सरगुजाः दीपावली (Diwali) का पर्व दीपों का पर्व माना जाती है. इस दिन मां लक्ष्मी (Maa laxmi) के साथ भगवान गणेश (God Ganesh) की पूजा का विधान है. लेकिन कई लोग इस दिन लक्ष्मी-गणेश (Laxmi ganesh) के साथ कुबेर (Kuber) का भी पूजन करते हैं. मां काली (Maa kali) की भी इस दिन विशेष पूजा होती है, जिसका खास महत्व है. खासकर बंगाली समाज (Bengali society) के लोग इस दिन मां काली की पूजा विधि-विधान से करते हैं. आपको हम बताते हैं कि इस दिन मां काली की विशेष पूजा आखिरकार क्यों होती है?
पंडित राजेश तिवारी (Pandit Rajesh Tiwari) ने दीपावली के दिन मां काली की पूजा से जुड़े महत्व को बताया. उन्होंने बताया कि जब मां दुर्गा ने काली का रूप धारण किया तो, बहुत से भयंकर राक्षस जैसे चंड-मुंड, रक्तबीज, महिसासुर, धूम्राक्ष ने देवताओं से ही वर पाकर देवताओं पर ही हमला शुरू कर दिया था, जिसे हराने वाला कोई नहीं था. तब मां दुर्गा को काली का रूप लेना पड़ा. इस भयंकर संहार के दौरान काली के क्रोध का तेज इतना अधिक था कि तीनों लोक उससे भयभीत हो गये. लेकिन मां काली रुकने का नाम नहीं ले रही थी.
जब शिव ने रोका काली का रास्ता
ऐसा लगा की इस क्रोध से सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो जायेगा. तब दीपावली की रात यानी कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात भगवान शंकर काली के रास्ते में जमीन पर लेट गये और मां काली का पैर भगवान शंकर की छाती पर पड़ गया. चूंकि भगवान शिव की पत्नी पार्वती ने ही दुर्गा और काली का रूप धारण किया था. लिहाजा अपने पति और भगवान शिव के ऊपर पैर रखने की वजह से काली शांत हो गईं और इसी दौरान उनकी जीभ बाहर निकल गई.
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अमावस की रात काली की पूजा
इसलिए दीपावली पर मां काली की विशेष पूजा का महत्व है. अमावस्या की रात में ही इस घटना का उल्लेख है. इसलिए इसी मुहूर्त में पूजा की जाती है. काली के साथ इस युद्ध में 64 योगनी योग में पारंगत 64 अन्य देवियां शामिल थी. भैरव नाथ के 52 अवतार मां काली के साथ युद्ध कर रहे थे. वहीं हनुमान जी की भी पूजा काली के साथ की जाती है. क्योंकि वो भी इस युद्ध के सहभागी रहे हैं.
बलि के बदले मां को अनार का रख किया जाता है अर्पित
पंडित राजेश तिवारी बताते हैं की काली और भैरव की पूजा दो तरह से होती है. एक तो साधारण पूजा जिसमें हम लोग धूप, दीप, नैवेद्य, श्रृंगार चढ़ाकर पूजा कर लेते हैं. वहीं, दूसरी पूजा तांत्रिक पूजा होती है, जिसमे बलि व मदिरा चढ़ाने का रिवाज है. चूंकि बलि प्रथा बंद है और सनातन धर्म को मानने वाले लोग ज्यादातर लोग शाकाहारी होते है. ऐसे में बलि देने के स्थान पर मां काली को अनार का रस अर्पित करने से उतना ही पुण्य प्राप्त किया जाता है.
बंगाली समाज की प्रमुख पूजा
बंगाली समाज के श्रद्धालु रत्नेश शर्मा, जो लगातार कई सालों से काली पूजा करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि दीपावली की रात विशेष काली पूजा होती है. इस दिन श्रद्धालु निर्जला उपवास रखते हैं और रात 12 बजे के बाद शुरू हुई यह विशेष पूजा 8 घंटे चलती है. बंगाली या अन्य हिन्दू धर्म के लोग सभी इस पूजा में आस्था रखते हैं. माँ की पूजा कर वर मांगते हैं. मान्यता है कि इस पूजा से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है.