रायपुर: डीए सहित अपनी 2 सूत्री मांगों को लेकर सोमवार से प्रदेश भर के शासकीय कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल (chhattisgarh government officers employees on indefinite strike) पर चले गए. लेकिन इस बीच इस आंदोलन से कुछ संगठनों ने समर्थन वापस ले लिया, जिसमें से एक लिपिक वर्ग भी शामिल है. इनके द्वारा हड़ताल के 1 दिन पहले ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की गई और हड़ताल से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया गया है. अचानक से लिपिक वर्ग के द्वारा हड़ताल से समर्थन वापस लेने के मामले ने दूसरे कर्मचारी संगठनों को सकते में डाल दिया है. हालांकि शासकीय कर्मचारियों के लिपिक वर्ग के दो संगठन हैं. जिसमें से एक आंदोलन को समर्थन कर रहा है और एक ने आंदोलन से अपना समर्थन वापस ले लिया है.
प्रदेश में है दो लिपिक संघ: जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 2 लिपिक संगठन हैं. जिसमें से पहले संगठन का नाम छत्तीसगढ़ लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ (Clerical union split due to strike)है. जिसके प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह है. इस संगठन के द्वारा कर्मचारियों के अनिश्चितकालीन हड़ताल को समर्थन दिया जा रहा है. वहीं दूसरे संगठन का नाम प्रदेश लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ है. जिसके प्रदेश अध्यक्ष रोहित तिवारी हैं. जिन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद हड़ताल से समर्थन वापस ले लिया था.
सीएम की वेतन सुधार की घोषणा के बाद हड़ताल से समर्थन लिया वापस: जिस संगठन के द्वारा हड़ताल से समर्थन वापस लिया गया था, उसके प्रदेश अध्यक्ष रोहित तिवारी का कहना है कि "उनके प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हुई थी. इस दौरान ने मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया था कि कर्मचारियों की वेतनमान सुधार की जो घोषणा उनके द्वारा की गई थी, उसे पूरा किया जाएगा. यह घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा 17 फरवरी 2019 को बिलासपुर में की गई थी."
महज 1% डीए न पाए जाने की वजह से हड़ताल पर गए कर्मचारी: रोहित तिवारी का कहना था कि "कर्मचारी संगठन के द्वारा 12% डीए बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है. जब इनके प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, तो उस दौरान कहा कि महज 1% डीए बढ़ा दीजिए. यानी की जो राज्य सरकार ने 6% डीए बढ़ाया है, उसमें 1% बढ़ाते हुए उसे 7% डीए कर दिया जाए. इस संगठन के द्वारा फेडरेशन के लोगों को धोखे में रखा जा रहा है. इस बात की पुष्टि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद कर दी है कि उन्होंने 6% डीए को 7% की जाने की बात कही थी. यहां 12% डीए की बात करते हैं, और वहां 1% बढ़ाए जाने की मांग करते हैं. यही कारण था कि हमने इस अनिश्चितकालीन हड़ताल से अपना समर्थन वापस लिया है. प्रदेश के 95% लिपिक हमारे संगठन से जुड़े हुए हैं."
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कोरोना के कारण अब तक वेतन विसंगतियां नहीं हो सकी दूर: 2019 की घोषणा को अब तक पूरा ना किए जाने के सवाल पर रोहित का कहना था कि "उस समय भूपेश बघेल नए नए मुख्यमंत्री बने थे और उसके बाद 2 साल कोरोना का समय चला. क्योंकि यह बड़ी घोषणा है, इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त भार पड़ेगा. लगभग सालाना 30 करोड़ अधिक भार सरकार पर पड़ेगा. इसके लिए वित्त से राशि निकाली गई है. इस मुद्दे को लेकर बीच-बीच में चर्चा भी हुई, तो मुख्यमंत्री ने कहा कि सारी घोषणाएं पूरी की जाएंगी. इसके बाद संगठन के द्वारा निर्णय लिया गया कि 1% डीए बढ़ाने के लिए पूरे लिपिक संघ को हड़ताल में नहीं उतारेंगे." रोहित का कहना है कि "लगभग 23 से 25 हजार लिपिक प्रदेश में हैं, इसमें मंत्रालय के लिपिक शामिल नहीं हैं."
दूसरे लिपिक संघ के द्वारा लगाया जा रहा आरोप : वहीं दूसरे लिपिक संघ के द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि आप के हड़ताल से समर्थन वापस लेने के बाद आपके संगठन के बहुत से लोगों ने इस्तीफा दे दिया है. इसके जवाब में रोहित ने कहा कि "किसी ने इस्तीफा नहीं दिया है. सिर्फ गरियाबंद से कुछ लोगों के इस्तीफा देने की बात आई है. वहां भी हमारी फोन से चर्चा हुई है और उनको समझाया गया है. मैं गरियाबंद जाने वाला हूं और उन्हें सारी स्थिति स्पष्ट कर दूंगा."
4 साल बाद भी वेतन विसंगति दूर नहीं हुई: जो संगठन हड़ताल का समर्थन कर रहा है, उसके प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह का कहना है कि "समर्थन वापस लेने वाला लिपिक संघ हमसे ही टूटकर बना है. उस लिपिक वर्ग के द्वारा साल 2019 में बिलासपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद यह जानकारी दी गई कि मुख्यमंत्री के द्वारा वेतन विसंगतियों को दूर करने की घोषणा की गई है. लेकिन तब से लेकर अब तक यह घोषणा पूरी नहीं हुई है. जिस वजह से उनके संगठन के लोग टूट कर हमारे साथ आए थे. अपना अस्तित्व बचाने के लिए उन्होंने यह फाउंडेशन ज्वाइन किया. यह किस कूटनीति के तहत आए और मुख्यमंत्री से मिलकर यह बोलते हैं कि वेतन विसंगति पर सहमति बन गई. सहमति अधिकारियों से बनती है या फिर मुख्यमंत्री से बनती है. इनके द्वारा अभी भी लोगों को गुमराह किया जा रहा है.
संजय सिंह ने कहा कि "वेतन विसंगति के मामले में उनके द्वारा 4 साल से छल किया गया था. जिस वजह से इनके लोग टूट रहे थे और उन्हें रोकने के लिए इनके द्वारा इस तरह का कदम उठाया जा रहा है. रविवार को मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद कांकेर, नारायणपुर, जगदलपुर के सारे लोगों ने इस संगठन से सामूहिक रुप से इस्तीफा दे दिया है.