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सुरों से है बड़ा ही अद्भुत संबंध, पहले सुरगूंजा और अब सुरगुजा पड़ा नाम: अजय कुमार चतुर्वेदी

अविभाजित सरगुजा जिला या रियासत काल में हमेशा संगीतमय रही है. इसलिए इसे लोग सरगुजा ( SURGUJA ) कहते हैं. ईटीवी भारत (ETV BHARAT) ने पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी (Ajay Kumar Chaturvedi) खास बातचीत की. उन्होंने पुराने वाद्ययंत्रों के बारे में बताया. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

surguja
अजय कुमार चतुर्वेदी से खास बातचीत
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Published : Oct 11, 2021, 7:15 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: अविभाजित सरगुजा जिला (Undivided Surguja District) या रियासत काल में हमेशा संगीतमय रही है. इसलिए इसे लोग सरगुजा (SURGUJA) कहते हैं, लेकिन दस्तावेजों में सरगुजा कई स्पेलिंग SURGUJA लिखा जाता है, अर्थात इसे सुरगुजा भी पढ़ा जा सकता है. माना जाता है कि प्राचीन काल में इस धरती का सुरगूंजा था जो बाद में सरगुजा हो गया. सुरगूंजा से तात्पर्य था जहां सुर गूंजते हों ऐसी जगह को सुरगूंजा कहा गया. अब ऐसे कौन से कारण है कि घनघोर वन क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र को सुरगूंजा कह दिया गया. इसके प्रमाण मिलते हैं यहां के प्राचीन वाद्ययंत्र में इसके संरक्षण और संवर्धन पर काम कर रहे हैं.

ईटीवी भारत के संवाददाता ने पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी बातचीत की. इस खास बातचीत में उन्होंने बेहद अद्भुत बातें बताई. जिनके अनुसार यहां लगभग 80 प्रकार के प्राचीन वाद्ययंत्र होते थे, कुछ ऐसे अद्भुत वाद्ययंत्र हुआ करते थे. जिनसे खतरनाक शेरों को भगाने और बुलाने का काम किया जाता था.

पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी बातचीत



सवाल: कितने वाद्य यंत्र हैं और इनकी विशेषता क्या है?

जवाब: सरगुजा अंचल में पहले ऐसे करीब 70 से 80 वाद्य यंत्र हुआ करते थे, बाद में वो या तो विलुप्त हो गए या विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन वाद्य यंत्रों को जंगली जानवरों के चमड़े, उनके दांत, बांस, लकड़ी से बनाया जाता था. कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. यहां घनघोर जंगल हुआ करता था और खतरनाक जंगली जानवरों से बचने के लिये ग्रामीणों के पास कोई हथियार नहीं था तो इन वाद्य यंत्रों को ग्रामीणों ने अपना हथियार बनाया.

शेर जैसे जंगली जानवर को उस वाद्य यंत्र की आवाज से बुला लिया करते थे और ऐसे भी वाद्य यंत्र थे जिससे शेर को भगा दिया जाता था. अपनी और अपनी खेती की रक्षा लोग इन्ही वाद्य यंत्रों से करते थे. यहां के वाद्य यंत्रों में इंसान, भगवान और जंगली जानवरों को रिझाने की क्षमता हुआ करती थी.


सवाल: आपके पास कितने वाद्य यंत्रों का संग्रह है?

जवाब: मेरे पास अभी 70 वाद्य यंत्रों का संग्रह अलग अलग रूप में है. कुछ की आवाज, कुछ के फोटो ग्राफ, कुछ जर्जर वाद्य यंत्रों को भी संरक्षित किया गया है. 20 के आसपास ऐसे वाद्य यंत्र हैं जो बिल्कुल विलुप्त हो चुके हैं. मैं उनको भी किसी ना किसी रूप संग्रह करके रखा हूं.

सवाल: मूंह, नाक, हाथ, के आलवा पेट से भी बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र कैसा था?

जवाब: जी बिल्कुल आज तक आपने सुना होगा की वाद्य यंत्र मुंह से, हाथ से, नाक से भी बजाए जाते हैं लेकिन सरगुजा का एक वाद्य यंत्र पेट से बजाया जाता था. इसका नाम है ढोंप जिसे पेट और हाथ दोनों से बजाया जाता है. पेट से बेस की आवाज और हाथ से बजाने पर झंकार की आवाज निकलती है.

सवाल: वाद्य यंत्रों के सरंक्षण के लिए सरकार से क्या चाहते हैं?

जवाब: मैं तो यही कहना चाहूंगा कि आधुनिक वाद्य यंत्र आ गये हैं लेकिन अपने पूर्वजों की निशानी को भी नहीं भूलना चाहिए. मैं शासन और सरकार से यही मांग करूंगा की इनके संरक्षण के लिए ध्यान दिया जाए एक संग्रहालय बनाकर इन्हें संरक्षित किया जाए.

सरगुजा: अविभाजित सरगुजा जिला (Undivided Surguja District) या रियासत काल में हमेशा संगीतमय रही है. इसलिए इसे लोग सरगुजा (SURGUJA) कहते हैं, लेकिन दस्तावेजों में सरगुजा कई स्पेलिंग SURGUJA लिखा जाता है, अर्थात इसे सुरगुजा भी पढ़ा जा सकता है. माना जाता है कि प्राचीन काल में इस धरती का सुरगूंजा था जो बाद में सरगुजा हो गया. सुरगूंजा से तात्पर्य था जहां सुर गूंजते हों ऐसी जगह को सुरगूंजा कहा गया. अब ऐसे कौन से कारण है कि घनघोर वन क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र को सुरगूंजा कह दिया गया. इसके प्रमाण मिलते हैं यहां के प्राचीन वाद्ययंत्र में इसके संरक्षण और संवर्धन पर काम कर रहे हैं.

ईटीवी भारत के संवाददाता ने पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी बातचीत की. इस खास बातचीत में उन्होंने बेहद अद्भुत बातें बताई. जिनके अनुसार यहां लगभग 80 प्रकार के प्राचीन वाद्ययंत्र होते थे, कुछ ऐसे अद्भुत वाद्ययंत्र हुआ करते थे. जिनसे खतरनाक शेरों को भगाने और बुलाने का काम किया जाता था.

पुरातत्व के जानकार अजय कुमार चतुर्वेदी बातचीत



सवाल: कितने वाद्य यंत्र हैं और इनकी विशेषता क्या है?

जवाब: सरगुजा अंचल में पहले ऐसे करीब 70 से 80 वाद्य यंत्र हुआ करते थे, बाद में वो या तो विलुप्त हो गए या विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन वाद्य यंत्रों को जंगली जानवरों के चमड़े, उनके दांत, बांस, लकड़ी से बनाया जाता था. कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. यहां घनघोर जंगल हुआ करता था और खतरनाक जंगली जानवरों से बचने के लिये ग्रामीणों के पास कोई हथियार नहीं था तो इन वाद्य यंत्रों को ग्रामीणों ने अपना हथियार बनाया.

शेर जैसे जंगली जानवर को उस वाद्य यंत्र की आवाज से बुला लिया करते थे और ऐसे भी वाद्य यंत्र थे जिससे शेर को भगा दिया जाता था. अपनी और अपनी खेती की रक्षा लोग इन्ही वाद्य यंत्रों से करते थे. यहां के वाद्य यंत्रों में इंसान, भगवान और जंगली जानवरों को रिझाने की क्षमता हुआ करती थी.


सवाल: आपके पास कितने वाद्य यंत्रों का संग्रह है?

जवाब: मेरे पास अभी 70 वाद्य यंत्रों का संग्रह अलग अलग रूप में है. कुछ की आवाज, कुछ के फोटो ग्राफ, कुछ जर्जर वाद्य यंत्रों को भी संरक्षित किया गया है. 20 के आसपास ऐसे वाद्य यंत्र हैं जो बिल्कुल विलुप्त हो चुके हैं. मैं उनको भी किसी ना किसी रूप संग्रह करके रखा हूं.

सवाल: मूंह, नाक, हाथ, के आलवा पेट से भी बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र कैसा था?

जवाब: जी बिल्कुल आज तक आपने सुना होगा की वाद्य यंत्र मुंह से, हाथ से, नाक से भी बजाए जाते हैं लेकिन सरगुजा का एक वाद्य यंत्र पेट से बजाया जाता था. इसका नाम है ढोंप जिसे पेट और हाथ दोनों से बजाया जाता है. पेट से बेस की आवाज और हाथ से बजाने पर झंकार की आवाज निकलती है.

सवाल: वाद्य यंत्रों के सरंक्षण के लिए सरकार से क्या चाहते हैं?

जवाब: मैं तो यही कहना चाहूंगा कि आधुनिक वाद्य यंत्र आ गये हैं लेकिन अपने पूर्वजों की निशानी को भी नहीं भूलना चाहिए. मैं शासन और सरकार से यही मांग करूंगा की इनके संरक्षण के लिए ध्यान दिया जाए एक संग्रहालय बनाकर इन्हें संरक्षित किया जाए.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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