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यहां हर साल बनाया जाता है मां महामाया का सिर, जानें इसके पीछे क्या है कहानी ?

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Published : Apr 13, 2021, 5:34 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

कोरोना वायरस ने सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा, आस्था और धर्म भारी नुकसान पहुंचाया है. इस साल भी कोरोना ने चैत्र नवरात्र को फीका कर दिया है. सरगुजा के मां महामाया मंदिर में इस साल भी कोरोना के कारण रौनक फीकी है. मंदिर तो खोला गया है, लेकिन श्रद्धालु सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दूर से ही दर्शन और पूजा कर सकेंगे.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

सरगुजा: मां महामाया और मां समलाया से जुड़ी मान्यता बेहद ही रोचक है. जानकार बताते हैं, मराठा यहां से मूर्ति ले जाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन वह मूर्ति उठा नहीं पाए और माता की मूर्ति का सिर उनके साथ चला गया. माता का सिर बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठों ने रख दी, तभी से रतनपुर की मां महामाया की महिमा भी विख्यात है. माना जाता है कि रतनपुर और अंबिकापुर में मां महामाया के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

maa mahamaya temple ambikapur
मंदिर में विराजमान मां महामाया

मंदिर में बैठता था बाघ

क्वांर के महीने की शारदीय नवरात्रि में छिन्नमस्तिका महामाया के सिर का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं. ऐसे कई रहस्य महामाया मंदिर से जुड़े हैं. जिससे बहुत से लोग अनजान हैं. सरगुजा राजपरिवार और इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि मां महामाया मंदिर का निर्माण सन 1910 में कराया गया था. इससे पहले एक चबूतरे पर मां स्थापित थी और राज परिवार के लोग जब पूजा करने जाते थे तो वहां बाघ बैठा रहता था. सैनिक जब बाघ को हटाते थे तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

एक साथ थीं मां महामाया-समलाया

जिस प्रतिमा को मां महामाया के नाम से लोग पूजते हैं, दरअसल पहले इनका नाम समलाया था. महामाया मंदिर में ही दो मूर्तियां स्थापित थी. पहले महामाया को बड़ी समलाया कहा जाता था और समलाया मंदिर में विराजी मां समलाया को छोटी समलाया कहते थे. बाद में जब समलाया मंदिर में छोटी समलाया को स्थापित किया गया, तब बड़ी समलाया को महामाया कहा जाने लगा. तभी से अंबिकापुर के नवागढ़ में विराजी मां महामाया और मोवीनपुर में विराजी मां समलाया की पूजा लोग इन रूपों में कर रहे हैं.

maa mahamaya temple ambikapur
मंदिर में दीप जलाते श्रद्धालु

साथ में विराजी मां विंध्यवासिनी

महामाया और समलाया मंदिर में दो-दो मूर्तियां होने का कारण इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि दोनों ही मंदिरों में देवी को जोड़े में रखना था. इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंह देव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना इन दोनों मंदिरों में कराईं. तब से महामाया और समलाया के बगल में विंध्यवासिनी को भी पूजा जाता है. अंबिकापुर की महामाया मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. माना जाता है कि रतनपुर की महामाया भी इसी मूर्ति का अंश है. संबलपुर की समलाया की मूर्ति और डोंगरगढ़ की मूर्ति का भी संबंध सरगुजा से बताया जाता है.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

मां महामाया के दरबार में जगमगाये 15 हजार आस्था के दीप

सरगुजा के लोगों का अटूट विश्वास

सरगुजा के वनांचल में अपार मूर्तियां यहां-वहां बिखरी हुई थी और जब सिंहदेव राजपरिवार यहां आया तभी मूर्तियों को वापस संग्रहित कर पूजा पाठ शुरू किया गया. इसके बाद से ही आसपास के क्षेत्रों में यहां से मूर्तियां ले जाई गई. श्रद्धा-आस्था और विश्वास के बीच मान्यताओं का अहम योगदान रहा है. ऐसी ही कुछ मान्यता है अंबिकापुर की महामाया की, जिस वजह से यहां निवास करने वाला हर इंसान अपने शुभ कार्य की पहली अर्जी महामाया के सामने ही लगाता है. लोगों का अटूट विश्वास है कि मां किसी को भी निराश नहीं करती हैं.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

सिंहदेव परिवार की कुल देवी हैं मां महामाया

पूरे छत्तीसगढ़ से लोग मां महामाया के दर्शन करने आते हैं. नवरात्र में भक्तों की लंबी लाइन लगी रहती है. अंबिकापुर के नवागढ़ में विराजी मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की कुलदेवी हैं. टीएस सिंहदेव मंदिर में विशेष पूजा करते हैं और उनके परिवार के लोग ही मां महामाया और समलाया के गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं. मान्यता है कि यह मूर्ति बहुत पुरानी है. सरगुजा राजपरिवार के जानकारों के अनुसार रियासत काल से राजा इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आ रहे हैं.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

छिन्नमस्तिका हैं माता

मां महामाया की मूर्ति छिन्नमस्तिका होने के कारण हर वर्ष नवरात्र में राज परिवार के कुम्हारों के द्वारा माता के सिर का निर्माण मिट्टी से किया जाता है. इसी आस्था की वजह से सरगुजा में एक जस गीत बेहद प्रसिद्ध है. गीत के बोल हैं, 'सरगुजा में धड़ है तेरा हृदय हमने पाया, मुंड रतनपुर में मां सोहे कैसी तेरी माया'. मां के जस गीतों में सरगुजा में एक यह भी गीत प्रसिद्ध है. यह भजन सरगुजा में विराजी मां महामाया मंदिर की पूरी महिमा का बखान करते हुए लिखा गया है.

maa mahamaya temple ambikapur
मंदिर में भक्तों की कतार

कोरोना ने घटाई रौनक

कोरोना वायरस ने बीते 1 साल से मंदिर में होने वाले आयोजन और उत्सव का रंग फीका कर दिया है. अब यहां न भीड़ होती न जस गीत होते हैं, सिर्फ साधारण पूजा पाठ और श्रद्धालुओं को दूर से दर्शन से ही संतोष करना होता है. इस वर्ष भी नवरात्र में कोना प्रोटोकाल के तहत श्रद्धालुओं को माता के दर्शन मिल सकेंगे, हालांकि अतिरिक्त किसी भी प्रकार के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई है.

सरगुजा: मां महामाया और मां समलाया से जुड़ी मान्यता बेहद ही रोचक है. जानकार बताते हैं, मराठा यहां से मूर्ति ले जाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन वह मूर्ति उठा नहीं पाए और माता की मूर्ति का सिर उनके साथ चला गया. माता का सिर बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठों ने रख दी, तभी से रतनपुर की मां महामाया की महिमा भी विख्यात है. माना जाता है कि रतनपुर और अंबिकापुर में मां महामाया के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

maa mahamaya temple ambikapur
मंदिर में विराजमान मां महामाया

मंदिर में बैठता था बाघ

क्वांर के महीने की शारदीय नवरात्रि में छिन्नमस्तिका महामाया के सिर का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं. ऐसे कई रहस्य महामाया मंदिर से जुड़े हैं. जिससे बहुत से लोग अनजान हैं. सरगुजा राजपरिवार और इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि मां महामाया मंदिर का निर्माण सन 1910 में कराया गया था. इससे पहले एक चबूतरे पर मां स्थापित थी और राज परिवार के लोग जब पूजा करने जाते थे तो वहां बाघ बैठा रहता था. सैनिक जब बाघ को हटाते थे तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे.

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मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

एक साथ थीं मां महामाया-समलाया

जिस प्रतिमा को मां महामाया के नाम से लोग पूजते हैं, दरअसल पहले इनका नाम समलाया था. महामाया मंदिर में ही दो मूर्तियां स्थापित थी. पहले महामाया को बड़ी समलाया कहा जाता था और समलाया मंदिर में विराजी मां समलाया को छोटी समलाया कहते थे. बाद में जब समलाया मंदिर में छोटी समलाया को स्थापित किया गया, तब बड़ी समलाया को महामाया कहा जाने लगा. तभी से अंबिकापुर के नवागढ़ में विराजी मां महामाया और मोवीनपुर में विराजी मां समलाया की पूजा लोग इन रूपों में कर रहे हैं.

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मंदिर में दीप जलाते श्रद्धालु

साथ में विराजी मां विंध्यवासिनी

महामाया और समलाया मंदिर में दो-दो मूर्तियां होने का कारण इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि दोनों ही मंदिरों में देवी को जोड़े में रखना था. इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंह देव की मां और महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से उनकी कुलदेवी विंध्यवासिनी की मूर्ति की स्थापना इन दोनों मंदिरों में कराईं. तब से महामाया और समलाया के बगल में विंध्यवासिनी को भी पूजा जाता है. अंबिकापुर की महामाया मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. माना जाता है कि रतनपुर की महामाया भी इसी मूर्ति का अंश है. संबलपुर की समलाया की मूर्ति और डोंगरगढ़ की मूर्ति का भी संबंध सरगुजा से बताया जाता है.

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मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

मां महामाया के दरबार में जगमगाये 15 हजार आस्था के दीप

सरगुजा के लोगों का अटूट विश्वास

सरगुजा के वनांचल में अपार मूर्तियां यहां-वहां बिखरी हुई थी और जब सिंहदेव राजपरिवार यहां आया तभी मूर्तियों को वापस संग्रहित कर पूजा पाठ शुरू किया गया. इसके बाद से ही आसपास के क्षेत्रों में यहां से मूर्तियां ले जाई गई. श्रद्धा-आस्था और विश्वास के बीच मान्यताओं का अहम योगदान रहा है. ऐसी ही कुछ मान्यता है अंबिकापुर की महामाया की, जिस वजह से यहां निवास करने वाला हर इंसान अपने शुभ कार्य की पहली अर्जी महामाया के सामने ही लगाता है. लोगों का अटूट विश्वास है कि मां किसी को भी निराश नहीं करती हैं.

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मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

सिंहदेव परिवार की कुल देवी हैं मां महामाया

पूरे छत्तीसगढ़ से लोग मां महामाया के दर्शन करने आते हैं. नवरात्र में भक्तों की लंबी लाइन लगी रहती है. अंबिकापुर के नवागढ़ में विराजी मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की कुलदेवी हैं. टीएस सिंहदेव मंदिर में विशेष पूजा करते हैं और उनके परिवार के लोग ही मां महामाया और समलाया के गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं. मान्यता है कि यह मूर्ति बहुत पुरानी है. सरगुजा राजपरिवार के जानकारों के अनुसार रियासत काल से राजा इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आ रहे हैं.

maa mahamaya temple ambikapur
मां महामाया मंदिर अंबिकापुर

छिन्नमस्तिका हैं माता

मां महामाया की मूर्ति छिन्नमस्तिका होने के कारण हर वर्ष नवरात्र में राज परिवार के कुम्हारों के द्वारा माता के सिर का निर्माण मिट्टी से किया जाता है. इसी आस्था की वजह से सरगुजा में एक जस गीत बेहद प्रसिद्ध है. गीत के बोल हैं, 'सरगुजा में धड़ है तेरा हृदय हमने पाया, मुंड रतनपुर में मां सोहे कैसी तेरी माया'. मां के जस गीतों में सरगुजा में एक यह भी गीत प्रसिद्ध है. यह भजन सरगुजा में विराजी मां महामाया मंदिर की पूरी महिमा का बखान करते हुए लिखा गया है.

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मंदिर में भक्तों की कतार

कोरोना ने घटाई रौनक

कोरोना वायरस ने बीते 1 साल से मंदिर में होने वाले आयोजन और उत्सव का रंग फीका कर दिया है. अब यहां न भीड़ होती न जस गीत होते हैं, सिर्फ साधारण पूजा पाठ और श्रद्धालुओं को दूर से दर्शन से ही संतोष करना होता है. इस वर्ष भी नवरात्र में कोना प्रोटोकाल के तहत श्रद्धालुओं को माता के दर्शन मिल सकेंगे, हालांकि अतिरिक्त किसी भी प्रकार के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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