रायपुर: छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार बोरे बासी उत्सव के बाद गेड़ी नृत्य का प्रदेशव्यापी आयोजन करने जा रही है. 28 जुलाई हरेली तिहार के दिन स्कूलों में गेड़ी नृत्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी. इसे लेकर तैयारी के निर्देश मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दे दिए हैं. इससे पहले तक सीएम निवास में हरेली तिहार मनाया जाता रहा है. लेकिन इस साल से इस तिहार को प्रदेश स्तर पर पहचान दिलाने स्कूलों में छात्रों के बीच गेड़ी नृत्य और प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है. इसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करना और इसे आगे बढ़ाना है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से छत्तीसगढ़ की परंपराओं, संस्कृति और लोककला को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है. भूपेश सरकार बनने के बाद हरेली पर शासकीय छुट्टी घोषित की गई थी. Gedi dance competition will be organized in schools
छत्तीसगढ़िया परंपरा में खास हरेली तिहार 2022
हरेली तिहार का महत्व: श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली तिहार मनाया जाता है. इस दिन को देव पितृ कार्य अमावस्या, दर्श अमावस्या, हरेली अमावस्या और चितलागी अमावस्या भी कहा जाता है. हरेली त्योहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला और प्रमुख त्योहार माना गया है. हरीतिमा हरियाली और प्रकृति प्रेम के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है. पशुधन, कृषि उपकरण और गेड़ी इस त्योहार की खासियत है. कुशावर्त की भूमि में प्रकृति के स्वागत के लिए इस शुभ पर्व को समाज के हर वर्ग के लोग उमंग, उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं. इस दिन कुलदेवता और इष्ट देवता को याद कर पूजन किया जाता है. अन्नदाता अपने बैलों और हल के साथ खेती के विभिन्न औजारों फावड़ा, कुदारी, नांगर, गैतिकी पूजा करते हैं. औजारों की पूजा कर अच्छी फसल और हरियाली की कामना की जाती है. महिलाएं घर में चावल का चीला बनाती है. (Hareli Tihar in Chhattisgarh )
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हरेली पर गेड़ी खेलने की परंपरा: हरेली तिहार पर हल-बैल की पूजा के साथ गेड़ी खेलने की परंपरा है. हरेली के दिन से गेड़ी चढ़ने की शुरूआत होती है जो भादो में तीजा, पोला तक चलती है. गेड़ी को खिलाड़ी के ऊंचाई के बराबर दो डंडेनुमा लकड़ी से बनाया जाता है. गेड़ी के निचले हिस्से में पैर रखने के लिए रस्सी से लकड़ी के टुकड़े को बांधा जाता है. इसके बाद बच्चे उत्साहपूर्वक गेड़ी चढ़ते हैं. बच्चे बिना चप्पल के गेड़ी पर चढ़ते हैं और डांस करते हैं. कई जगह गेड़ी दौड़ का आयोजन किया जाता है. बस्तर के आदिवासी गेड़ी नृत्य भी करते हैं.