रायपुर: आदिवासी आरक्षण मामले को लेकर राज्य सरकार पर दबाव बनाने भाजपा ने रणनीति बनाई है. जिसके तहत भाजपा रैली धरना प्रदर्शन कर रही है. इतना ही नहीं भाजपा के द्वारा राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा गया है. कांग्रेस सरकार भी इस मुद्दे से निपटने को तैयार नजर आ रही है. सूत्रों की मानें तो राज्य सरकार कैबिनेट की बैठक या विधानसभा सत्र बुलाकर आरक्षण पर कोई बड़ा निर्णय ले सकती है. लेकिन इस आरक्षण के मुद्दे का किस राजनीतिक दल को फायदा होगा और किसे नुकसान, यह कह पाना अभी मुश्किल है. tribal reservation in Chhattisgarh
"आदिवासियों को उनका हक दिलाकर रहेगी कांग्रेस सरकार": आरक्षण का मुद्दा लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों को आश्वासन दिया है कि उनका हक कांग्रेस सरकार दिलाकर रहेगी. यह बयान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शनिवार की देर शाम कर्नाटक से लौटने के बाद एयरपोर्ट पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए दिया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि "रमन सरकार की नाकामी का यह परिणाम है. लेकिन कांग्रेस सरकार आदिवासियों को उनका हक दिलाकर रहेगी. भाजपा के लोगों को यह जवाब देना चाहिए कि केंद्र सरकार आबादी के अनुरूप आरक्षण दे रही है." Politics high on issue of tribal reservation
आरक्षण के मुद्दे को लेकर भाजपा ने निकाली पदयात्रा, राज्यपाल से भी की मुलाकात: सोमवार को भाजपा द्वारा आरक्षण के मुद्दे को लेकर पदयात्रा निकाली गई. यह पदयात्रा भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर से शुरू होकर राजभवन तक पहुंची. इस पदयात्रा का नेतृत्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव कर रहे थे. उनके साथ नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, विक्रम उसेंडी, रामविचार नेताम, केदार कश्यप सहित कई नेता मौजूद रहे. इस दौरान भाजपा नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर आदिवासियों के 32% आरक्षण को फिर से बहाल करने का आग्रह किया. साथ ही इस आरक्षण में की गई कटौती के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने की भी मांग की है.
"आरक्षण में की गई कटौती के लिए कांग्रेस सरकार है जिम्मेदार": राज्यपाल से मुलाकात के बाद भाजपा ने एक पत्रकार वार्ता की. आदिवासी आरक्षण में की गई कटौती के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार को भाजपा ने जिम्मेदार ठहराया है. छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद अरुण साव ने भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि "कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के जनजाति समाज के साथ एक बड़ा धोखा किया है. जनजाति आरक्षण कटौती के लिए कांग्रेस सरकार जिम्मेदार है. भाजपा की सरकार ने एकमुश्त 12 फीसदी आदिवासी आरक्षण बढ़ाया और सत्ता में रहते इस व्यवस्था का रक्षण करते हुए आदिवासी समाज का हित संरक्षण किया. कांग्रेस की सरकार ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आदिवासी हितों पर कुठाराघात किया है. जिसके लिए जनजाति समाज उसे कभी माफ नहीं करेगा."
छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने कहा कि "लापरवाही 2019 से शुरु हुई. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि तीन माह में अंतिम सुनवाई हो. लेकिन कांग्रेस सरकार साढ़े तीन साल तक सुनवाई से भागती रही. तारीख पर तारीख लेती रही. जब कोर्ट ने तारीख बढ़ाने से मना कर दिया, तो अंतिम सुनवाई में नए दस्तावेज पेश करने की अनुमति मांगी. सरकार इस मामले में गंभीर नहीं थी और जानबूझकर आदिवासियों के आरक्षण के खिलाफ फैसला दिलवाया गया."
छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद अरुण साव ने बताया कि "इसी प्रकार वर्ष 2012 में राज्यपाल के आदेश से प्रदेश के पांचवे अनुसूची क्षेत्र के जिलों में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की भर्ती में स्थानीय जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. यह व्यवस्था भी 29 सितंबर 2022 को कांग्रेस के कार्यकाल में उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी. इस निर्णय का भी मुख्य कारण प्रदेश सरकार की घोर लापरवाही रही." इस दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने तत्कालीन रमन सरकार से लेकर वर्तमान की भूपेश सरकार तक आरक्षण के मामले को लेकर उठाए गए कदम की जानकारी दी.
कांग्रेस का आरोप, भाजपा सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर नहीं रखा तर्कसंगत पक्ष: दूसरी ओर कांग्रेस ने आरक्षण में की गई कटौती के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है. कांग्रेस ने आदिवासी आरक्षण में कटौती पर भाजपा के पैदल मार्च को घड़ियाली आंसू बताया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि "भारतीय जनता पार्टी के षड़यंत्र और पूर्ववर्ती रमन सरकार के द्वारा जानबूझकर बरती गयी लापरवाही के कारण हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा को घटाकर 58 से 50 फीसदी किया है."
आदिवासी समाज सहित सभी वर्गों को मिले उनका पूरा हक: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि "आदिवासी समाज को उनका हक दिलाने के लिये कांग्रेस पार्टी प्रतिबद्ध है. बिलासपुर हाईकोर्ट फैसले के खिलाफ कांग्रेस सरकार उच्चतम न्यायालय गई है. इसके साथ अन्य संवैधानिक मार्गों को तलाशा जा रहा है. आदिवासी समाज सहित सभी वर्गों को उनका पूरा हक मिले, इसको सुनिश्चित किया जायेगा."
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भाजपा नेताओं से 5 सवाल:
- जब आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 58 करने के खिलाफ अदालत में याचिका लगी, तो रमन सरकार ने कोर्ट को आरक्षण बढ़ाने के तर्कसंगत कारणों को कोर्ट के समक्ष क्यों नहीं रखा?
- आरक्षण बढ़ाने के लिये तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की सिफारिशों को अदालत के समक्ष क्यों नहीं रखा गया?
- तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की सिफारिशों को अदालत में क्यों छुपाया गया?
- रमन सरकार ने आरक्षण के संदर्भ में दो कमेटियां बनाई थी, तो इन कमेटियों के बारे में आरक्षण संबंधी मुकदमे के लिए हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में रमन सरकार ने इसका जिक्र क्यों नहीं किया?
- जब रमन सरकार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत कर रही थी. तो अनुसूचित जाति के आरक्षण में 4 प्रतिशत की कटौती करने के बजाय आरक्षण सीमा को 58 प्रतिशत से 62 क्यों नहीं किया? इससे लोग अदालत नहीं जाते, बढ़ाया गया आरक्षण यथावत् रहता. आज भी देश के अनेक राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण है. रमन सरकार ने जानबूझकर यह गलती किया, ताकि बढ़ा आरक्षण अदालत में रद्द होगा.
आरक्षण के इस मुद्दे पर घिर सकती है कांग्रेस सरकार: फिलहाल प्रदेश में आदिवासी आरक्षण का मुद्दा थमता नजर नहीं आ रहा है. अब देखने वाली बात है कि इस आरक्षण के मुद्दे को लेकर आदिवासी किसकी ओर जाते हैं? आदिवासियों का झुकाव भाजपा की ओर होगा या फिर कांग्रेस की ओर, यह कह पाना अभी मुश्किल है. लेकिन यह जरूर है कि आरक्षण का मुद्दा यदि जल्द समाप्त नहीं हुआ, तो आने वाले समय में कांग्रेस सरकार इस मुद्दे पर घिर सकती है.