रायपुर: छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग को एक बड़ी सफलता मिली है. राजधानी रायपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर रीवा गांव में प्रारंभिक उत्खनन के दौरान पुरातत्व विभाग को ईसा पूर्व के कई अवशेष मिले हैं. इस सफलता ने विभाग के अधिकारियों में उत्साह ला दिया है. रीवा में हुए उत्खनन में 600 ईसा पूर्व के जनपद कालीन से लेकर मराठा काल तक के धरोहर मिले हैं. ETV भारत की टीम रीवा गांव पहुंची और उत्खनन स्थल पर जाकर ये जानने की कोशिश की कि आखिर किस तरह के अवशेष पुरातत्व विभाग को मिल रहे हैं.
रायपुर में मिल रहे ईसा पूर्व के अवशेष: राजधानी रायपुर से सटे आरंग ब्लॉक के रीवा गांव में ग्रामीणों को पुराने अवशेष मिले थे. इसकी जानकारी पुरातत्व विभाग को होने के बाद विभाग की तरफ से यहां उत्खनन करवाया जा रहा है. 5 फरवरी से शुरू हुए इस खुदाई में ईसा पूर्व के भी अवशेष मिल रहे हैं. यहां कुषाण काल, कलचुरी व पाण्डुवंशीय धरोहर भी मिल रहे हैं. छत्तीसगढ़ में ये पहली बार है जब किसी एक जगह पर अलग-अलग काल के सिक्के मिल रहे हैं. (
Archaeological department excavation in Arang block of Raipur)
रीवा गांव में चल रहे उत्खनन को लेकर सह उत्खनन निदेशक विरिशोत्तन साहू (Co Excavation Director Virishotan Sahu) ने बताया कि 'करीब 40 से 60 मजदूर खुदाई में लगे हैं. यहां उत्खनन में एक से बढ़कर एक अवशेष मिल रहे हैं. इस तरह के पुरावशेष छत्तीसगढ़ के उत्खनन स्थलों से अब तक नहीं मिले. चूंकि यह एक व्यापारिक रूट था. इस वजह से यहां सबसे ज्यादा सिक्के मिल रहे हैं. कोसांबी से लेकर मल्हार, मल्हार से सिरपुर, सिरपुर से रीवा होते हुए राजिम वाले व्यापारिक रूट को टच करता है. पहले व्यापार जल मार्गों से होता था. ऐसे में व्यापारिक केंद्रों में से एक केंद्र रीवा गढ़ को माना जाता था'.
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रायपुर में जनपद काल से मराठा काल के अवशेष: 'सिक्कों के माध्यम से बताया जा सकता है कि यहां लोकल डायनेस्टी थी. उस दौरान भी सिक्के जारी कर व्यापार को काफी बढ़ाया गया था. ऐसे में व्यापारिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ का यह स्थल काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. वर्तमान में 10 से 12 जगहों पर खुदाई चल रही है. हालांकि 53 एकड़ गवर्मेंट लैंड है. हम बाकी जगहों पर भी खुदाई करेंगे. हमें अभी तक जनपत काल, प्री मोरियन, मोरियन और पाषाण काल से लेकर मराठा काल तक के अवशेष मिले हैं'. इसमें सभी वंशों के अलावा एक नए वंश का छत्तीसगढ़ में फोकस नहीं था. वो है मघ वंश. इस जगह पर मघ वंश के सिक्के मिल रहे हैं. इस तरह के अवशेष मल्हार उत्खनन में भी मिले थे. यह एक नए अध्याय के रूप में काम करेगा'.
ग्रामीणों को मिला रोजगार: खुदाई का काम कर रहे ग्रामीण देवेंद्र कुमार धीवर कहते हैं कि 'यह जगह काफी पुरानी है. पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी होने के बाद टीम यहां पहुंची और लगातार खुदाई करवा रही है. इसके माध्यम से हमें रोजगार भी मिल रहा है. गांव के करीब 40-50 लोगों को उत्खनन के लिए रोजगार मिल रहा है. इससे पहले उन्हें शहर की ओर काम के लिए रुख करना पड़ता था'.
गांव के सरपंच चंद्र प्रकाश साहू ने बताया कि 'उनका गांव लोरी गढ़ रीवा के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे लोरी चंदा की कहानी काफी प्रचलित है. जिसमें राजघराने की बेटी और गांव के चरवाहे लोरी के बीच प्रेम प्रसंग था. जिसकी गाथा काफी प्रचलित है. हमारे गाँव में पुराने कुएं, पत्थर, सिक्के और कई तरह के अवशेष मिल रहे हैं. जिसकी सूचना हमने पुरातत्व विभाग को दी थी. उसके बाद से पुरातत्व विभाग लगातार खुदाई का काम करवा रहा है'.
600 ईसा पूर्व के जनपद कालीन सिक्के मिले: अधिकारियों की माने तो उत्खनन से विभिन्न तरह के अवशेष मिले रहे हैं. जिसमें चांदी, तांबे के सिक्के, मृदभांड के अवशेष और हथियार भी मिले हैं. सबसे अधिक सिक्के मिल रहे हैं. इसमें हमें 600 ईसा पूर्व के जनपद कालीन सिक्के भी मिले हैं. इसमें पंचमार्क(ठप्पा पड़ा हुआ सिक्का) के भी सिक्के मिले हैं. पुषाण काल की पोटरी मिली है. जिसे रॉयल फेमिली इस्तेमाल करती थी. इसके साथ ही बहुत से बर्तनों के प्राचीनतम अवशेष भी मिले हैं. उम्मीद की जा रही कि यहां और भी काफी प्राचीनतम अवशेष मिलेंगे'.