सरगुजा: मैनपाट की पहाड़ियों में पहाड़ी आलू के बाद अब करेले की खेती हो रही है. यहां एक किसान ने पहाड़ी जमीन पर 6 एकड़ में करेले की खेती की है. दरअसल, मैनपाट के केसरा में रहने वाले दिलबर यादव ने वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल करेले की खेती में किया है. साथ ही करेले फसल में पेस्टीसाइड के स्थान पर छाछ, गौ-मूत्र और नीम के पत्तों से बना लिक्विड का छिड़काव किया जाता है.
मैनपाट के दुरस्त पहाड़ी क्षेत्र केसरा में रहने वाले किसान दिलबर यादव बड़े किसान हैं, पशुपालक भी हैं और करेले की फसल में जैविक खाद्य का उपयोग कर रहे हैं. दिलबर का कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट के वैज्ञानिकों ने सहयोग किया. खेती के सभी आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके बताये. जिसका फायदा दिलबर उठा रहे हैं. लगभग 6 एकड़ जमीन में मल्चिंग पद्धति और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के जरिये खेती की गई है.
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खुद के पशुओं से निकलने वाले गोबर, गौ मूत्र और छाछ का इस्तेमाल कीटनाशक के रूप में किया जा रहा है. जिससे करेले में एक भी कीड़ा या बीमारी नहीं लगी है. जबकी आस-पास के मैदानी इलाकों में किसान करेले में बीमारी से परेशान है. लेकिन मैनपाट में दिलबर के खेत लहलहा रहे हैं. दिलबर बताते हैं कि करेले की खेती के लिये कम तापमान की जरूरत होती है. मैनपाट के तापमान का फायदा वो उठा रहे हैं. जबकि प्रदेश में बिलासपुर, रायगढ़, और अन्य गर्म इलाकों में करेले की खेती नहीं हो पा रही है.
पौधा गर्मी की वजह से मर जा रहा है. लेकिन मैनपाट का क्लाइमेट करेले के लिए अनुकूल साबित हो रहा है. अनुमानित 6 एकड़ जमीन में लगाये गए करेले से हर सप्ताह 100 क्विंटल करेला उत्पादन होगा और अगर करेले की फसल को बीमारी से बचा लिया गया तो 15 अप्रैल जुलाई अंत तक लगभग 12 सप्ताह तक करेला तोड़कर किसान बेच सकेंगे. ऐसे में दिलबर यादव 13 बार 100 क्विंटल करेला बेच सकते हैं. लेकिन कमाई का हिसाब तो उस समय के बाजार भाव से ही तय हो सकेगा.