रायपुर: छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने साल 2020 में गोधन न्याय योजना (Godhan Nyay Yojana of Chhattisgarh government ) की शुरुआत की. इस योजना के तहत पशुपालकों से गोबर खरीदा जाता है. सरकार का दावा है कि इस योजना से ना सिर्फ पशुपालकों को आय हो रही है बल्कि इससे कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. ETV भारत की टीम सरकार के इसी दावे की सच्चाई जानने कई गौठानों और खरीदी केंद्रों में पहुंची. जहां हर एक प्रक्रिया का जायजा लिया. इस दौरान कई ग्रामीणों और पशुपालकों से भी बात की.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद भूपेश बघेल ने अंचलों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना (Narva Garva Ghurva Bari Scheme) की शुरुआत की. इस योजना के तहत गोधन न्याय योजना शुरू की गई. जिसके अंतर्गत किसानों और ग्रामीणों से 2 रुपये किलो में गोबर की खरीदी की जाती है. पहले ग्रामीण गोबर से या तो कंडे बनाते थे या फिर खाद बनाकर बेचते थे. लेकिन अब गोबर बेचने से उन्हें हर रोज इसकी कीमत मिल रही है.
'पहले कंडे बनाकर बेचते थे'
पाटन की रहने वाली गीता पटेल ने घर में मवेशी पालकर रखा हुआ है. सुबह से ही गीता पटेल अपने पाले हुए गायों के गोबर को एक टोकनी नुमा जिसे छत्तीसगढ़ी में झंहुआ कहते हैं. उसमें इकट्ठा करती है. फिर उसे अपने सिर पर रखकर गोबर खरीदी केंद्र के लिए निकल पड़ती है. जहां पहुंचने के बाद गोबर को इलेक्ट्रॉनिक तोल में वजन किया जाता है. गोबर बेचने के लिए शासन ने एक कार्ड बना कर दिया हुआ है. जिसमें गोबर के वजन की एंट्री की जाती है. इसी गोबर के वजन के आधार पर हर महीने संबंधित ग्रामीण के खाते में राशि जमा करा दी जाती है. ना सिर्फ गीता बल्कि आरंग के संडी गांव की रहने वाली सुमित्रा यादव का भी कहना है कि पहले वो या तो कंडे बनाकर बेचती थी या फिर खाद बनाकर बाड़ियों में देती थी. लेकिन अब सरकार गोबर खरीद रही है. जिससे हर महीने गोबर के पैसे उनके खाते में आ जाते हैं.
'हर रोज 40 से 45 किलो गोबर बिक रहा'
रायपुर के गोकुल नगर के रहने वाले मवेशी पालक रामलाल का कहना है कि उनके पास से 15 से 16 मवेशी है. वे दादा-परदादा के समय से मवेशी पालन का काम करते आ रहे हैं. परिवार के लोग सब लोग मिलकर गोबर के कंडे बनाकर बेचते थे. या फिर खाद बनाने के बाद बाड़ी वाले ले जाते थे. लेकिन अब सरकार की तरफ से दो रुपए किलो में गोबर खरीदी की जा रही है. जिससे घर में जितने मवेशियों से गोबर निकलता है उसे गोबर खरीदी केंद्र में बेच देते हैं. रामलाल ने बताया कि हर रोज 40 से 45 किलो गोबर बेच रहे हैं.
'पहले ट्रॉली के 400 मिलते थे अब 4000 रुपये मिल रहे'
गोकुल नगर के ही रहने वाले इशांत का कहना है कि उनके पास 70 से 80 मवेशी है. हर रोज 700 से 800 किलो गोबर निकलता है. लेकिन गौठानों में 300 से 400 किलो गोबर ही लिया जाता है. उन्होंने बताया कि इलाके में आसपास कई डेयरी है.जिससे गोबर खरीदने की मात्रा की लिमिट तय की गई है. हर रोज वे गोबर इकट्ठा करते हैं और दूसरे दिन ले जाकर गोबर खरीदी केंद्रों में बेचते हैं. इशांत का कहना है कि पहले एक ट्रॉली 400 रुपये में बेचा करते थे. लेकिन अब सिर्फ 10 बाल्टी के ही 200 रुपये मिल जाते हैं. जिससे इस समय एक ट्रॉली करीब 4000 रुपये पड़ रही है.
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गोबर इकट्ठा करके उसे बेचने तक की प्रक्रिया
ग्रामीणों से खरीदे गए गोबर को गौठान में पहुंचाने की भी व्यवस्था सरकार ने कर रखी है. इसके लिए गोबर को एक गाड़ी में रखा जाता है. जहां से गाड़ी उस गौठान में पहुंचती है. जहां पर महिला स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के काम में जुटी हुई है. समूह से जुड़ी इन महिलाएं को खाद बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है. गोबर से खाद बनाने के लिए पहले इस गोबर को प्लास्टिक के टैंक में रखकर सुखाया जाता है. इसके बाद इसमें केंचुए मिलाए जाते हैं. 95 दिनों बाद गोबर खाद में बदल जाता है. इस खाद को छानकर वर्मी कंपोस्ट खाद की बोरियों में पैक किया जाता है. जिसकी कीमत बाजार में काफी अच्छी मिलती है. इस तरह जो गोबर कभी गांव की गलियों में सड़कों में गंदगी के रूप में बिखरा रहता था. आज सीधे गौठान पहुंच रहा है. पशुपालकों को तो लाभ मिल ही रहा है. गौठानों से जुड़ी प्रदेशभर की हजारों महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है.
शहर के गौ पालकों को नहीं मिल रहा लाभ
छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से संचालित हो रही गोधन योजना की तारीफ प्रदेश के साथ ही देशभर में हो रही है. लेकिन इस व्यवस्था की खामियों को लेकर भी कई इलाकों में ग्रामीणों में नाराजगी है. इसके साथ ही शहरों के आसपास गौठानों में खरीदी केंद्र ना होने की वजह से शहर के गौ पालक इसका लाभ कम ही उठा पा रहे हैं. कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित गौठानों में गोबर खरीदी का संचालन सुचारू रूप से नहीं होने की बात भी ग्रामीण कर रहे हैं. ऐसे में व्यवस्था को और दुरुस्त करने की जरूरत है. ताकि पूरे प्रदेश के गौपालक इस योजना का लाभ उठा सके.
50 लाख टन गोबर की हुई बिक्री
गोधन न्याय योजना शुरू करने से अब तक छत्तीसगढ़ सरकार 100 करोड़ रुपये का गोबर खरीद चुकी हैं. गोबर की मात्रा की बात करें तो 50 लाख टन गोबर किसानों और गौशालाओं से खरीदा जा चुका है. इस योजना के तहत पहले चरण में राज्य के 2240 गौशालाओं को जोड़ा जा रहा है. उसके बाद 2800 गौशालाओं का निर्माण होने के बाद दूसरे चरण में गोबर की खरीदी की जाएगी.
गोधन न्याय योजना अंतर्गत स्व सहायता समूह को 1 करोड़ 40 लाख रुपये, गौठान समितियों को 2 करोड़ 18 लाख रुपये, स्व सहायता समूह को कुल 21 करोड़ 42 लाख रुपये और गौठान समितियों को 32 करोड़ 94 लाख रुपये की राशि दी जा चुकी है. गोबर खरीदी के बदले पशु पालकों, संग्राहकों, स्व सहायता समूह और गौठान समितियों को 5 करोड़ 33 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया गया है.
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गोधन न्याय योजना की कब हुई शुरुआत
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में 20 जुलाई 2020 से छत्तीसगढ़ में गोबर को गोधन बनाने की दिशा में कदम उठाते हुये गोधन न्याय योजना लागू की गई है. इस योजना के तहत पशुपालकों से गोबर खरीदी करके गौठानों में वर्मी कंपोस्ट और दूसरे उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है.
गौठानों के जरिए योजना का संचालन
छत्तीसगढ़ में गोधन न्याय योजना का संचालन सुराजी गांव योजना के तहत गांव-गांव में निर्मित गौठानों के जरिए किया जा रहा है. गौठानों में पशुओं के चारे और स्वास्थ्य की देखभाल के साथ-साथ रोजगारोन्मुखी गतिविधियां भी संचालित की जा रही हैं. इन्हीं गौठानों में गोधन न्याय योजना के तहत वर्मी कंपोस्ट टंकियां का निर्माण किया गया है. जिनमें स्व सहायता समूहों की महिलाएं जैविक खाद का निर्माण कर रही हैं.
छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना के लिए दस्तावेज (Documents for Chhattisgarh Godhan Nyay Yojana)
आवेदक छत्तीसगढ़ का स्थायी निवासी होना चाहिए
छोटे और मध्यम पशुपालक ही योजना के पात्र
बड़े जमीदारों व्यापारियों को योजना का लाभ नहीं
गोबर खरीदी कार्ड के लिए आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र जरूरी