सरगुजा : Why post mortem necessary after death हत्या, आत्महत्या या दुर्घटना से हुई मौत के कारण अलग अलग होते हैं. अक्सर कई मामलों में मौत के कारणों पर संदेह होता है. ऐसे संदेह को दूर करने पुलिस अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिये शव का पोस्टमार्टम कराती है. लेकिन पोस्टमॉर्टम के जरिये कैसे हत्या के कारणों का पता चलता है.? फोरेंसिक साइंस से किस तरह पुलिस की मदद एक डॉक्टर करता है. कैसे न्याय दिलाने में पोस्टमॉर्टम की अहम भूमिका होती है. इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने बात की अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर एसके बाघ से. How postmortem solves death mystery
पुलिस और मजिस्ट्रेट जांच में अंतर : एसके बाघ (Dr SK Bagh) कहते हैं " फोरेंसिक मेडिसिन साइंस (forensic medicine science) का एक ऐसा डिपार्टमेंट है जो न्यायालयीन प्रक्रिया में कानूनी उद्देश्यों की संवैधानिक पूर्ती करने के लिये मेडिकल और पैरा मेडिकल नॉलेज को न्याय के लिये यूज करना फॉरेंसिक मेडिसिन है. पोस्टमार्टम पुलिस कराती है. जो एमएलसी केस है. उनमें पोस्टमार्टम होता है. नॉन एमएलसी केस का पोस्टमार्टम नहीं होता है. सीआरपीसी की धारा 174 के तहत पुलिस जांच करती है और 176 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट जांच होती है. पुलिस केस के अंतर्गत जैसे रोड एक्सीडेंट हो गये, सुसाइड हो गये, सभी प्रकार के संदेहास्पद मौत हो गई इन पर पुलिस जांच करेगी, और धारा 176 के अंतर्गत कार्यपालिक मजिस्ट्रेट वो जांच करेंगे जैसे शादी के 7 साल के अंतर्गत किसी महिला की मौत होती है, या पुलिस फायरिंग या कस्टडी में किसी की डेथ होती है या ज्यूडीशियल कस्टडी में मौत होती है या फिर शव का उत्खनन करना होता है तो मजिस्ट्रेट जांच करते हैं.''
आत्महत्या के मामले में पोस्टमार्टम : अगर किसी को चाकू मारा गया है तो हमे ये बताना होता है कि चाकू मारा गया है या किसी अन्य हथियार से हत्या हुई है. हमारे पास पुलिस फांसी के मामले लाती है. हमें ये बताना होता है कि फांसी लगाने से मौत हुई है या मौत के बाद फांसी पर लटकाया गया है. जब बॉडी हमारे पास आती तो हम बाहरी और आंतरिक परीक्षण करते हैं. बाहरी परीक्षण में यदि गले मे एंटी मार्टम निशान है या पोस्टमार्टम लिगेचर मार्क है, इस चीज को हम ध्यान से देखते हैं. इससे पता चल जाता है क्योंकी एंटी मार्टम का कलर अलग होता है, इंज्युरी का जो कम्प्रेशन मार्क गले मे बना है वो और पोस्टमार्टम लीगेचर मार्क का कलर अलग होता है.
पानी में डूबने से हुई मौत में पोस्टमार्टम कैसे होता है : जब भी पुलिस पानी मे डूबने के केस लाती है तो सबसे पहले हम बाहरी रूप से देखते हैं क्योंकि अगर पानी मे डूबने से मौत हुई है तो उसके नाक में झाग मिलेगा, हाथ और पैर के पंजों में सिकुड़न सी आ जाती है वो देखते हैं. फिर आंतरिक परीक्षण में उसके पेट मे पानी मिलता है उसके फेफड़े में डायटम मिलता है डायटम जो पानी मे होता है. इसके बाद हम उसके हड्डी निकलते हैं और डायटम टेस्ट के लिये उसे एफएसएल में भेजते हैं. अगर डायटम टेस्ट पॉजिटिव आया इसका मतलब ये है को वो जिंदा था और जिंदा अवस्था मे वो पानी पिया है. अगर निगेटिव आ गया इसका मतलब वो मरा किसी और वजह से है और उसे पानी में फेंक दिया गया है.''
बर्न केसेस में कैसे पता चलेगा : "बर्न केस में एंटी मार्टम बर्न में अगर कोई जीवित अवस्था मे जला है तो उसमें रेड लाइन डिमार्केशन मिलता है उसमें साइन ऑफ इंफ्लामेशन मिलता है. ये हम सबसे पहले देखते हैं. साथ मे जीवित इंसान के जलने में गले मे कार्बन पार्टिकल मिलता है ये कार्बन मरने के बाद जलने में नही मिलता है"
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चाकू बाजी के मामले : "चाकू बाजी के केस में स्ट्रैप इंज्युरी में हम देखते हैं कि उसका दिशा किस तरफ है. उसका टेलिंग इफ़ेक्ट किस तरफ है. तो उससे पता चल जाता है और हम बताते हैं कि चाकू से मारा गया है या फिर किसी और धारदार हथियार से. ये सब हम पुलिस को बताते हैं. वो डबल एज का है या सिंगल एज का है ये भी बताते हैं. डॉ. बाघ आम जनता से कहते हैं की न्याय दिलाने के लिये पीएम कराना चाहिये, तभी तो संदेह की स्थिति में उसे न्याय मिल सकेगा.''