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'भारत के कुछ क्षेत्र 15 अगस्त 1947 को नहीं 1 जनवरी 1948 को हुए थे आजाद' - सरगुजा का विलय

क्या है सरगुजा स्टेट के भारत में विलय की कहानी, क्यों 15 अगस्त 1947 को भारत में शामिल नहीं हुआ था सरगुजा स्टेट. आजादी के बाद क्या थी अंग्रेजों की भारत को तोड़ने वाली चाल. इन सभी सवालों से तत्कालीन सरगुजा राजघराने के वारिश और छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री टीएस सिंहदेव ने उठाया पर्दा.

टीएस सिंहदेव
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Published : Jun 9, 2019, 9:39 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST


सरगुज़ा: छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर संभाग सरगुजा रियासत का मुख्यालय हुआ करता था, सरगुजा को स्टेट का दर्जा प्राप्त था, यहां के राजा महाराजाओं की कहानियां भी प्रसिद्ध हैं. डोमीनियन ऑफ इंडिया में विलय के समय सरगुजा के अंतिम महाराज रामानुज शरण सिंहदेव शासक थे, इनके बेटे मदनेश्वर शरण सिंहदेव थे, जिनके बड़े बेटे टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री हैं.

टीएस सिंहदेव का इंटरव्यू

महाराजा के नाम से संबोधित करते हैं लोग
सरगुजा के लोग इन्हें आज भी महाराजा साहब कहकर संबोधित करते हैं. लिहाज हमने टी एस सिंह देव से ही जाना की आखिर सरगुजा रियासत का भारत में विलय कैसे हुआ.

'चारों दिशाओं में थी रियासतें'
सिंहदेव ने बताया कि सरगुजा का एक जनवरी 1948 को भारत में विलय हुआ. सिंहदेव ने पूरे मामले को लेकर विस्तृत जानकारी दी. बाबा (टीएस सिंहदेव) ने कहा की वर्तमान छत्तीसगढ़ में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम चारों दिशाओं में रियासतें थीं, 14 राजा-महाराजा थे, बीच के हिस्से बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग ये जमींदारी का हिस्सा था, कहने को तो इन्हें भी राजा कह देते हैं उन्हें प्रशासनिक अधिकार नहीं थे.

'सरदार पटेल ने की कवायद'
उन्होंने बताया कि सरदार पटेल जब रियासतों को डोमीनियन ऑफ इंडिया का हिस्सा बनाने की कवायद कर रहे थे, तब कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने सहमति नहीं दी थी, कश्मीर में जब कबीलाई घुस आए और वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी और तब से कश्मीर भारत का हिस्सा है.

'जूनागढ़ के राजा ने पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान किया'
जूनागढ़ के राजा ने तो पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी थी, लेकिन वहां इसके लिए मतदान किया गया और पूरी जनता ने भारत के साथ रहने का फैसला किया, इसके अलावा हैदराबाद के निजाम अलग स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहते थे और हैदराबाद को शामिल करने भारतीय सेना ने निजाम की फौज से युद्ध किया तब जाकर हैदराबाद भारत का हिस्सा बना.

'दे रखा था स्वतंत्र देश का दर्जा'
टीएस सिंहदेव ने बताया कि '15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने डोमिनियन ऑफ इंडिया के तहत देश के उस भू भाग को हस्तांतरित किया था, जिसमें जमीदारी-जागीरदारी प्रथा लागू थी, लेकिन जिन क्षेत्रों में रियासतें थी, राजा-महाराजा थे, उन रियासतों को अंग्रेजों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत स्वतंत्र देश का दर्जा दे रखा था और ये राज्य या कहें देश इस बात के लिए स्वतंत्र थे की वो डोमिनियन ऑफ इंडिया मतलब आजाद भारत में शामिल हो या नहीं. देश की रियासतों को भारत का हिस्सा बनाने की कवायद शुरू हुई'.

'ये रियासतें हुई थी शामिल'
सरगुजा रियासत के विलय को लेकर सिंहदेव ने बताया कि इस्टर्न स्टेट एजेंसी बनाई गई जिसमें ओडीसा की 24, छत्तीसगढ़ की 14 और वर्तमान झारखंड की 2 रियासतें शामिल थीं. ईस्टर्न स्टेट एजेंसी ने डोमिनियन ऑफ इंडिया में विलय के लिए विधिवत एग्रीमेंट किया था. इस तरह से एक जनवरी 1948 को सरगुज़ा, छत्तीसगढ़, ईस्टर्न स्टेट एजेंसी की रियासतें ही नहीं देश की 545 रियायतें भारत का हिस्सा बनी औऱ पूर्ण लोकतांत्रिक गणराज्य होने का गौरव इन्हें प्राप्त हुआ.

'अंग्रेजों के शासनकाल में दो व्यवस्थाएं थीं'
सिंहदेव ने बताया कि 'अंग्रेजों या उसके पहले मराठाओं के शासन काल में दो तरह की प्रशासनिक व्यवस्थाएं थीं. एक थी जमीदारी-जागीरदारी और दूसरी थी रियासतों की जिसमें राजा महाराजा होते थे. रियासतों को जो अधिकार मिले थे वो अधिकार जमीदारी और जागीरदारी को नहीं मिले थे, जैसे सजा देना, मृत्यु दंड देना, टैक्स लगाना ऐसे कुछ विशेष अधिकार सिर्फ राजाओं के पास थे.

'प्रीवि पर्सेस की व्यवस्था की गई थी'

टीएस बाबा ने बताया कि 'जमीदारी-जागीरदारी और अंग्रेजों की सीधी हुकूमत चला करती थी और इन्हीं रियासतों के साथ डोमिनियन ऑफ इंडिया ने इन्हें भारत मे शामिल करने के लिए एग्रीमेंट किया और उस एग्रीमेंट के तहत शामिल रियासतों को प्रीवि पर्सेस यानी की वित्तीय लाभ के साथ-साथ शासकीय सुविधाओं जैसे, राजाओं का एक प्रतिनिधि उच्च सदन में, यात्रा में आरक्षण, शिकार की व्यवस्था, सुरक्षा कर्मी जैसे कई ऐशो आराम की सुविधाएं दी जा रही थी'.

इंदिरा गांधी ने किया विरोध
इंदिरा गांधी देश की 545 राजाओं को मिलने वाले प्रिवी पर्स के विरोध में थी उन्होंने इसे बंद करने का 1969 में ही प्रयास किया था, बहुमत होने पर लोकसभा में तो यह बिल पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में एक वोट से प्रीवि पर्स बिल गिर गया.

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा केस
राष्ट्रपति की कृपा से इंदिरा ने इसे लागू करा दिया और इसके खिलाफ राजाओं का एक समूह सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गया और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी. इस तरह प्रीवि पर्स खत्म नहीं हो सका. इंदिरा गांधी के इस फैसले से जनता का समर्थन मिलता जा रहा था. जनता राजाओं को दी जा रही सुविधाओं के खिलाफ यही, लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने राजाओं को मिलने वाली प्रीवि पर्स सहित सभी सुविधाओं को खत्म किया, संविधान में 26 वां संसोधन किया गया और राजा और प्रजा को समान कर दिया गया.

क्या है प्रीवि पर्सेस
इस नियम के तहत राजाओं की संपत्ति या आय पर उन्हें किसी प्रकार का टेक्स नहीं देना होता था, जिसे प्रीवि पर्स कहा गया. इसमें सरकार राजाओं को अपने वित्त से कुछ देती तो नहीं थी, लेकिन इतनी गरीबी वाले देश में सबसे अधिक संपत्ति वाले राजाओं की आय पर टैक्स ना लगना ये देश की जनता को भी मंजूर नहीं था, तभी तो इंदिरा के इस फैसले ने उन्हें इतना बड़ा जन समर्थन दिया.


सरगुज़ा: छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर संभाग सरगुजा रियासत का मुख्यालय हुआ करता था, सरगुजा को स्टेट का दर्जा प्राप्त था, यहां के राजा महाराजाओं की कहानियां भी प्रसिद्ध हैं. डोमीनियन ऑफ इंडिया में विलय के समय सरगुजा के अंतिम महाराज रामानुज शरण सिंहदेव शासक थे, इनके बेटे मदनेश्वर शरण सिंहदेव थे, जिनके बड़े बेटे टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री हैं.

टीएस सिंहदेव का इंटरव्यू

महाराजा के नाम से संबोधित करते हैं लोग
सरगुजा के लोग इन्हें आज भी महाराजा साहब कहकर संबोधित करते हैं. लिहाज हमने टी एस सिंह देव से ही जाना की आखिर सरगुजा रियासत का भारत में विलय कैसे हुआ.

'चारों दिशाओं में थी रियासतें'
सिंहदेव ने बताया कि सरगुजा का एक जनवरी 1948 को भारत में विलय हुआ. सिंहदेव ने पूरे मामले को लेकर विस्तृत जानकारी दी. बाबा (टीएस सिंहदेव) ने कहा की वर्तमान छत्तीसगढ़ में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम चारों दिशाओं में रियासतें थीं, 14 राजा-महाराजा थे, बीच के हिस्से बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग ये जमींदारी का हिस्सा था, कहने को तो इन्हें भी राजा कह देते हैं उन्हें प्रशासनिक अधिकार नहीं थे.

'सरदार पटेल ने की कवायद'
उन्होंने बताया कि सरदार पटेल जब रियासतों को डोमीनियन ऑफ इंडिया का हिस्सा बनाने की कवायद कर रहे थे, तब कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने सहमति नहीं दी थी, कश्मीर में जब कबीलाई घुस आए और वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी और तब से कश्मीर भारत का हिस्सा है.

'जूनागढ़ के राजा ने पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान किया'
जूनागढ़ के राजा ने तो पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी थी, लेकिन वहां इसके लिए मतदान किया गया और पूरी जनता ने भारत के साथ रहने का फैसला किया, इसके अलावा हैदराबाद के निजाम अलग स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहते थे और हैदराबाद को शामिल करने भारतीय सेना ने निजाम की फौज से युद्ध किया तब जाकर हैदराबाद भारत का हिस्सा बना.

'दे रखा था स्वतंत्र देश का दर्जा'
टीएस सिंहदेव ने बताया कि '15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने डोमिनियन ऑफ इंडिया के तहत देश के उस भू भाग को हस्तांतरित किया था, जिसमें जमीदारी-जागीरदारी प्रथा लागू थी, लेकिन जिन क्षेत्रों में रियासतें थी, राजा-महाराजा थे, उन रियासतों को अंग्रेजों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत स्वतंत्र देश का दर्जा दे रखा था और ये राज्य या कहें देश इस बात के लिए स्वतंत्र थे की वो डोमिनियन ऑफ इंडिया मतलब आजाद भारत में शामिल हो या नहीं. देश की रियासतों को भारत का हिस्सा बनाने की कवायद शुरू हुई'.

'ये रियासतें हुई थी शामिल'
सरगुजा रियासत के विलय को लेकर सिंहदेव ने बताया कि इस्टर्न स्टेट एजेंसी बनाई गई जिसमें ओडीसा की 24, छत्तीसगढ़ की 14 और वर्तमान झारखंड की 2 रियासतें शामिल थीं. ईस्टर्न स्टेट एजेंसी ने डोमिनियन ऑफ इंडिया में विलय के लिए विधिवत एग्रीमेंट किया था. इस तरह से एक जनवरी 1948 को सरगुज़ा, छत्तीसगढ़, ईस्टर्न स्टेट एजेंसी की रियासतें ही नहीं देश की 545 रियायतें भारत का हिस्सा बनी औऱ पूर्ण लोकतांत्रिक गणराज्य होने का गौरव इन्हें प्राप्त हुआ.

'अंग्रेजों के शासनकाल में दो व्यवस्थाएं थीं'
सिंहदेव ने बताया कि 'अंग्रेजों या उसके पहले मराठाओं के शासन काल में दो तरह की प्रशासनिक व्यवस्थाएं थीं. एक थी जमीदारी-जागीरदारी और दूसरी थी रियासतों की जिसमें राजा महाराजा होते थे. रियासतों को जो अधिकार मिले थे वो अधिकार जमीदारी और जागीरदारी को नहीं मिले थे, जैसे सजा देना, मृत्यु दंड देना, टैक्स लगाना ऐसे कुछ विशेष अधिकार सिर्फ राजाओं के पास थे.

'प्रीवि पर्सेस की व्यवस्था की गई थी'

टीएस बाबा ने बताया कि 'जमीदारी-जागीरदारी और अंग्रेजों की सीधी हुकूमत चला करती थी और इन्हीं रियासतों के साथ डोमिनियन ऑफ इंडिया ने इन्हें भारत मे शामिल करने के लिए एग्रीमेंट किया और उस एग्रीमेंट के तहत शामिल रियासतों को प्रीवि पर्सेस यानी की वित्तीय लाभ के साथ-साथ शासकीय सुविधाओं जैसे, राजाओं का एक प्रतिनिधि उच्च सदन में, यात्रा में आरक्षण, शिकार की व्यवस्था, सुरक्षा कर्मी जैसे कई ऐशो आराम की सुविधाएं दी जा रही थी'.

इंदिरा गांधी ने किया विरोध
इंदिरा गांधी देश की 545 राजाओं को मिलने वाले प्रिवी पर्स के विरोध में थी उन्होंने इसे बंद करने का 1969 में ही प्रयास किया था, बहुमत होने पर लोकसभा में तो यह बिल पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में एक वोट से प्रीवि पर्स बिल गिर गया.

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा केस
राष्ट्रपति की कृपा से इंदिरा ने इसे लागू करा दिया और इसके खिलाफ राजाओं का एक समूह सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गया और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी. इस तरह प्रीवि पर्स खत्म नहीं हो सका. इंदिरा गांधी के इस फैसले से जनता का समर्थन मिलता जा रहा था. जनता राजाओं को दी जा रही सुविधाओं के खिलाफ यही, लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने राजाओं को मिलने वाली प्रीवि पर्स सहित सभी सुविधाओं को खत्म किया, संविधान में 26 वां संसोधन किया गया और राजा और प्रजा को समान कर दिया गया.

क्या है प्रीवि पर्सेस
इस नियम के तहत राजाओं की संपत्ति या आय पर उन्हें किसी प्रकार का टेक्स नहीं देना होता था, जिसे प्रीवि पर्स कहा गया. इसमें सरकार राजाओं को अपने वित्त से कुछ देती तो नहीं थी, लेकिन इतनी गरीबी वाले देश में सबसे अधिक संपत्ति वाले राजाओं की आय पर टैक्स ना लगना ये देश की जनता को भी मंजूर नहीं था, तभी तो इंदिरा के इस फैसले ने उन्हें इतना बड़ा जन समर्थन दिया.

Intro:सरगुज़ा : आम तौर पर हम सब यही जानते हैं की 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया था और बस उसके बाद से ही सब सही हो गया, भारत मे लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हुई और अंग्रेजो के भारत छोड़ने के बाद सब कुछ सही हो चुका है, मोटे तौर पर आजादी के बाद आई आफत में पाकिस्तान के विभाजन की बातें देश जानता है।

लेकिन ऐसा नही था अंग्रेज भारत तो छोड़कर चले गए थे, लेकिन अपने दिमाग का एक ऐसा फितूर वो भारत मे छोड़ गए थे, जिसकी शायद आजादी को बाद भी भारत एक पूर्ण लोकतांत्रिक गणराज्य नही बन पाता, लेकिन फिर भी ऐसा हुआ, जाहिर है इसके पीछे देश के तत्कालीन नेताओ और इसमे शामिल हर सख्स की सूझ बूझ काम आई जिसकी वजह से सम्पूर्ण भारत आजाद होकर एक गणराज्य बना।

दरअसल 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो में डोमिनियन ऑफ इंडिया को देश के उस भू भाग को हस्तांतरित किया था जिसमे जमीदारी-जागीरदारी प्रथा लागू थी, लेकिन जिन क्षेत्रो में रियासतें थी राजा महाराजा थे, उन रियासतों को अंग्रेजो ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत स्वतंत्र देश का दर्जा दे रखा था, और ये स्वतंत्र थे इस बात के लिये की ये डोमिनियन ऑफ इंडिया मतलब आजाद भारत मे शामिल हो या नही। देश की रियासतों को भारत का हिस्सा बनाने की कवायद शुरू हुई सरदार पटेल को इसकी जवाबदारी दी गई और सरदार पटेल ने रियासतों के राजाओं से समझौता कर देश के 544 राजा महाराजाओं को डोमिनियन आफ इंडिया में शामिल किया और विधिवत 1 जनवरी 1948 को देश की रियासतें भारत का हिस्सा बनी, इसलिए देश की सम्पूर्ण आजादी इस दिन मानी जा सकती है।

दरअसल अंग्रेजों या उसके पहले मराठाओ के शासन काल मे दो तरह की प्रशासनिक व्यवस्थाये थी, एक थी जमीदारी-जागीरदारी और दूसरी थी रियासतों की जिसमे राजा महाराजा होते थे, रियासतों को जो अधिकार प्राप्त थे वो जमीदारी-जागीरदारी को नही थे, जैसे क़ानून में सजा देना, मृत्यु दंड देना, टेक्स लगाना ऐसे कुछ विशेष अधिकार सिर्फ राजाओं के पास थे, जमीदारी-जागीरदारी ओर अंग्रेजों की सीधी हुकूमत हुआ करती थी। और इन्ही रियासतों के साथ डोमिनियन ऑफ इंडिया ने इन्हें भारत मे शामिल करने के किये एग्रीमेंट किया और उस एग्रीमेंट के तहत शामिल रियासतों को प्रीवि पर्सेस यानी की वित्तीय लाभ देने जैसी कई शासकीय सुविधाओं जैसे, राजाओं का एक प्रतिनिधि उच्च सदन में, यात्रा में आरक्षण, शिकार की व्यवस्था, सुरक्षा कर्मी जैसे कई ऐशो आराम की सुविधाएं दी जा रही थी।

प्रीवि पर्स पर इंदिरा का विरोध

देश के 545 राजाओं को मिलने वाले प्रिवी पर्स के विरोध में इंदिरा गांधी थी, उन्होने इसे बंद करने 1969 में ही प्रयास किया था, बहुमत होने पर लोकसभा में तो यह बिल पारित हो गया लेकिन राज्य सभा मे एक वोट से प्रीवि पर्स बिल पास नही हुआ लेकिन राष्ट्रपति की कृपा से इंदिरा ने इसे लागू करा दिया, इसके खिलाफ राजाओं का एक समूह सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गया और सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी, इस तरह प्रीवि पर्स खत्म नही हो सका। इंदिरा के इस फैसले से जनता का समर्थन उनके साथ बढ़ता जा रहा था, जनता राजाओं को दी जा रही सुविधाओं के खिलाफ यही,लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने राजाओं को मिलने वाली प्रीवि पर्स सहित सभी सुविधाओं को खत्म किया, संविधान में 26 वां संसोधन किया गया और राजा और प्रजा को समान कर दिया गया।

क्या है प्रीवि पर्सेस

दरअसल इस नियम के तहत राजाओं की संपत्ति या आय पर उन्हें किसी प्रकार का टेक्स नही देना होता था, जिसे प्रीवि पर्स का गया, इसमे सरकार राजाओं को अपने वित्त से कुछ देती तो नही थी, लेकिन इतनी गरीबी वाले देश मे सबसे अधिक संपत्ति वाले राजाओं की आय पर टैक्स ना लगना ये देश की जनता को भी मंजूर नही था, तभी तो इंदिरा के इस फैसले ने उन्हें इतना बड़ा जन समर्थन दिया।


छत्तीसगढ़ और सरगुज़ा से भी संबंध

आपको बतादें की छत्तीसगढ़ का अम्बिकापुर संभाग दरअसल यही सरगुज़ा रियासत का मुख्यालय था, सरगुज़ा को स्टेट का दर्जा प्राप्त था, यहां के राजा महाराजाओं की कहानियां भी प्रसिद्ध हैं, और सरगुज़ा राजपरिवार के अंतिम महाराजा मतलब डोमीनियन ऑफ इंडिया में विलय के समय रहे स्व. मदनेश्वर शरण सिंह देव जिनके बड़े बेटे छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री हैं टी एस सिंह देव सरगुज़ा के लोग इन्हें आज भी महाराजा साहब कह कर संबोधित करते हैं। लिहाज हमने टी एस सिंह देव से ही जाना की आखिर यह माजरा क्या था, क्यो सरगुज 1 जनवरी 1948 को आजाद हुआ, सिंह देव ने पूरे मामले में विस्तृत जानकारी दी और कहा की वर्तमान छत्तीसगढ़ में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम चारो दिशाओं में रियासते थी, 14 राजा महाराजा थे, बीच के हिस्से बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग ये जमींदारी का हिस्सा था, कहने को यहां भी राजा कह देते हैं पर वो प्रशासनिक अधिकार इन्हें प्राप्त नही था, उन्होंने बताया की सरदार पटेल जब रियासतों को डोमीनियन ऑफ इंडिया का हिस्सा बनाने की कवायद कर रहे थे, तब कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं में सहमति नही दी थी, कश्मीर में जब कबीलाई घुस आए और वहां के राजा ने भारत से मदद मांगी तब से कश्मीर भारत का हिस्सा है। वहीं जूना गढ़ के राजा ने तो पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी थी, लेकिन वहां इसके लिए मतदान किया गया और पूरी जनता ने भारत के साथ रहने का फैसला किया, इसके अलावा हैदराबाद के निजाम अलग स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहते थे, और हैदराबाद को शामिल करने भारतीय सेना ने निजाम की फौज से युद्ध किया औऱ तब हैदराबाद भारत का हिस्सा बना, इसी प्रकार सरगुज़ा रियासत के विलय में सिंह देव ने बताया की इस्टर्न स्टेट एजेंसी बनाई गई जिसमें ओडीसा की 24, छत्तीसगढ़ की 14 और वर्तमान झारखंड की 2 रियासतें शामिल थी। और ईस्टर्न स्टेट एजेंसी ने डोमिनियन ऑफ इंडिया में विलय के लिए विधिवत एग्रीमेंट किया था। और इस तह 1 जनवरी 1948 को सरगुज़ा, छत्तीसगढ़, ईस्टर्न स्टेट एजेंसी की रियासते ही नही देश की 545 रियायतें भारत का हिस्सा बनी औऱ पूर्ण लोकतांत्रिक गणराज्य होने का गौरव इन्हें प्राप्त हुआ।


Body:121 - टी एस सिंहदेव (मंत्री छ. ग. शासन / सरगुज़ा रियासत के अंतिम महाराजा के पुत्र)

देश दीपक गुप्ता सरगुज़ा


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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