सरगुजा: साल 2018 में एक बॉलीवुड मूवी आई थी. पैड मैन...इस फिल्म में महिलाओं को होने वाली माहवारी और जागरूकता के अभाव में कपड़ा इस्तेमाल करने के बारे में दिखाया गया था. फिल्म में लीड रोल में अक्षय कुमार थे. जिसने लक्ष्मीकांत की भूमिका निभाई थी. फिल्म में वह तब परेशान हो जाता था जब वह अपनी पत्नी गायत्री को मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े का उपयोग करते हुए देखता है. जिसे यूज करने के बाद उसकी पत्नी बार बार बीमार होती थी. इसके बाद लक्ष्मीकांत ने एक ऐसी मशीन बनाई जो किफायती सेनेटरी पैड बना सकती थी. छत्तीसगढ़ के सरगुजा में भी एक ऐसे ही पैड मेन हैं जो सेनेटरी नेपकीन तो नहीं बनाते लेकिन सरगुजा की आदिवासी महिलाओं और लड़कियों को माहवारी के दौरान गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने से होने वाली बीमारी से बचाने सेनेटरी पैड बांटने का काम कर रहे हैं.
सरगुजा के पैड मैन: जिस बारे में महिलाएं गुपचुप तरीके से बात करती हैं उस माहवारी को लेकर सरगुजा के अंचल ओझा ने आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को जागरूक करने का सोचा...काम आसान नहीं था. लेकिन अंचल ने इसे हर हाल में अंजाम तक पहुंचाने की ठानी और इस पर काम करना शुरू किया. शुरुआत में कपड़े के सेनेटरी पैड बनाकर बांटे. अब हर महीने 17500 पैड छात्राओं और PVTG और आदिवासि महिलाओं को फ्री में बांट रहे हैं. आलम ये है कि लोग अब इन्हें सरगुजा का पैड मैन कहकर पुकारने लगे हैं. Swami vivekananda
माहवारी जागरूकता अभियान का कैसे ख्याल आया: अंचल ओझा एक सामाजिक कार्यकर्ता है. 25 साल की उम्र से ही वह इस काम से जुड़ गए थे. आज 35 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्तर की कई संस्थाओं के साथ जुड़कर विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर काम कर रहे हैं. माहवारी स्वच्छता अभियान से जुड़ने को लेकर अंचल ओझा बताते हैं कि साल 2013 में दिल्ली में एनजीओ गूंज के जरिए उन्होंने माहवारी स्वच्छता पर कार्यक्रम देखा. इसके बाद सरगुजा की आदिवासी महिलाओं और लड़कियों का ख्याल आया. 2014 में इस काम को सरगुजा में शुरू किया. पहले महिलाओं को जागरूक करना शुरू किया. लेकिन पुरुष होने के कारण महिलाएं बात करने में हिचकिचाने लगी. फिर स्व सहायता समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षित कर पिछड़ी जनजाति की महिलाओं से बात की. इस दौरान कई हैरान करने वाले खुलासे हुए.
पिछड़ी जनजाति की महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करती थी. जब उनसे बात की तो ये पता चला कि एक ही कपड़े को कई महिलाएं माहवारी के दौरान यूज कर रही है. महिलाओं को जागरूक करने के बाद कपड़े का पैड बनाकर उन्हें देना शुरू किया. उन्हें बताया गया कि 6 से 7 घंटे उपयोग करने के बाद कपड़े का पैड भी बदल दें. इसके बाद सेनेटरी पैड लेकर आए और महिलाओं को देने लगे. -अंचल ओझा, फाउंडर प्रोजेक्ट इज्जत
माहवारी को लेकर खुलकर नहीं करना चाहता कोई बात: अंचल ओझा बताते हैं कि माहवारी को लेकर कोई बात नहीं करना चाहते हैं. कई बार स्कूल कॉलेज जाकर लड़कियों से बात करना चाहा तो वहां के टीचर और प्रिंसीपल इस बारे में बात करने को लेकर मना करते थे. लेकिन कोशिश नहीं छोड़ी, इसको लेकर अभियान जारी रखा. फिर धीरे धीरे लोग मिलते रहे.
जागरूकता के बाद सेनेटरी पेड उपलब्ध कराना बड़ी जिम्मेदारी: अंचल ओझा ने आगे बताया कि 2014 से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट इज्जत के तहत जब स्कूलों में लड़कियों से बात की तो लड़कियों ने कहा कि हम सेनेटरी पेड यूज करना चाहते हैं लेकिन महंगा होने के कारण इसे लेने में असमर्थ है. सरकारी विभागों में जाकर बात की लेकिन बहुत फायदा नहीं हुआ. इसके बाद चंदा लेकर इस अभियान को आगे बढ़ाने की ठानी. साल 2014 में चंदाकर 1000 छात्राओं को सेनेटरी पेड बांटे गए. इस दौरान बाहर से ज्यादा मदद मिली.
हम जिस दौर से गुजरे हैं जो समस्या हमारे साथ हुई है वो आने वाली पीढ़ी, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां इस दौर से ना गुजरे. इसके लिए अंबिकापुर के साइंस ग्रुप से कॉनटेक्ट किया और बच्चियों को पेड बांट गए. -सुनीता गहवई, डोनर
लोगों के सहयोग से छात्राओं और महिलाओं को सेनेटरी पेड बांट रहे हैं. कोई हमें 5000 रुपये का डोनेशन दे देता है. कोई 5000 सेनेटरी पेड डोनेट करते हैं. कोई किसी और से मदद दिला देते हैं. इस तरह से हमारा प्रोजेक्ट इज्जत चल रहा है. -अंचल ओझा, फाउंडर प्रोजेक्ट इज्जत
प्रोजेक्ट इज्जत के माध्यम से सरगुजा साइंस ग्रुप सरगुजा संभाग के बलरामपुर, सूरजपुर और सरगुजा जिले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली लगभग 17500 छात्राओं को हर महीने निःशुल्क सैनेटरी पैड बांटने का काम कर रहा है. इससे ना सिर्फ महिलाएं माहवारी को लेकर जागरूक हो रही है बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं सशक्त भी बन रही है. इस प्रोजेक्ट को देशभर की विभिन्न संस्थाओं ने ना सिर्फ सराहा बल्कि समय-समय पर पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया है.