्सा शिक्षा विभाग: मातृ शिशु अस्पताल और एसएनसीयू संभाग के कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर और जशपुर जिले में भी संचालित हैं. इसके संचालन का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग के पास होता है. जिले के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी इसके लिये जिम्मेदार अधिकारी होते हैं. लेकिन उदासीनता या लापरवाही ऐसी कि इन जिलों से ज्यादातर केस अम्बिकापुर के लिये रेफर कर दिये जाते हैं. इससे अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल का लोड बढ़ता है. बेड और वेंटिलेटर के लिए वेटिंग रहती है. अधिक दूरी से ट्रेवल करने के कारण पहले से गंभीर बच्चे की हालत और बिगड़ जाती है. अंतत वो या तो अस्पताल पहुंचने से पहले या अस्पताल में इलाज के प्रयास में दम तोड़ देते हैं. ambikapur latest news



जनवरी 2022 से नवम्बर 2022 के आंकड़े: पड़ताल में हमने जो आंकड़े निकाले हैं. उन्हें देखकर आप भी समझ सकते हैं कि संभाग मुख्यालय के जिलों में सुविधा होते हुये भी डॉक्टर और विभाग जिम्मेदारी से बच रहे हैं. मरीजों को अम्बिकापुर की ओर रेफर कर रहे हैं. अम्बिकापुर एसएनसीयू (Ambikapur SNCU) से मिले आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2022 से नवम्बर 2022 तक कुल 2 हजार 933 बच्चे एडमिट किए गये. इनमें से एमसीएच में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या मात्र 804 है. जबकि 523 बच्चे प्राइवेट या अन्य शासकीय अस्पताल से यहां भेजे गये. इसके अतिरिक्त जिन जिलों में खुद का एसएनसीयू है. वहां से भी बच्चे अम्बिकापुर भेजे गये. जिनमें सूरजपुर जिले से 633, जशपुर जिले से 171, कोरिया जिले से 152, बलरामपुर जिले से 586, कोरबा से 9 और रायगढ से 19 बच्चे यहां भेजे गये.


यह भी पढ़ें: सूरजपुर में बीजेपी का कांग्रेस पर हमला, गौरव दिवस पर कसा तंज

अप्रैल 2021 से दिसंबर 2022 के ताजा आंकड़े: इसके अतिरिक्त अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां कुल एडमिशन 3 हजार 11 हुये इनमें से 1734 बच्चों का जन्म अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल में हुआ और 1277 बच्चे बाहर से यहां एडमिट किए गये. एक अप्रैल 2022 से 11 दिसंबर 2022 तक की स्थिति में यहां कुल 2259 बच्चे एडमिट किये गये जिनमे 1433 का जन्म यहीं हुआ और 826 बच्चे यहां बाहर से लाये गये. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब हर जिले में एक मातृ शिशु अस्पताल का सेटअप है. डॉक्टर भी हैं एसएनसीयू की सुविधा भी है फिर आखिर क्यों रेफरल इतना अधिक है.


डीन ने जताई रेफरल पर चिंता: स्वास्थ्य मंत्री द्वारा कराई गई जांच में कार्रवाई का सीधा असर चिकित्सा शिक्षा विभाग के कर्मचारियों पर हुआ, ऐसे में मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. आर.मूर्ती से हमने बातचीत की. उन्होंने आंकड़ों पर चिंता जाहिर करते हुये कहा कि "जिले में संचालित मातृ शिशु अस्पताल को सुदृढ करने की आवश्यकता है. क्योंकि गंभीर स्थिति में यहां बच्चों को भेज दिया जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चा कई बार एडमिट होने से पहले ही दम तोड़ देता है या इलाज के प्रयास में उसकी मौत हो जाती है. रेफरल अधिक होने से जब यहां मौत अधिक होती है तो वो ना सिर्फ दुख का कारण बनता है. बल्कि हमारे यहां होने वाली मौत के आंकड़ों में भी वृद्धि करता है."


रेफरल के लिये कौन जिम्मेदार: अब सवाल ये उठता है अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल में बच्चों की मौत (Newborn death in Surguja hospital) पहले भी हुई है. पहले भी हड़कंप मचा था. और एक बार फिर इस पर बवाल मचा हुआ है. जिलों से रेफरल की समस्या जस की तस बनी हुई है. वर्ष 2021 में हुई घटना के बाद यह बात सामने आई थी की संभाग के अन्य जिलों के मातृ शिशु अस्पताल कोविड सेंटर के रूप में परिवर्तित थे इसलिए रेफरल ज्यादा हैं. लेकिन अब एक वर्ष से अधिक समय से सभी अस्पताल संचालित हैं फिर भी रेफरल की स्थिति वैसी ही है. मामले में स्वास्थ्य मंत्री ने अभी और भी कार्यवाई होने के संकेत दिये हैं. ऐसे में क्या स्वास्थ्य विभाग के उन जिम्मदारों पर भी कार्रवाई नही होगी जो इस रेफरल के लिये जिम्मेदार हैं.

डॉक्टर आर मूर्ती से ईटीवी भारत की खास बातचीत

सरगुजा: इस पड़ताल को समझने से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि अम्बिकापुर का मातृ शिशु अस्पताल (Ambikapur Mother Child Hospital) और उसका एसएनसीयू वार्ड मेडिकल कॉलेज के अधीन है. यानी कि चिकित्सा शिक्षा विभाग इसका संचालन कर रहा है. जबकि इसके डेवलपमेंट और अन्य खर्चों का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग के पास होता है. चिकित्सा, शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग ये दोनों ही अलग अलग विभाग हैं. फिलहाल समन्वय बनाकर काम किया जा रहा है.

हर जिले में मातृ शिशु अस्पताल: मातृ शिशु अस्पताल और एसएनसीयू की सुविधा सिर्फ अम्बिकापुर में ही नहीं है. केंद्र सरकार द्वारा इसे देश के हर जिले में स्थापित किया गया है. सरगुजा की बात करें तो हर जिले में एक मातृ शिशु अस्पताल एसएनसीयू के साथ संचालित है. लेकिन ये अस्पताल इलाज कम और रेफरल सेंटर के तौर पर ज्यादा काम कर रहे हैं. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि मातृ शिशु अस्पताल अम्बिकापुर के आंकड़े बताते हैं कि अम्बिकापुर में संभाग और उसके बाहर से भी गर्भवती माताओं को प्रसव के लिये या प्रसव के बाद नवजात बच्चों को इलाज के लिए भेजा जाता है.

स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहा चिकित्सा शिक्षा विभाग: मातृ शिशु अस्पताल और एसएनसीयू संभाग के कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर और जशपुर जिले में भी संचालित हैं. इसके संचालन का जिम्मा स्वास्थ्य विभाग के पास होता है. जिले के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी इसके लिये जिम्मेदार अधिकारी होते हैं. लेकिन उदासीनता या लापरवाही ऐसी कि इन जिलों से ज्यादातर केस अम्बिकापुर के लिये रेफर कर दिये जाते हैं. इससे अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल का लोड बढ़ता है. बेड और वेंटिलेटर के लिए वेटिंग रहती है. अधिक दूरी से ट्रेवल करने के कारण पहले से गंभीर बच्चे की हालत और बिगड़ जाती है. अंतत वो या तो अस्पताल पहुंचने से पहले या अस्पताल में इलाज के प्रयास में दम तोड़ देते हैं. ambikapur latest news



जनवरी 2022 से नवम्बर 2022 के आंकड़े: पड़ताल में हमने जो आंकड़े निकाले हैं. उन्हें देखकर आप भी समझ सकते हैं कि संभाग मुख्यालय के जिलों में सुविधा होते हुये भी डॉक्टर और विभाग जिम्मेदारी से बच रहे हैं. मरीजों को अम्बिकापुर की ओर रेफर कर रहे हैं. अम्बिकापुर एसएनसीयू (Ambikapur SNCU) से मिले आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2022 से नवम्बर 2022 तक कुल 2 हजार 933 बच्चे एडमिट किए गये. इनमें से एमसीएच में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या मात्र 804 है. जबकि 523 बच्चे प्राइवेट या अन्य शासकीय अस्पताल से यहां भेजे गये. इसके अतिरिक्त जिन जिलों में खुद का एसएनसीयू है. वहां से भी बच्चे अम्बिकापुर भेजे गये. जिनमें सूरजपुर जिले से 633, जशपुर जिले से 171, कोरिया जिले से 152, बलरामपुर जिले से 586, कोरबा से 9 और रायगढ से 19 बच्चे यहां भेजे गये.


यह भी पढ़ें: सूरजपुर में बीजेपी का कांग्रेस पर हमला, गौरव दिवस पर कसा तंज

अप्रैल 2021 से दिसंबर 2022 के ताजा आंकड़े: इसके अतिरिक्त अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां कुल एडमिशन 3 हजार 11 हुये इनमें से 1734 बच्चों का जन्म अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल में हुआ और 1277 बच्चे बाहर से यहां एडमिट किए गये. एक अप्रैल 2022 से 11 दिसंबर 2022 तक की स्थिति में यहां कुल 2259 बच्चे एडमिट किये गये जिनमे 1433 का जन्म यहीं हुआ और 826 बच्चे यहां बाहर से लाये गये. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब हर जिले में एक मातृ शिशु अस्पताल का सेटअप है. डॉक्टर भी हैं एसएनसीयू की सुविधा भी है फिर आखिर क्यों रेफरल इतना अधिक है.


डीन ने जताई रेफरल पर चिंता: स्वास्थ्य मंत्री द्वारा कराई गई जांच में कार्रवाई का सीधा असर चिकित्सा शिक्षा विभाग के कर्मचारियों पर हुआ, ऐसे में मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. आर.मूर्ती से हमने बातचीत की. उन्होंने आंकड़ों पर चिंता जाहिर करते हुये कहा कि "जिले में संचालित मातृ शिशु अस्पताल को सुदृढ करने की आवश्यकता है. क्योंकि गंभीर स्थिति में यहां बच्चों को भेज दिया जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चा कई बार एडमिट होने से पहले ही दम तोड़ देता है या इलाज के प्रयास में उसकी मौत हो जाती है. रेफरल अधिक होने से जब यहां मौत अधिक होती है तो वो ना सिर्फ दुख का कारण बनता है. बल्कि हमारे यहां होने वाली मौत के आंकड़ों में भी वृद्धि करता है."


रेफरल के लिये कौन जिम्मेदार: अब सवाल ये उठता है अम्बिकापुर के मातृ शिशु अस्पताल में बच्चों की मौत (Newborn death in Surguja hospital) पहले भी हुई है. पहले भी हड़कंप मचा था. और एक बार फिर इस पर बवाल मचा हुआ है. जिलों से रेफरल की समस्या जस की तस बनी हुई है. वर्ष 2021 में हुई घटना के बाद यह बात सामने आई थी की संभाग के अन्य जिलों के मातृ शिशु अस्पताल कोविड सेंटर के रूप में परिवर्तित थे इसलिए रेफरल ज्यादा हैं. लेकिन अब एक वर्ष से अधिक समय से सभी अस्पताल संचालित हैं फिर भी रेफरल की स्थिति वैसी ही है. मामले में स्वास्थ्य मंत्री ने अभी और भी कार्यवाई होने के संकेत दिये हैं. ऐसे में क्या स्वास्थ्य विभाग के उन जिम्मदारों पर भी कार्रवाई नही होगी जो इस रेफरल के लिये जिम्मेदार हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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