रायपुर : आद्रा नक्षत्र शोभन योग और मिथुन राशि शुक्रवार के शुभ दिन सर्वार्थसिद्धि योग में माता कालरात्रि के स्वरूप की पूजा का विधान है. सातवां दिन माता कालरात्रि (seventh day of navratri)का माना गया है. इस शुभ दिन तांत्रिक तंत्र विद्या अघोर और दक्षिणपंथी साधक माता की विशेष पूजा करते हैं. इस दिन श्मशान में जाकर पूजा करने का विधान है. कालरात्रि के दिन संपूर्ण रात्रि माता की पूजा की जाती है. माता का स्वरूप अपने आप में तेजस्वी, ओजस्वी और भयानक है. माता के हाथ में खड़ग, कटार और अस्त्र-शस्त्र हैं. एक हाथ से वर देने वाली अभय मुद्रा भी है. माता गधे पर सवार होकर आती हैं .
मां कालरात्रि की कैसे करें पूजा : माता के दोनों नथनों से ज्वाला रूपी श्वास निकलती है. कालरात्रि माता ने शुंभ, निशुंभ और तीनों लोक में हाहाकार मचाने वाले रक्तबीज नामक राक्षस का संहार किया था. इसलिए माता कालरात्रि मानी गई है. माता सभी भक्तों की कामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है. इस शुभ दिन मणिपुर चक्र की पूजा की जाती है. तांत्रिक मार्ग के लोग रुद्रयामल की पद्धति को साधते हैं. शुभ दिन अघोर पंथी संपूर्ण रात्रि श्मशान में यज्ञ तंत्र साधना तांत्रिक प्रयोग करते हैं. इस दिन माता का अनुग्रह प्राप्त करते हैं. कालरात्रि माता की सात्विक पूजा भी की जाती है. महामाया काली दुर्गा के मंदिर में सात्विक पूजा (Workship method of Maa Kalratri) की जाती है. यह पूजन भी देर रात्रि से सुबह तक किया जाता है.
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आधी रात को होती है विशेष पूजा : कालरात्रि के दिन पूजन करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है. माता कालरात्रि समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है. माता कालरात्रि की साधना आराधना और व्रत करने पर अभिलाषाए शीघ्र पूर्ण होती है. रक्तबीज नामक राक्षस से तीनों लोक परेशान थे. त्रिदेव भगवान शंकर भी इससे दुखी थे. ऐसे आदताई दुष्ट राक्षस का कालरात्रि माता ने अपने पराक्रम वीरता और सूझबूझ से संहार किया था. तब जाकर तीनों लोक में शांति की स्थापना हुई. माता कालरात्रि माता पार्वती का ही स्वरूप मानी जाती है. इसलिए आज के शुभ दिन एकासना, फलाहारी, निर्जला, निराहार उपवास करने पर शीघ्र ही कामनाएं पूर्ण होती है. शुभ दिन माता को नए कपड़े पहनाए जाते हैं. माता के वीरता के स्वरूप से हमें प्रेरणा लेकर अपने अंदर साहस वीरता पराक्रम के गुणों का संचार करना चाहिए.