रायपुरः ब्लैक डायमंड कहे जाने वाले कोयले पर भारी संकट आ गया है. इसी के साथ देश भर में बिजली संकट गहराने लगा है. कोरोना के दौरान लॉकडाउन (Lockdown) में ढील दिए जाने की वजह से अनगिनत कंपनियां चालू कर दी गईं. उत्पादन शुरू हुआ. इससे अचानक कोयले की खपत (Coal Consumption) बढ़ गई और अब कोयले का शार्टेज (Shortage Of Coal) विकराल समस्या बन कर सामने आ चुका है. यह संकट आने वाले दिनों और अधिक गंभीर हो सकता है. समस्या को लेकर हाल ही में ऊर्जा मंत्रालत की एक महत्वपूर्ण बैठक भी हो चुकी है.
पिछले साल अक्टूबर प्रथम सप्ताह में देश भर में बिजली की डिमांड 159 गीगावाट थी. इस साल 15 गीगावाट बढ़ कर 174 गीगावाट तक पहुंच चुकी है. कोयले की सप्लाई में कमी का साइड इफेक्ट कुछ ऐसा पड़ा कि बिजली संकट की सुगबुगाहट कई राज्यों, सैकड़ों शहरों और गांवों में दिखने लगी है. कोयला कमी से पंजाब के कई थर्मल पावर प्लांट जूझ रहे हैं. पंजाब के सरकारी और प्राइवेट थर्मल प्लांटों (Private Thermal Plants) के पास चंद दिनों के लिए ही कोयला बचा हुआ है. मध्य प्रदेश के पावर प्लांट्स (Power Plants) में 88 हजार मीट्रिक टन अतिरिक्त कोयला फूंक दिया गया. यहां एक यूनिट बिजली बनाने के काम आने वाला 620 ग्राम कोयले की बजाय 768 ग्राम कोयला इस्तेमाल किया गया. जिसमें करोड़ों रुपए कीमती कोयले की बर्बादी हुई.
कैसे बनता है कोयला?
आधुनिक काल में खनिज कोयला एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन (Major Natural Resource) है. किसी भी देश के औद्योगिक विकास में इस खनिज का महत्वपूर्ण स्थान है. लम्बे समय से वैज्ञानिकों के मन में एक प्रश्न उठता रहा है कि कोयला बनता कैसे है? कहा जाता है कि करोड़ों साल पूर्व किसी भी प्राक्रतिक आपदा (Natural Calamity) में दफन पेंड़-पौधे आदि कलान्तर में चल कर कोयला के रूप में तब्दील हो गए. दूसके सिद्धांत में प्रवाहित होने वाले जल द्वारा वनस्पतियां एक स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर ले जाई गईं. फिर किसी नदी, झील या समुद्र में जमा हो गईं, जिनसे धीरे-धीरे कोयला बना. भारत में कोयला दो क्षितिज के चट्टानों में पाया जाता है. इनमें एक है गोंडवाना तथा दूसरा है टर्शियरी. भारत में टर्शियरी युग का कोयला जम्मू-कश्मीर, असम, राजस्थान, तमिलनाडु एवं कच्छ में पाया जाता है. चूंकि यह कोयला बहुत हाल का बना हुआ है.
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कोयले को पाउडर बनाकर किया जाता है फर्नेस
देखा जाय तो भारत जैसे विशाल देश में में बिजली उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा कोयले का इस्तेमाल ही किया जाता है. देश में 70 फीसदी बिजली कोयले से ही तैयार किया जाता है. यहां कुल 135 थर्मल पावर प्लांट्स (Thermal Power Plants) हैं, जहां कोयले से बिजली का उत्पादन किया जाता है. आसान भाषा में कोयले से बिजली उत्पादन को हम ऐसे कह सकते हैं कि बिजली घरों को थर्मल पावर प्लांट के रूप में जाना जाता है. इसमें कोयला पीसने के बाद उसे फर्नेस (Furnace) में जलाया जाता है. जिसके ऊपर बोइलर होता है. यहां पानी भरा रहता है. कोयला जितना अच्छा होगा, उसमें उतनी ज्यादा उष्णता वाली ऊर्जा पैदा होगी. कोयले को पहले पूरी तरह से पाउडर (Powder) बनाया जाता है.
पानी भाप बन कर बहुत ही मोटे पाईप से निकल कर टर्बाइन में जाता है. या फिर फर्नेस में ही मोटे-मोटे पाईप घूमते रहते हैं. जिनमें पानी बहता है. यह मिश्रण (Mix) गर्म हो कर भाप बन जाता है. इन पाईप का एक सिरा टर्बाइन (Turbine) से जुड़ा होता है. भाप की ऊर्जा (Steam Energy) से टर्बाइन घूमती है. टर्बाइन एक बड़ी सी चकरी होती है. इसमें ब्लेड लगे रहते हैं. भाप की वेग से यह जोर से घूमने लगती है. यह जितनी तेज घूमेगी, बिजली के तार में भी उतनी तेजी से बिजली होगी. इसीलिए इस टर्बाइन पर भाप को बहुत ऊंचे दबाव और ऊंचे तापमान से लाया जाता है.