रायपुरः भारतीय मूर्ति शिल्प के इतिहास (history of indian sculpture) में ब्रह्मा जी की प्रतिमा प्रायः कल्याण, सुंदर के साथ-साथ अन्य देवी देवताओं के साथ संयुक्त रूप में मिलती है. किंतु छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मठपुरैना में मिली ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी स्वतंत्र प्रतिमा (quadrilateral independent image) भारतीय मूर्ति शिल्प के इतिहास की बड़ी उपलब्धि है.
छत्तीसगढ़ की पहचान शिल्पकला (The art of the craft) से भी है. यहां पर प्राचीन और दुर्लभ मूर्तियां (ancient and rare sculptures) प्रचुर मात्रा में खुदाई के दौरान मिली हुई है. कुछ मूर्तियों को संस्कृति विभाग (culture department) ने सहेज कर रखा हुआ है. कुछ मूर्तियां तालाब या फिर नदी के किनारे देखने को मिलती है. ऐसी ही एक मूर्ति भगवान ब्रह्मा की मिली है और एक दुर्लभ मूर्ति उमा महेश्वर (Uma Maheshwar) की भी रायपुर में देखने को मिली है. उमा महेश की मूर्ति के बारे में बताया जाता है कि सोमवंशी काल की यह मूर्ति है. भगवान ब्रह्मा और उमा महेश्वर की यह मूर्तियां सातवीं से आठवीं शताब्दी की बताई जा रही हैं.
दूधाधारी मंदिर में थीं दोनों मूर्तियां
राजधानी के मठपुरैना में भगवान ब्रह्मा के चतुर्मुख वाली पत्थर की बनी मूर्ति (Chaturmukh stone statue) और उमा महेश्वर की मूर्ति रखी हुई है. इन मूर्तियों के बारे में जब ईटीवी भारत ने मठपुरैना के पूर्व सरपंच मोहनलाल साहू से बात की तो उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान दोनों मूर्ति कहां से और कैसे मिली है. इसकी जानकारी उन्हें नहीं है. लेकिन उन्होंने बताया कि दोनों ही मूर्तियां राजधानी के दूधाधारी मंदिर (Dudhadhari Temple) में रखा हुआ था. जिसे बाद में मठपुरैना के डबरी तालाब के पास स्थित शिव-मंदिर (Shiva Temple) में रखा गया है.
सृष्टि के निर्माता सभी देवी-देवता के स्वामी ब्रह्मा त्रिमूर्ति के अंतर्गत सर्व प्रथम स्थान प्राप्त है. वैदिक साहित्य में सृष्टि करने वाले देवता के लिए विश्व मर्मज्ञ ब्रह्मास्पति हिरण्यगर्भ ब्रह्मा और प्रजापति संबोधित है. ऋग्वेद में इसे परब्रह्मा के रूप में स्वीकार किया गया है. इसी प्रकार उपनिषद और ब्राह्मण साहित्य (brahmin literature) में प्रजापति प्रमुख देव के रूप में स्वीकार किए जाते हैं. और उनकी उत्पत्ति सभी देवों के पूर्व बतलाई गई है. ब्रह्मा पुराण (Brahma Purana) ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता पालन करने वाला तथा संहार करने वाला मानता है. वैष्णो पुराणों में प्राप्त ब्रह्मा के प्रसंग इस बात को स्पष्ट करते हैं कि उनका जन्म नारायण की नाभि से हुआ है. शेषशायी विष्णु के नाभि से स्वयं ही सब वेदों को जानने वाले साक्षात देव मूर्ति ब्रह्मा प्रकट हुए. अपने आप ही उत्पन्न होने के कारण वे स्वयंभू कहलाए.
इतिहासकार और पुरातत्वविद हेमू यदु बताते हैं कि विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में ब्रह्मा के स्वरूप संबंधी प्रसंग प्राप्त होते हैं. बृहतसंहिता में ब्रह्मा को कमलासन पर स्थित कमंडल लिए हुए, 2 भुजा और चार मुख वाला बताया है. पुराणों में दो भुजाओं के स्थान पर उन्हें चार भुजाओं वाला बताया गया है और हाथ में धारण किए दंड कमंडल (Dand Kamandal) के साथ अक्षमाला वेदकुश अश्वस्थली आदि उपकरणों की वृद्धि हो गई. बात अगर वैष्णव पुराण (Vaishnava Purana) की की जाए तो वैष्णव पुराण में ब्रह्मा कमंडल अक्षमाला धारण किए हुए हैं और उनकी चारभुजा बताए गए हैं. ब्रह्मा का चतुर्मुख रूप ब्रह्मा का हंस वाहन रूप ब्रह्मा का स्थारूढ़ रूप ब्रह्मा का कमलासन और ब्रह्मा का प्रजापति रूप बताए गए हैं.
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काफी लोकप्रिय है शिव और पार्वती की प्रतिमा
भारतीय कला में शिव और पार्वती का अंकन अत्यंत लोकप्रिय रहा है. इस प्रकार की प्रतिमाओं को उमा महेश्वर के नाम से संबोधित किया जाता है. इस रूप में शिव पार्वती के साथ प्रदर्शित किए जाते हैं. शिव के सिर, जटा मुकुट से शोभित और 2 भुजा रूप होती है. छत्तीसगढ़ के अनेक क्षेत्र में उमा महेश्वर की प्रतिमा प्राप्त होती है. जिसमें मल्लार में जाताकेश्वर मंदिर (Jatakeshwar Temple) के निकट उमा महेश्वर की प्रतिमा और अड़भार रतनपुर में उमा महेश्वर की प्रतिमा राजिम के मंदिर में उमा महेश्वर की प्रतिमा मिलती है किंतु दुर्ग जिले में स्थित सरदा के शिव मंदिर में उमा महेश्वर की प्रतिमा में पार्वती-शिव की दाहिने जांघ पर बैठी हुई प्रदर्शित हैं जो इस क्षेत्र की दुर्लभ प्रतिमा कही जा सकती है. रायपुर के संग्रहालय (Museums of Raipur) में उमा महेश्वर की 17 प्रतिमाएं संरक्षित हैं.