सरगुजा: कोरोना ने लोगों से तीज-त्योहार मनाने का हक भी छीन लिया है. भारत में बीते 4 महीनों से कोई भी त्योहार हर्षोल्लास के साथ नहीं मनाया गया. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब सभी त्योहारों में सूनापन रहा हो. छत्तीसगढ़ में भी इसका असर देखने को मिला. हर साल सरगुजा में गंगा दशहरा धूमधाम से मनाया जाता था, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो सका. 5 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार की रौनक एक दिन भी न दिखी.
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गंगा दशहरा पूरे देश के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है. प्रदेश के सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा को अनूठे ढंग से मनाया जाता है. इस अवसर पर यहां पांच दिनों का मेला लगता है. ग्रामीण अंचल में गंगा दशहरा मनाने की अपनी अलग परंपरा है.
सदियों से चल रही है परंपरा
सरगुजावासियों की मान्यता है कि जो जलाशय कमल के पत्तों से भरा होता है, मां गंगा वहां विराजती हैं इसलिए जलाशय को गंगा तुल्य मानकर विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है. साथ ही गंगा दशहरे के अवसर पर कठपुतली विवाह करने की पंरपरा सदियों से यहां चली आ रही है. सरगुजा के ग्रामीण अंचलों में गंगा दशहरा के अवसर पर कठपुतली विवाह करने की प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो लोगों को अपनी ओर काफी आकर्षित भी करती है.
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कठपुतली विवाह का प्रचलन
विश्व के प्राचीन रंगमंच पर खेले जाने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों में से एक है कठपुतली का मंचन. सरगुजा अंचल में हर साल जेठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के अवसर पर गांव की कुंवारी लड़कियां कठपुतली का विवाह कराती हैं. लकड़ी के गुड्डा-गुड्डी बनाकर तीन दिनों तक विवाह के सभी रस्मों को निभा कठपुतली विवाह का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में घर के बड़े बुजुर्ग विवाह की सभी रस्में बच्चों के साथ मिलकर निभाते हैं और विधिवत कठपुतली विवाह कराते हैं.
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बच्चों को विवाह संस्कार सिखाने की परंपरा
गांव की कुवांरी लडकियां गुड्डे-गुड्डी की मां और लड़के के पिता की भूमिका निभाती हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इस आयोजन का उद्देश्य घर के बच्चों का विवाह संस्कार की जानकारी देना और मनोरंजन कराना है. कठपुतली विवाह के बाद गंगा दशहरे के दिन इसे गंगातुल्य जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है. आधुनिकता की आड़ में जहां एक ओर परंपराओं के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है. वहीं सरगुजा अंचल में बच्चों को विवाह संस्कारों से अवगत कराने का यह उत्तम माध्यम है.
गंगा दशहरा मेला और 'दसराहा गीत'
सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा को 'गंगा दसराहा' के नाम से जाना जाता है. इस अवसर पर पांच दिनों तक दशहरा मेले का भी आयोजन किया जाता है. सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा के अवसर पर 5 दिनों तक मेले का आयोजन किया जाता है. मेले में झूला, खिलौने, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, फल और मिठाईयों की दुकाने सजी हुई रहती हैं.
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पान खाने का विशेष महत्व
दसराहा मेला में पान की दुकानों का विशेष महत्व रहता है. क्योंकि इस दिन पान खाने का विशेष महत्व माना जाता है. युवक-युवतियां पान खाकर छाता ओढ़ 'दसराहा गीतों' का गायन करते हैं. दसराहा गीतों में सवाल-जवाब किया जाता है. दसराहा गीत को 'धंधा गीता' और 'उधुवा गीत' भी कहा जाता है. यह सरगुजा अंचल के गंगा दशहारा मेले का विशेष आकर्षण होता है.
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