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ये तो बदनाम लोगों की गलियां हैं, लेकिन अब

रायपुर शहर में एक इलाका ऐसा भी है, जहां आज थोक मार्केट है और लोगों की भारी भीड़ पहुंचती है. लेकिन कभी इस जगह में लोग कदम रखने से भी घबराते थे. क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि कहीं बदनाम ना हो (story of red light area of ​​raipur) जाएं.

story of red light area of ​​raipur
ये तो बदनाम लोगों की गलियां हैं, लेकिन अब
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Published : Jun 17, 2022, 1:05 PM IST

Updated : Jun 17, 2022, 3:04 PM IST

रायपुर : छोटी-छोटी खिड़कियों से सड़क की ओर झांकते चेहरे, गलियों से गुजरने वाले पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करती महिलाएं. अमूमन यह नजारा रेडलाइट एरिया का हुआ करता है. जहां वैश्यावृत्ति के काम में लगी महिलाएं अपने ग्राहकों को आकर्षित करके बुलाती (story of red light area of ​​raipur) हैं. ऐसा ही कुछ नजारा रायपुर के बाबूलाल गली और रहमानिया चौक का हुआ करता था. आज से 40 साल पहले तक यहां वैश्यावृत्ति और मुजरा आम बात हुआ करता था. यहां से गुजरने वाले शख्स भी बदनाम हो जाया करते थे. आज हम आपको इन्हीं गलियों के बारे में बताने जा रहे हैं.

रायपुर की बदनाम गलियों की कहानी

कितनी बदल गईं बदनाम गलियां : आज के समय में रायपुर शहर के व्यस्ततम इलाकों में शुमार बाबूलाल गली और रहमानिया चौकी में लाखों लोग रोजाना बाजार से सामान खरीदने आया करते (prostitution business in raipur) थे. .यहां लोगों की बड़ी भीड़ देखने को मिलती है. लेकिन आज से लगभग 35 साल पहले इन गलियों में लोगों की भीड़ अलग ही वजह से लगती थी. बाबूलाल गली में जिस्मफरोशी हुआ करती थी. रहमानिया चौक में देर रात मुजरा से रातें गुलजार हुआ करती थी.

दोनों ही जगहों पर हुआ शोध : हमर रायपुर किताब के राइटर अजय वर्मा ने बताया " जब अपनी किताब लिख रहा था तब बाबूलाल गली और रहमानिया चौक पर शोध किया था. वहां वेश्यावृत्ति होने की जानकारी मिलती है. साल 1990 की शुरुआत में वो मंजर देखा है. बाबूलाल टॉकीज के बगल में जो गली है, वहां महिलाएं लोगों को इशारा करके अपने पास बुलाती (Prostitution in Raipur Babulal Gali) थीं. यह गली शहर में वेश्यावृत्ति के लिए बदनाम हुआ करती थी."

कहां होता था मुजरा : अजय वर्मा ने बताया " रहमानिया चौक में मुजरा हुआ करता (Mujra of Rahmania Chowk Raipur) था. गाने-बजाने के साज कोठों में हुआ करते थे. अमीर घराने के लोग, राजा महाराजा, गांव के मालगुजार लोग मोतीबाग फायर ब्रिगेड चौक पर घोड़ा-गाड़ी, बैलगाड़ी रखकर वहां मुजरा सुनते थे. नगर निगम ने एक योजना के तहत साल 1990 से 1993 के बीच सभी को वहां से हटाया. उन्हें नई बसाहट दी गई. आज के समय में वह जगह पूरी तरह से बाजार में तब्दील हो गई है. यहां कई तरह की दुकानें हैं."


क्या कहते हैं रहवासी : रहमानिया चौक के स्थानीय निवासी खलील बताते हैं "पहले रहमानिया चौक में नाच-गाना हुआ करता था. एक से एक आर्टिस्ट और कलाकार यहां आते थे, लेकिन लोगों ने इसे बदनाम किया. जिसके कारण सरकार ने इसे बंद करवाया .अपना पेट भरने के लिए यहां रहने वाले अपनी कला बेचते थे. कोई नाजायज पैसे ना छीनता था, ना झपटता था. झांसी, नागपुर, मुंबई से भी कलाकार मुजरा करने पहुंचते थे. कलाकारों में मुबारक बेगम, मेहताब नागपुर जैसे एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे. लोग खुश होकर उन्हें पैसा दिया करते थे."


रहमानिया में बिकती थी कला : खलील ने बताया " रहमानिया चौक में 20 से 25 मकान हुआ करते थे. वहां मुजरा होता था. काफी रौनक हुआ करती थी. उस समय बिजली भी नहीं थी. गैस बत्तियां चला करती थीं. महिलाएं सिर्फ अपनी कला प्रदर्शित करतीं थी. लोग उनकी कला से खुश होकर पैसा दिया करते थे. बाबूलाल गली में महिलाएं अपनी इज्जत बेचकर अपना पेट भरती थीं. पेट भरने के लिए इंसान क्या नहीं करता , बाद में सरकार ने उन्हें हटाया "


कानून का क्या है नजरिया : पुलिस विभाग में सीएसपी के पद से रिटायर हुईं संध्या द्विवेदी ने बताया "वेश्यावृत्ति के खिलाफ मैंने बहुत बार पीटा एक्ट के तहत केस बनाए हैं. पुलिस में भर्ती होने के बाद ही मालवीय रोड में बाबूलाल गली देखी है. समय-समय पर उस दौरान हमारे द्वारा कार्रवाई की जाती थी. उसी समय रहमानिया चौक में रात भर मुजरा होता था. वहां पब्लिक जाया करती थी. बड़े-बड़े रईस घर के लोग पैसे फेंका करते थे. बहुत सुंदर-सुंदर महिलाएं होती थीं, जो वहां मुजरा करतीं. बाद में पुलिस-प्रशासन की ओर से उनका व्यवस्थापन किया गया. उन्हें वहां से हटाया गया और बाबूलाल गली खाली करवाई गई.''


किस नाम से जानी जाती थी गली : संध्या द्विवेदी ने बताया कि जब वे सिटी कोतवाली पुलिस थाने में थीं, तब वहां की जानकारी इकट्ठा की थी. उसमें पाया कि ''वहां पहले दाल का व्यवसाय हुआ करता था. जिसे दाल गली के नाम से जाना जाता था. वहां काम करने के लिए मजदूर वर्ग की महिलाएं दाल साफ करने और उसे बोरे में भरने का काम करती थीं. उस समय दाल का व्यवसाय करने व्यापारी छत्तीसगढ़ से लगे हुए राज्यों से पहुंचते थे. धीरे-धीरे उन्होंने महिलाओं का शोषण करना शुरू किया. बाद में वे महिलाएं स्वेच्छा से अपने को पेश करने लगीं. धीरे-धीरे दाल गली में वेश्यावृत्ति बढ़ती गई. बाद में वहां बाबूलाल टॉकीज की शुरुआत हुई. फिर दाल गली बाबूलाल गली के नाम से फेमस (Dal Gali of Raipur become Babulal gali) हुई.''

आज कितनी बदली है बाबूलाल गली : आज बाबूलाल गली और रहमानिया चौक होलसेल बाजार में तब्दील हो गया है. यहां अलग-अलग सामानों का होलसेल बाजार है. यहां लोग दूर-दूर से सामान खरीदने पहुंचते हैं. यहां सजावट के सामान, कॉस्मेटिक, बैग, बच्चों के खिलौने और अन्य सामानों की बिक्री होती है.





रायपुर : छोटी-छोटी खिड़कियों से सड़क की ओर झांकते चेहरे, गलियों से गुजरने वाले पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करती महिलाएं. अमूमन यह नजारा रेडलाइट एरिया का हुआ करता है. जहां वैश्यावृत्ति के काम में लगी महिलाएं अपने ग्राहकों को आकर्षित करके बुलाती (story of red light area of ​​raipur) हैं. ऐसा ही कुछ नजारा रायपुर के बाबूलाल गली और रहमानिया चौक का हुआ करता था. आज से 40 साल पहले तक यहां वैश्यावृत्ति और मुजरा आम बात हुआ करता था. यहां से गुजरने वाले शख्स भी बदनाम हो जाया करते थे. आज हम आपको इन्हीं गलियों के बारे में बताने जा रहे हैं.

रायपुर की बदनाम गलियों की कहानी

कितनी बदल गईं बदनाम गलियां : आज के समय में रायपुर शहर के व्यस्ततम इलाकों में शुमार बाबूलाल गली और रहमानिया चौकी में लाखों लोग रोजाना बाजार से सामान खरीदने आया करते (prostitution business in raipur) थे. .यहां लोगों की बड़ी भीड़ देखने को मिलती है. लेकिन आज से लगभग 35 साल पहले इन गलियों में लोगों की भीड़ अलग ही वजह से लगती थी. बाबूलाल गली में जिस्मफरोशी हुआ करती थी. रहमानिया चौक में देर रात मुजरा से रातें गुलजार हुआ करती थी.

दोनों ही जगहों पर हुआ शोध : हमर रायपुर किताब के राइटर अजय वर्मा ने बताया " जब अपनी किताब लिख रहा था तब बाबूलाल गली और रहमानिया चौक पर शोध किया था. वहां वेश्यावृत्ति होने की जानकारी मिलती है. साल 1990 की शुरुआत में वो मंजर देखा है. बाबूलाल टॉकीज के बगल में जो गली है, वहां महिलाएं लोगों को इशारा करके अपने पास बुलाती (Prostitution in Raipur Babulal Gali) थीं. यह गली शहर में वेश्यावृत्ति के लिए बदनाम हुआ करती थी."

कहां होता था मुजरा : अजय वर्मा ने बताया " रहमानिया चौक में मुजरा हुआ करता (Mujra of Rahmania Chowk Raipur) था. गाने-बजाने के साज कोठों में हुआ करते थे. अमीर घराने के लोग, राजा महाराजा, गांव के मालगुजार लोग मोतीबाग फायर ब्रिगेड चौक पर घोड़ा-गाड़ी, बैलगाड़ी रखकर वहां मुजरा सुनते थे. नगर निगम ने एक योजना के तहत साल 1990 से 1993 के बीच सभी को वहां से हटाया. उन्हें नई बसाहट दी गई. आज के समय में वह जगह पूरी तरह से बाजार में तब्दील हो गई है. यहां कई तरह की दुकानें हैं."


क्या कहते हैं रहवासी : रहमानिया चौक के स्थानीय निवासी खलील बताते हैं "पहले रहमानिया चौक में नाच-गाना हुआ करता था. एक से एक आर्टिस्ट और कलाकार यहां आते थे, लेकिन लोगों ने इसे बदनाम किया. जिसके कारण सरकार ने इसे बंद करवाया .अपना पेट भरने के लिए यहां रहने वाले अपनी कला बेचते थे. कोई नाजायज पैसे ना छीनता था, ना झपटता था. झांसी, नागपुर, मुंबई से भी कलाकार मुजरा करने पहुंचते थे. कलाकारों में मुबारक बेगम, मेहताब नागपुर जैसे एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे. लोग खुश होकर उन्हें पैसा दिया करते थे."


रहमानिया में बिकती थी कला : खलील ने बताया " रहमानिया चौक में 20 से 25 मकान हुआ करते थे. वहां मुजरा होता था. काफी रौनक हुआ करती थी. उस समय बिजली भी नहीं थी. गैस बत्तियां चला करती थीं. महिलाएं सिर्फ अपनी कला प्रदर्शित करतीं थी. लोग उनकी कला से खुश होकर पैसा दिया करते थे. बाबूलाल गली में महिलाएं अपनी इज्जत बेचकर अपना पेट भरती थीं. पेट भरने के लिए इंसान क्या नहीं करता , बाद में सरकार ने उन्हें हटाया "


कानून का क्या है नजरिया : पुलिस विभाग में सीएसपी के पद से रिटायर हुईं संध्या द्विवेदी ने बताया "वेश्यावृत्ति के खिलाफ मैंने बहुत बार पीटा एक्ट के तहत केस बनाए हैं. पुलिस में भर्ती होने के बाद ही मालवीय रोड में बाबूलाल गली देखी है. समय-समय पर उस दौरान हमारे द्वारा कार्रवाई की जाती थी. उसी समय रहमानिया चौक में रात भर मुजरा होता था. वहां पब्लिक जाया करती थी. बड़े-बड़े रईस घर के लोग पैसे फेंका करते थे. बहुत सुंदर-सुंदर महिलाएं होती थीं, जो वहां मुजरा करतीं. बाद में पुलिस-प्रशासन की ओर से उनका व्यवस्थापन किया गया. उन्हें वहां से हटाया गया और बाबूलाल गली खाली करवाई गई.''


किस नाम से जानी जाती थी गली : संध्या द्विवेदी ने बताया कि जब वे सिटी कोतवाली पुलिस थाने में थीं, तब वहां की जानकारी इकट्ठा की थी. उसमें पाया कि ''वहां पहले दाल का व्यवसाय हुआ करता था. जिसे दाल गली के नाम से जाना जाता था. वहां काम करने के लिए मजदूर वर्ग की महिलाएं दाल साफ करने और उसे बोरे में भरने का काम करती थीं. उस समय दाल का व्यवसाय करने व्यापारी छत्तीसगढ़ से लगे हुए राज्यों से पहुंचते थे. धीरे-धीरे उन्होंने महिलाओं का शोषण करना शुरू किया. बाद में वे महिलाएं स्वेच्छा से अपने को पेश करने लगीं. धीरे-धीरे दाल गली में वेश्यावृत्ति बढ़ती गई. बाद में वहां बाबूलाल टॉकीज की शुरुआत हुई. फिर दाल गली बाबूलाल गली के नाम से फेमस (Dal Gali of Raipur become Babulal gali) हुई.''

आज कितनी बदली है बाबूलाल गली : आज बाबूलाल गली और रहमानिया चौक होलसेल बाजार में तब्दील हो गया है. यहां अलग-अलग सामानों का होलसेल बाजार है. यहां लोग दूर-दूर से सामान खरीदने पहुंचते हैं. यहां सजावट के सामान, कॉस्मेटिक, बैग, बच्चों के खिलौने और अन्य सामानों की बिक्री होती है.





Last Updated : Jun 17, 2022, 3:04 PM IST
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