रायपुर: भाद्रपद महीने में कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन गोगा नवमी मनाई जाती है. गोगाजी महाराज को नागों का देवता माना जाता है. इसलिए इन दिन नागों की पूजा की जाती है. माना जाता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्प दंश का खतरा नहीं रहता है. गोगा नवमी मुख्य रूप से राजस्थान में मनाई जाती है. इसके अलावा मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा के कुछ इलाकों में मनाई जाती है.
हिंदू और मुस्लिम करते हैं गोगा महाराज की पूजा: गोगाजी को गोगा, जाहरवीर गोगा, गुग्गा, गोगा पीर, गोगा चौहान, गोगा महाराज के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू और मुस्लिम दोनों ही गोगा जी की पूजा करते हैं. नवमी पर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं.
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गोगादेव जन्म की कथा: गोगाजी की मां बाछल देवी की कोई संतान नहीं थी. संतान के लिए व्याकुल बाछल देवी एक दिन गोगामड़ी में गुरु गोरखनाथ के पास गई. गोरखनाथ ने उन्हें एक फल खाने को दिया और पुत्र होने का आशीर्वाद दिया. गोरखनाथ ने ये भी कहा कि पैदा होने वाला पुत्र वीर और नागों को वश में करने वाला होगा. जिसके बाद बाछल देवी को पुत्र हुआ. उसका नाम गुग्गा रखा गया. बाद में वे ही गोगा देव के नाम से जाना जाने लगा. बताया जाता है कि गोगा जी गोरखनाथ के परम शिष्य थे. उनका नाम लेने मात्र से ही सांप किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है.
गोगादेव की पूजा: गोगा नवमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद गोगा देव की घोड़े पर सवार प्रतिमा घर में रखे. कुंकुम, चावल, फूल, गंगाजल से गोगादेव की पूजा करे. खीर, चूरमा, गुलगुले का भोग लगाएं. चना गोगा जी के घोड़े को चढ़ाएं. गोगाजी की कथा सुने. मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें.