सरगुजा: आर्म्ड फोर्सेस डे (armed forces day ) हर वर्ष मई महीने के तीसरे शनिवार को मनाया जाता है. इस वर्ष मई का तीसरा शनिवार 21 मई को है. सेना के सबसे महत्वपूर्ण अंग आर्म्ड फोर्सेज, जो बाहरी दुश्मनों से सीधा लोहा लेते हैं... जिनकी भिड़ंत सीधे खतरनाक हथियारों से होती है. ऐसे ही सेना के एक सूबेदार, जो अम्बिकापुर के रहने वाले हैं और हाल ही में अपनी सेवाओ से रिटायर होकर घर वापस लौटे हैं.
अम्बिकापुर में जन्मे कृष्णा नंद तिवारी भारतीय थल सेना (Krishna Nand Tiwari born in Ambikapur Indian Army) में 30 वर्ष की सेवा देने के बाद अब रिटायर हो चुके हैं. ईटीवी भारत ने उनके अनुभव जानने की कोशिश की. व्यक्तिगत जीवन में एक सैनिक के सामने कैसी चुनौती होती है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब रिटायर्ड सूबेदार कृष्णा नंद तिवारी ने दिए.
सवाल : आपने कहां काम किया? कौन सा काम था? अपने अनुभवों के बारें में बतायें.
जवाब : मैं पिछले 30 वर्षों से देश की सेवा को कार्यरत था. सेना में सेवा देते हुए नार्थ ईस्ट और जम्मू-काश्मीर में ज्यादातर सेवा दी है. इसके साथ ही अंदरूनी हिस्सों में भी मेरी पोस्टिंग रही है. मेरा व्यक्तिगत अनुभव ये है कि सेना का जो आदमी है वो मेंटली रूप से, फिजिकली रूप से स्ट्रांग होना चाहिये. मेडिकली फिट होना चाहिये. उसको घर की ओर से किसी तरह का टेंशन नही होना चाहिये, लेकिन ऐसा होता नहीं है. अमूमन क्या होता है कि आदमी देश के दुर्गम इलाकों में दूरस्थ क्षेत्रों में लगा रहता है. आज कल तो सुविधाएं हो गई है जिससे हम समाज से, घर से, बीवी से, बच्चों से जुड़े रहते हैं. लेकिन जब हम 92 में सेवा में आये तब से करीब 10 से 15 साल मैं घर के संपर्क में डायरेक्टर नहीं आ पाया.चिट्ठी लिखा करते थे. चिठ्ठी का रिप्लाई आने में एक से डेढ़ महीने लग जाते थे. कभी सही समाचार नहीं मिल पाता था. लेकिन हमारी सेना में एक बहुत अच्छी व्यवस्था है कि हम जिस भी दुर्गम जगह में हैं. घाटी में, पानी में जहां भी हैं, वहां सेना हमारी सूचना घर पहुंचा देती है.
सवाल : आम तौर पर अपने बच्चों से 2- 4 दिन भी दूर रहना मुश्किल होता है. आप लोग घर से हजारों किलोमीटर दूर सेवा देते हैं. एक सैनिक के लिये ये कितना मुश्किल होता है?
जवाब : देखिये ये चुनौती बहुत बड़ी है. मदर, फादर, बहन, भाई...बाद में बीवी और बच्चे भी हो जाते हैं. सबकी देखभाल करना, ये सब पर लागू नहीं होता. जैसे मैं था मेरे साथ मेरे बड़े भैया थे. मेरे फादर खुद इतने स्ट्रांग थे. मदर, फादर, भाई का सपोर्ट था तभी मैं भारतीय सेना में इतनी लंबी सर्विस कर पाया. वरना घर की जिम्मेदारी के साथ- साथ समाज की जिम्मेदारी होती है. इतना लंबा चल पाना मुश्किल होता है. मैं चाहता हूं की समाज के लोगों को एक सैनिक के परिवार का ध्यान रखना चाहिये. मैंने देखा है कि समाज के लोग हैलो हाय तो बहुत करते हैं. लेकिन समाज के लोग उनके दुख दर्द को पूछने नहीं जाते हैं. हमने अपने मोहल्ले, नगर, गावं में भी अनुभव किया. कभी-कभी पेमेंट हम लोग घर नहीं भेज पाते हैं, तो अर्थिक समस्या भी होती है. मैं ये अपने साथ नहीं कह रहा हू. लेकिन लोगों के साथ हो जाता है. तब समाज के लोग उन्हें सपोर्ट नहीं करते.
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सवाल : आप अम्बिकापुर से हैं, इस प्रदेश का सैनिक स्कूल भी यहीं संचालित है. उनके लिये क्या मैसेज देना चाहेंगे?
जवाब : बड़े गौरव की बात है कि हमारे शहर के करीब सैनिक स्कूल खुला है. मैं चाहूंगा कि लोग ज्यादा से ज्यादा वहां जाये, सैनिक स्कूल के बच्चे सेना में जाना ही लाइक करते हैं. ये स्कूल इसलिये खोला गया है कि लोग सेना के प्रति जागरूक हों. ज्यादा से ज्यादा लोग सेना में जाये.
सवाल : सरकार ने सैनिक स्कूल में लड़कियों का भी प्रवेश शुरु करा दिया है. एक सैनिक के तौर पर कितना सही मानते हैं इसे?
जवाब : इसे बिल्कुल सही मानता हूं. एक बार मैं भी सैनिक स्कूल अपनी बच्ची के लिए चाह रहा था. लेकिन देखा की जिंदगी भर मैं भी घर से दूर रहा फिर बच्ची भी सैनिक स्कूल में रीवा चली जायेगी. किसी और जगह ओर चली जाएगी. जब मैं रिटायर होकर आऊंगा तो मेरी बेटी मुझसे दूर हो जायेगी.लेकिन आज अम्बिकापुर में सैनिक स्कूल खुल गया है. हालांकि मेरी बेटी तो उसके लिये ओवर एज हो गई. लेकिन अब जो भी सेना के लोग या आम लोग हैं, वो जरूर सैनिक स्कूल का लाभ उठाएं. अपनी बच्चियों को भी सेना में भेजने के लिये सैनिक स्कूल भेजें.