कोरबा: कबूतरों को पुरातन काल से पोस्टमैन की संज्ञा दी जाती रही है. इसका उदाहरण हमारे आसपास ही मौजूद है. कोरबा शहर के इमलीडुग्गू के पास स्थित कर कदमहाखार में हर्मेंद्र साहू के पास 500 कबूतरों को पालते हैं. राष्ट्रीय पर्व में शांति दूत के तौर पर कबूतर को आसमान में आजाद कर देने की परंपरा है. इस दिन हर्मेंद्र से ही सरकारी कर्मचारी लोग कबूतर खरीद कर ले जाते हैं और राष्ट्रीय पर्व पर उन्हें आसमान में आजाद कर देते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ कबूतरों को आयोजन स्थल पर आजाद किया जाता है तो इसके कुछ देर बाद ही वह हर्मेंद्र के पास वापस अपने पुराने घर लौट आते हैं. कबूतरों को दिशा और रास्ते का बेहद सटीक ज्ञान होता है. इस मामले में उनकी याददाश्त बहुत तेज होती है.
कोई हत्या की बात करें तो हर्मेंद्र कर देते हैं मना
हर्मेंद्र पेशे से ऑटो रिक्शा चलाते हैं. लेकिन अब बूढ़े हो चले हैं. तो उनका ज्यादातर समय कबूतरों की देखभाल में ही बीतता है. आजीविका के लिए छोटी सी दुकान खोल रखी है. हरमेंद्र कहते हैं कि कोई जीव हत्या की बात करें और कबूतर को खाने के लिए उनके पास इन्हें खरीदनेके लिए आता है तो वह साफ तौर पर इंकार कर देते हैं. हां यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो कबूतरों को शौक के लिए अपने पास रखना चाहता है, तो वह उसे पूरी तसल्ली करने के बाद कबूतर उस व्यक्ति को सौंप देते हैं. इसके बदले में कुछ पैसे भी ले लेते हैं.
हरमेंद्र यह भी कहते हैं कि पिछले कई सालों से वह 26 जनवरी और 15 अगस्त के राष्ट्रीय पर्व पर शांति दूत के तौर पर जो कबूतर आसमान में आजाद किए जाते हैं. उसके लिए कबूतर सरकारी कर्मचारियों को विक्रय करते रहे हैं. खास बात यह है कि कबूतरों को हरमेंद्र का साथ रास आता है. उन्हें यह घर पसंद है, आयोजन स्थल पर कबूतरों को जब आसमान में आजाद किया जाता है, तो वह उड़कर वापस हरमेंद्र के पास लौट आते हैं और फिर यह सिलसिला यूं ही चलता रहता है.
कबूतरों को होता है रास्तों का ज्ञान
जानकारों की माने तो कबूतरों के साथ ही पक्षियों में दिशाओं को लेकर गजब का ज्ञान होता है. वह बड़ी जल्दी रास्तों को याद कर लेते हैं, भारतीय परंपरा के अनुसार कबूतरों को पोस्टमैन के तौर पर भी देखा जाता है. इतिहास में जिक्र मिलता है कि कबूतरों को चिट्ठी भेजने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन आधुनिक युग में हरमेंद्र के कबूतरों ने अभी भी इस तरह की कुछ यादें बचाकर रखी हैं. राष्ट्रीय पर्व पर हरमेंद्र जब उन्हें बेच देते हैं, तब भी कबूतर कई किलोमीटर का फासला तय कर जाते हैं और वापस अपने पुराने घर में लौट आते हैं.
स्थानीय लोगों में भी कौतूहल
हरमेंद्र अपने कबूतरों के लिए आसपास के क्षेत्र में काफी प्रख्यात हैं. आसपास के लोग कहते हैं कि वह दशकों से हर हरमेंद्र को कबूतर पालते हुए देख रहे हैं. वह बेहद प्यार से कबूतरों का ध्यान रखते हैं और ऐसे किसी व्यक्ति को कबूतर नहीं देते जो जीव हत्या की बात करते हैं. लोग यह भी कहते हैं कि हरमेंद्र के कबूतर बेहद सेहतमंद और आकर्षक हैं.