कोरबाः कोयला उद्योग में लगे श्रमिक ने कहा है कि कोयला उत्पादन में कमी से कोल इंडिया लिमिटेड नहीं पिछड़ी है. अचानक डिमांड बढ़ने और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बदले समीकरणों से पैदा हुए हालात से समस्या सामने आया है. हाल-फिलहाल में सरप्लस राज्य छत्तीसगढ़ के साथ ही देश भर के पावर प्लांट के क्रिटिकल जोन में चले जाने की खबरें खूब सुर्खियों में रहीं.
कोयले की कमी का कारण विद्युत उत्पादन में गिरावट और पावर प्लांट का संचालन बंद होने जैसी खबरें सामने आईं, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कोयला उपलब्ध कराने को कहा तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी एसईसीएल के सीएमडी के साथ बैठक में पर्याप्त कोयला उपलब्ध कराए जाने की बातें कहीं.
श्रमिक नेताओं का मत अलग
इस बीच कोयला उद्योग में लगे जिन श्रमिकों और उनके बीच रहने वाले उनके मुद्दों को उठाते रहने वाले श्रमिक नेताओं से बात करने पर इस मामले में उनका मत बिल्कुल अलग है. श्रमिक नेता मानते हैं कि कोल इंडिया लिमिटेड ने कभी भी कोयले के उत्पादन में कमी नहीं की है. बल्कि इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में अधिक उत्पादन का वादा कोल इंडिया लिमिटेड(CIL) ने भारत सरकार से किया है. कोयले की कमी जैसी बातें हैं सिर्फ इसलिए पैदा हुईं, क्योंकि कोरोना के बाद सभी इंडस्ट्रीज पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. CIL ने इस वर्ष 650 मिलियन टन उत्पादन का सरकार से वादा किया है. वैसे तो कोल इंडिया ने अपने भविष्य के विजन प्लान में वर्ष 2023 तक अपने कोयला उत्पादन को बढ़ाकर 1 बिलियन टन का लक्ष्य तय किया है. जबकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकार ने CIL को 740 मिलियन टन कोयला उत्पादन करने का लक्ष्य दिया था.
जिसके विरुद्ध कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन ने सरकार को यह कमिटमेंट किया है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में 650 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया जाएगा. इसका लक्ष्य सभी अनुषांगिक कंपनियों को दे दिए गए हैं. पिछले 4 वर्षों की बात की जाए तो कोल इंडिया लिमिटेड का कुल औसत उत्पादन 600 मिलियन रहा है. जबकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में इससे 50 मिलियन अधिक उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है. इस लिहाज से बीते वर्ष की तुलना में कोल इंडिया लिमिटेड का प्रदर्शन इस वर्ष बेहतर होगा. कोल इंडिया की कुल 8 कंपनियों में से एसईसीएल सबसे बड़ी कंपनी है.
अफसरों ने लगया एड़ी-चोटी का जोर
इस टारगेट को पूरा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एसईसीएल की होगी. मौजूदा वित्तीय वर्ष में एसईसीएल ने 172 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य तय किया है. इस लक्ष्य का 80 फ़ीसदी कोयला कोरबा जिले की खदानें दीपका, कुसमुंडा और गेवरा से ही उत्पादित होगा. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अब एसईसीएल को प्रतिदिन लगभग 13 मिलियन टन कोयले का उत्खनन करना होगा. जोकि फिलहाल महज 8 मिलियन टन के आसपास है. हालांकि अफसर पूरा जोर लगा रहे हैं, कोयला मंत्री के दौरे के बाद हालात बदले भी हैं. कोयला उद्योग में लगे श्रमिकों और श्रमिक नेताओं की मानें तो कोयला उत्पादन में कहीं भी कोई दिक्कत नहीं आई है. यदि कहीं दिक्कत है तो वह इंडस्ट्रीज द्वारा बिजली की डिमांड में बढ़ोतरी के कारण हुई है.
कोरोना काल के बाद अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए वर्तमान में सभी उद्योग फिर चाहे वह स्टील, अल्मुनियम या अन्य तरह के छोटे उद्योग हों, सभी पूरी क्षमता से कार्य कर रहे हैं. इसके कारण बिजली की डिमांड में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. बिजली की डिमांड बढ़ने का मतलब यह होगा कि पावर प्लांट को अधिक मात्रा में कोयला चाहिए होगा. जिससे कि अधिक बिजली का उत्पादन हो सके. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जो कोयला 80 डॉलर प्रति टन के हिसाब से मिलता था, अब वह 280 के करीब पहुंच चुका है. इसके कारण निजी कंपनियों ने विदेशों से कोयला आयात करना बंद कर दिया.
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करार के अनुसार उपलब्ध कराया जाएगा कोयला
इसका भार भी कोल इंडिया लिमिटेड पर पड़ा है. लेकिन कोल इंडिया लिमिटेड ने साफ तौर पर कहा कि पूर्व से जिन कंपनियों को कोयला देने का करार है, उन्हें पहले कोयला उपलब्ध कराया जाएगा. नए खरीदारों को कोयला बाद में प्रदान किया जाएगा. इस वजह से कोयला संकट जैसी परिस्थितियां निर्मित हुईं. एक हफ्ते पहले की तुलनात्मक स्थिति में वर्तमान में बालकों के पास 7, एनटीपीसी कोरबा के पास 2 एनटीपीसी सीपत के पास 10, डीएसपीएम के पास 10, एचटीपीपी के पास 5, मड़वा के पास 11, भिलाई डीपीएस के पास 1, अकलतरा टीपीएस के पास 5, लारा के पास 2, लैंको के पास 13 दिन के कोयले का स्टॉक है. कोयला मंत्री के दौरे के बाद कोयले के स्टॉक में कुछ बढ़ोतरी जरूर आई है लेकिन अब भी जितना चाहिए, उतना कोयला संयंत्रों के पास मौजूद नहीं है.
इसे और भी बढ़ाए जाने की जरूरत है. नियमतः पावर प्लांट के पास कम से कम 15 दिनों के कोयले का स्टॉक जरूर होना चाहिए. राज्य के विद्युत संयंत्रों से 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के थर्मल पावर प्रोजेक्ट के कुल क्षमता 2840 मेगावाट है. बीते कुछ दिनों पहले तक उत्पादन में काफी गिरावट आ गई थी, लेकिन अब वर्तमान स्थिति की बात करें तो इनसे 2200 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. जबकि पीक समय मे प्रदेश में बिजली की डिमांड 3500 से 4000 मेगावाट के मध्य पहुंच रही है.