सरगुजा : भारत अपने अंदर कई धर्मों और समुदायों को समेटे हुए है.पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक अलग-अलग समुदाय के लोग निवास करते हैं. जिनके रीति रिवाज अलग हैं. अलग-अलग धर्मों में दिन के हिसाब से कार्यक्रम तय किए जाते हैं.हिंदू धर्म में जहां ईस्वी कैलेंडर शक संवत या विक्रम संवत को माना जाता है,वैसे ही मुस्लिम समुदाय में हिजरी कैलेंडर से दिन तय किए जाते हैं.आज हम आपको बताएंगे हिजरी कैलेंडर क्या है और किस तरह से मुस्लिमों के त्यौहारों को तय करती है.हिजरी कैलेंडर से जुड़े सवालों की जानकारी नाजमिया मस्जिद रसूलपुर के इमाम जनाब सगीर अहमद ने दी है.
चाँद के 28 रास्तों से तय होती हैं तारीख : हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश से जैसे ईसा कैलेंडर की शुरुआत हुई, वैसे ही जब नबी ए करीम मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम मक्का से अधर्मियों की ज्यादती के कारण वतन छोड़कर के मदीना गए, तब से हिजरी की शुरुआत हुई. कुरान के मुताबिक चांद लोगों के लिए जंत्री या कैलेंडर की तरह है. चांद कभी पतला, कभी मोटा होता है. कभी पश्चिम से थोड़ा उत्तर तो कभी दक्षिण तो कभी बीच मे निकलता है. ये चांद के रास्ते हैं. इन रास्तों को फलक कहते हैं.इनकी संख्या 28 मानी गई हैं.
कितने दिन का होता है महीना : हिजरी कैलेंडर में चांद के हिसाब से ही महीने और तारीखें तय की जाती हैं.यानी चांद का कैलेंडर में बड़ा योगदान रहता है.
चांद कभी एक दिन गायब होता है तो कभी दो दिन.इसी के हिसाब से महीने तय किए जाते हैं.जैसे यदि चांद एक दिन गायब हुआ तो महीना 29 दिन का होगा.वहीं दो दिन गायब रहने पर 30 दिन का महीना हो जाएगा. इस तरीके से हिजरी कैलेंडर देखेंगे आप तो 29 और 30 का महीना होगा. 31 और 28 का महीना नही होगा. क्योंकि ये तारीख चांद के हिसाब से चेंज होती है जबकि ईस्वी में सूरज के हिसाब से तारीख तय होती है. हिजरी में चांद जैसे निकलता है नई तारीख शुरू हो जाती है और दूसरे दिन चांद निकलते तक रहती है. मौलाना सगीर अहमद, इमाम नाजमिया मस्ज़िद रसूलपुर
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हिजरी कैलेंडर में होते हैं बारह महीने : हिजरी कैलेंडर में भी साल में 12 महीने होते हैं. इनमें से 4 महीने मोहतरम महीना है. इस्लामिक कैलेंडर में महीना 12 है. इसमें साल की शुरुआत ईदुल अजहा (बकरीद) से जाना जाता है. ये महीना हज का है अपने यहां हज नहीं है तो कुर्बानी देते हैं. जैसे ही बकरीद का यह महीना खत्म होगा तो नया वर्ष आ जाएगा. यानी मोहर्रामुल हराम (मोहर्रम) की पहली तारीख इस्लामिक वर्ष का पहला दिन या नये वर्ष की शुरुआत का दिन होता है.