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जल जंगल जमीन के लिए नहीं लड़े तो कोई नहीं बचेगा : मेधा पाटकर

भूमि अधिकार आंदोलन में शामिल होने के लिए मेधा पाटकर रायपुर (Medha Patkar made a big statement in Raipur) पहुंची. जहां उन्होंने जल जंगल और जमीन के लिए आवाज बुलंद करने की बात कही.

Medha Patkar made a big statement in Raipur
जल जंगल जमीन के लिए नहीं लड़े तो कोई नहीं बचेगा : मेधा पाटकर
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Published : Jun 29, 2022, 1:08 PM IST

रायपुर : भूमि अधिकार आंदोलन से संबद्ध देश के समस्त जनवादी कार्यकर्ताओं का सम्मलेन राजधानी रायपुर में आयोजित किया (Medha Patkar made a big statement in Raipur) गया. सम्मेलन में किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद कामरेड हन्नान मौला, नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, किसान नेता और पूर्व विधायक डॉ सुनीलम, प्रफुल्ल सामंत राय, उल्का महाजन सहित छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता पूर्व सांसद अरविंद नेताम, आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम भी शामिल हुए.


कई जगहों पर किया जा रहा है आंदोलन: छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन को लेकर जो आंदोलन अलग-अलग स्थानों पर चलाया जा रहा है. उसे एकजुट करने और भूमि अधिकार आंदोलन से जोड़ने के लिए यह एक दिवसीय सम्मलेन राजधानी रायपुर के बैरन बाजार के पास्टोरल हॉल में आयोजित किया गया. जिसमें विभिन्न स्थानों सिलगेर, रावघाट, हसदेव, नई राजधानी, तुमगांव, चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल भिलाई, रायगढ़ सहित प्रदेश में दर्जनों जगहों पर चल रहे जनवादी, लोकतांत्रिक आंदोलन के समर्थन में छत्तीसगढ़ एवं विभिन्न राज्यों के जनवादी संघर्षों से जुड़े लोगों के अलावा दूसरे राज्यों के कार्यकर्त्ता भी शामिल हुए. जिन्हें प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संबोधित किया.

पुराने आंदोलनों को किया याद : नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर (Social Activist Medha Patkar) ने इस मौके पर पूर्व में छत्तीसगढ़ में हुए आंदोलनों को याद करते हुए कहा कि ''जल, जंगल, जमीन की लड़ाई यहाँ सालों से चली आ रही है, मगर हमेशा लोगों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में असंवैधानिक रूप से जमीन हड़पने की कोशिश हो रही है जिसका विरोध समाज का एक व्यापक हिस्सा कर रहा है. जिस विकास मॉडल की बात नरेंद्र मोदी कर रहे हैं उसका स्पष्ट उदाहरण आज देश के हर राज्य में जंगलों के विनाश, खेती की जमीन को बांध बना कर डुबो देने, विस्थापन के मध्यम से लोगों उजाड़ने के रुप में देखने को मिल रहा है. आज राज्य सरकारें एक कागज के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दे रही हैं. विशेष कर छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िसा में आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर हमले तेज हुए है. हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे तो न हम बचेगे और न समाज बचेगा. इस संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना होगा.''


हसदेव अरण्य के आंदोलनकारियों से मिलेंगी मेधा : छत्तीसगढ़ में वर्तमान में हसदेव अरण्य का मुद्दा प्रकाश में (aranya movement in chhattisgarh) हैं, जहां 172 लाख हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य को बचाने के लिए बीते एक दशक से दो जिलों कोरबा और सरगुजा की 30 से ज़्यादा ग्राम सभाएं निरंतर आंदोलनरत हैं. यह इलाका संविधान की पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र के दायरे में आता है. पेसा कानून, 1996 और वनाधिकार कानून 2006 के तहत ग्राम सभाओं को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं. मगर फर्जी ग्राम सभाओं के बूते यहां कोयला खदान शुरू किये जाने की अनुमति देने के आरोप लग रहे हैं. इसी के खिलाफ हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी नागरिक 2 मार्च से परियोजना क्षेत्र में सत्याग्रह कर रहे हैं. इस सत्याग्रह को 100 दिन से ज़्यादा हो रहे हैं. इस बीच दो बार भारी पुलिस बल के साथ रात में ही तकरीबन 600 पेड़ों को कटवाया जा चुका है.

कितने लोग होंगे आंदोलन में शामिल : सम्मेलन में शामिल लगभग 15 राज्यों के जन आंदोलन के कार्यकर्ता अगले दिन 29 जून को हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रहे अनिश्चतकालीन धरने मे शामिल होंगे. सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर और अन्य सभी प्रमुख लोग इस धरने में शामिल होने के बाद इस आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति के संबंध में मार्गदर्शन भी देंगे.

रायपुर : भूमि अधिकार आंदोलन से संबद्ध देश के समस्त जनवादी कार्यकर्ताओं का सम्मलेन राजधानी रायपुर में आयोजित किया (Medha Patkar made a big statement in Raipur) गया. सम्मेलन में किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद कामरेड हन्नान मौला, नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, किसान नेता और पूर्व विधायक डॉ सुनीलम, प्रफुल्ल सामंत राय, उल्का महाजन सहित छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता पूर्व सांसद अरविंद नेताम, आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम भी शामिल हुए.


कई जगहों पर किया जा रहा है आंदोलन: छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन को लेकर जो आंदोलन अलग-अलग स्थानों पर चलाया जा रहा है. उसे एकजुट करने और भूमि अधिकार आंदोलन से जोड़ने के लिए यह एक दिवसीय सम्मलेन राजधानी रायपुर के बैरन बाजार के पास्टोरल हॉल में आयोजित किया गया. जिसमें विभिन्न स्थानों सिलगेर, रावघाट, हसदेव, नई राजधानी, तुमगांव, चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल भिलाई, रायगढ़ सहित प्रदेश में दर्जनों जगहों पर चल रहे जनवादी, लोकतांत्रिक आंदोलन के समर्थन में छत्तीसगढ़ एवं विभिन्न राज्यों के जनवादी संघर्षों से जुड़े लोगों के अलावा दूसरे राज्यों के कार्यकर्त्ता भी शामिल हुए. जिन्हें प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संबोधित किया.

पुराने आंदोलनों को किया याद : नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर (Social Activist Medha Patkar) ने इस मौके पर पूर्व में छत्तीसगढ़ में हुए आंदोलनों को याद करते हुए कहा कि ''जल, जंगल, जमीन की लड़ाई यहाँ सालों से चली आ रही है, मगर हमेशा लोगों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में असंवैधानिक रूप से जमीन हड़पने की कोशिश हो रही है जिसका विरोध समाज का एक व्यापक हिस्सा कर रहा है. जिस विकास मॉडल की बात नरेंद्र मोदी कर रहे हैं उसका स्पष्ट उदाहरण आज देश के हर राज्य में जंगलों के विनाश, खेती की जमीन को बांध बना कर डुबो देने, विस्थापन के मध्यम से लोगों उजाड़ने के रुप में देखने को मिल रहा है. आज राज्य सरकारें एक कागज के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दे रही हैं. विशेष कर छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िसा में आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर हमले तेज हुए है. हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे तो न हम बचेगे और न समाज बचेगा. इस संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना होगा.''


हसदेव अरण्य के आंदोलनकारियों से मिलेंगी मेधा : छत्तीसगढ़ में वर्तमान में हसदेव अरण्य का मुद्दा प्रकाश में (aranya movement in chhattisgarh) हैं, जहां 172 लाख हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य को बचाने के लिए बीते एक दशक से दो जिलों कोरबा और सरगुजा की 30 से ज़्यादा ग्राम सभाएं निरंतर आंदोलनरत हैं. यह इलाका संविधान की पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र के दायरे में आता है. पेसा कानून, 1996 और वनाधिकार कानून 2006 के तहत ग्राम सभाओं को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं. मगर फर्जी ग्राम सभाओं के बूते यहां कोयला खदान शुरू किये जाने की अनुमति देने के आरोप लग रहे हैं. इसी के खिलाफ हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी नागरिक 2 मार्च से परियोजना क्षेत्र में सत्याग्रह कर रहे हैं. इस सत्याग्रह को 100 दिन से ज़्यादा हो रहे हैं. इस बीच दो बार भारी पुलिस बल के साथ रात में ही तकरीबन 600 पेड़ों को कटवाया जा चुका है.

कितने लोग होंगे आंदोलन में शामिल : सम्मेलन में शामिल लगभग 15 राज्यों के जन आंदोलन के कार्यकर्ता अगले दिन 29 जून को हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रहे अनिश्चतकालीन धरने मे शामिल होंगे. सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर और अन्य सभी प्रमुख लोग इस धरने में शामिल होने के बाद इस आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति के संबंध में मार्गदर्शन भी देंगे.

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