रायपुर : मलेरिया को जड़ से मिटाने के लिए वैज्ञानिक, शोधकर्ता, तकनीशियन काम कर रहे हैं. रायपुर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (National Institute of Malaria) यानी NIMR की लालपुर इलाके में ICMR से संबद्ध एक अनोखी लैब है. लैब बस्तर और अन्य राज्यों से मच्छरों को पकड़ती है और लाकर टेस्ट करती (Research on mosquitoes of Bastar)है.इसके बाद वैज्ञानिक मच्छरों की प्रजातियों के पहलुओं पर व्यापक शोध करते हैं कि कौन सी दवाएं उन्हें प्रभावित कर रही हैं और किन दवाओं से मलेरिया को नियंत्रित किया जा सकता है.
कैसे किया जाता है शोध : छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले मच्छरों की दो मुख्य प्रजातियों एनाफिलिस कलीसिफासिस और एनाफिलिस स्टीफेंस की कालोनियों को रैक में देखा गया. एक कॉलोनी हजारों मच्छरों का घर है, जिस पर वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. मच्छरों को वयस्क और लार्वा दोनों रूपों में रखा जाता है. जबकि बड़े मच्छरों को नग्न आंखों से देखा जा सकता है, बहुत छोटे मच्छर अदृश्य होते हैं. मच्छरदानी में दवाओं का लेपन किया जाता है.एक मच्छर सामान्य रूप से 100 से अधिक अंडे दे सकता है. यहां काम कर रहे टेक्नीशियन के मुताबिक मच्छर पनप सके इसलिए उन्हें पानी में रखा जाता है. वहीं मच्छरों को पालने के लिए जानवरों का खून खुराक के तौर पर दिया जाता है. इसके लिए जानवर किराए पर लिए जाते हैं, उनमें से थोड़ी मात्रा में खून निकाला जाता है. फिर प्रयोग किया जाता (Mosquito terror in Chhattisgarh) है.
क्यों बढ़ते हैं मच्छर : मच्छर आठ से 10 डिग्री तापमान में जीवित नहीं रह सकते. लेकिन इन पर डीडीटी पाउडर भी बेअसर है. यही वजह है कि निकायों ने छिड़काव की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए. हम आज मच्छर मारने के जितने भी आधुनिक तरीकों जैसे मच्छर मारने वाली क्वाइल, लिक्विड, अगरबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे एक समय के बाद प्रभावी नहीं रह जाते. यही वजह है कि कंपनियां अपने उत्पाद के एडवांस वर्जन लांच करती हैं.
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ : मच्छर को लगता है कि तापमान उनके अनुकूल नहीं हैं तो वे ऐसे क्षेत्रों का चयन करते हैं, जहां छिप सकें. हम ठंड की वजह से कमरों को बंद रखते हैं तो वे कमरे में छिपे होते हैं. और मौका मिलने पर काटते हैं.