रायपुरः राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्य उत्सव के मौके पर विभागों द्वारा अलग-अलग प्रदर्शनी लगाई गई है. कृषि विभाग की प्रदर्शनी के अंतर्गत पशुपालन का स्टाल तैयार बनाया गया है. पशुपालन के अंतर्गत लगाए गए बकरों का स्टाल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहां पर ऐसे नस्ल के बकरों को लाया गया है जो अपने आप में बहुत खास है. वहीं, सबसे अधिक बकरे की कीमत ढाई लाख रुपए है. यहां चंबल से जमुनापारी नस्ल के बकरे, राजस्थान से कोटा नस्ल, मलवा नस्ल के बकरे हैं.
इनके पालक मोहम्मद फैजान ने बताया यह सभी नस्ल खत्म हो रहे हैं. यह वेट-गेन-कैपेसिटी में हाई होते हैं. इन्हें पालना बहुत आसान है. फैजान ने बताया कि यह सभी बकरे एक्सपोर्ट होते हैं. इंडोनेशिया ईटावा एक ब्रीड (breed) बनी है. जमुनापारी और इटावा से मिलकर ही बनी है. यह चीजें एक्सपोर्ट (export) होकर भारत में खत्म हो चुकी हैं. इनकी ओल्ड ब्लडलाइन (old bloodline) खत्म हो चुकी है.
इसके अलावा उनके पास मालवा नस्ल का का बकरा है. यह इंडिया की रिकॉग्नाइज ब्रेड है और यह मध्य प्रदेश के मालवा से है. इसके अलावा उनके पास मक्कीचीना नस्ल का बकरा है. यह जैसलमेर और पाकिस्तान के बॉर्डर में पाए जाते हैं. इनका कद ऊंचा होता है और वेट गैन कैपेसिटी भी हाई होती है.
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करते हैं फार्मिंग का काम
40 इंच से 46 इंच इनकी ऊंचाई होती है. इनका वजन 122 से 130 किलो के बीच होता है. इसके अलावा उनके पास कोटा नस्ल का बकरा है जो राजस्थान के कोटा से उत्पत्ति है. फैजान ने बताया कि वे फार्मिंग और बिल्डिंग का काम करते हैं और जब इनके बच्चे होते हैं तो उन्हें बाहर बेचते हैं. यह व्यवसाय कर कर उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है. फैजान ने बताया कि अच्छे नस्ल के जो बकरे होते हैं, उनकी बिक्री 1 लाख से लेकर शुरू होती है. अभी इनस्टॉल में जमुनापारी नस्ल का बकरा मौजूद है, जिसकी कीमत ढाई लाख रुपए है.
फैजान ने बताया कि इन बकरों की डिमांड बाहर भी बहुत ज्यादा है. इनके गोश्त भी बहुत अच्छे होते हैं. इसके अलावा इस नस्ल की बकरी 5 से 6 लीटर दूध देती है. यह नस्ल विलुप्त होते जा रही है. इसे बचाने का भी वे काम कर रहे हैं और बकरी पालन से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.