सरगुजा: छत्तीसगढ़ में पर्यटन का नाम आए और सरगुजा के मैनपाट का जिक्र ना हो, ऐसा मुमकिन नहीं है. विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर ETV भारत आपको छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट से रूबरू कराने जा रहा है. बारिश में झरने का आनंद उठाने टाईगर प्वांट से बेहतर और कुछ भी नहीं. लगभग 100 फिट से ज्यादा की ऊंचाई से तेज प्रवाह में बहता पानी और उससे उठने वाली धुंध का नजारा मानों स्वर्ग की तरह प्रतित होता है.
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के उस पर्यटन स्थल की जहां जरा सी बारिश में धुंध सा छा जाता है. ऐसा लगता है जैसे बादल शरीर को सहलाकर निकल गए हों. झरनों में अचानक पानी का तेजी से बहना, हसीन वादियों में बसे मैनपाट की सुंदरता में चार-चांद लगाता है.
छत्तीसगढ़ का शिमला कहलाता है मैनपाट
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में विंध्य पर्वतमाला पर समुद्रतल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बसे मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, समुद्र तल से ऊंचाई, रमणीय स्थल और ठंड के दिनों में बर्फबारी शिमला में होने का एहसास कराती है. मैनपाट की खूबसूरती अगर देखनी हो तो ठंड और बारिश के दिनों में यहां आएं. इन दिनों यहां का सौंदर्य अपने चरम पर होता है. गर्मी के दिनों में यहां का तापमान काफी ठंडा रहता है. इसलिए हर मौसम में सैलानी यहां खींचे चले आते हैं.
ठंड के दिनों में बर्फ की चादर से ढक जाता है मैनपाट
यहां ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और वनमंडलीय 13 किलोमीटर के इस इलाके में नदियां और झरने लोगों को खूब आकर्षित करते हैं. यहां चारों ओर मौजूद हरी घास दिल को सुकून देती है. ठंड के दिनों में सुबह-सुबह बर्फ की सफेद चादर यहां की पूरी धरती को ढंक लेती है, जबकि बारिश में चारों ओर हरियाली ही हरियाली बिखरी रहती है. इस दौरान यहां के झरने पूरे शबाब में होते हैं. झरनों का कल-कल कर गिरना लोगों को अपनी ओर खींच लेता है.
कैसे पहुंचे मैनपाट ?
- जिला मुख्यालय अंबिकापुर से मैनपाट तक पहुंचने के दो रास्ते हैं.
- दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट का सफर 50 किलोमीटर का है, जबकि रायगढ़-काराबेल के रास्ते जाने पर 83 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है.
- दोनों ही रास्तों पर मनोरम नजारे देखने को मिलते हैं. लेकिन असली रोमांच दरिमा हवाई पट्टी से मैनपाट जाने में आता है.
- नवानगर की तराई से मैनपाट तक अच्छी सड़क बनाई गई है. इस सड़क पर मैनपाट पहाड़ी का सफर बेहद रोमांचक है.
- पहाड़ के सीने को चिरते हुए टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता ऊंचाई की ओर ले जाता है.
- अलग-अलग ऊंचाई से नीचे वादियों का दृश्य देखने लायक होता है.
वैसे तो यहां अनेक झरने, नदियां व मनोरम स्थल है, लेकिन यहां पहुंचने पर टाइगर पॉइंट, फिश प्वाइंट और मेहता प्वाइंट का नजारा नहीं देखा तो समझो कुछ भी नहीं देखा.
मैनपाट की एक खासियत यह भी है कि 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थी के रूप में बसाया गया था. इसलिए यह छोटा तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है. यहां तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा दो बार आ चुके हैं. यहां तिब्बती कैंप और बौद्ध मंदिर पहुंचकर मन को शांति मिलती है.
इतनी खूबसूरती के बावजूद मैनपाट में सैलानियों की जितनी भीड़ होनी चाहिए, उतनी दिखती नहीं है. कारण है सरकार की उपेक्षा. सरकार ने यहां मोटल बनवाए, लेकिन वह महंगा होने के साथ एकलौता और नाकाफी है. इसके अलावा जितने प्वॉइंट यहां मशहूर हैं, उन जगहों पर ना तो सुरक्षा के इंतजाम हैं और ना ही खाने-पीने और ठहरने की उत्तम व्यवस्था है, लिहाजा सुविधाओं का टोटा सैलानियों को सताता है.