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केंद्र सरकार के विरोध में उतरे कोरबा के मजदूर संगठन, कोल इंडिया का काम प्रभावित - मजदूर विरोधी नीति के खिलाफ मजदूर

कोरबा के मजदूर संगठन केंद्र सरकार की मजदूर नीतियों के खिलाफ हड़ताल पर उतर आए हैं. हड़ताल से कोल इंडिया की कोयला खदान में काम बुरी तरह से प्रभावित है.

Labor organizations of Korba strike against the central government
कोरबा के मजदूर संगठन
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Published : Nov 26, 2020, 1:06 PM IST

Updated : Nov 26, 2020, 1:42 PM IST

कोरबा: देश के 10 श्रम संगठनों ने केंद्र सरकार की जनविरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है. महीनों की तैयारी के बाद 26 नवंबर को कोयला उद्योग में एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल किया गया है. हड़ताल से कोल इंडिया की कोयला खदान में काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोरबा में भी हड़ताल की शुरुआत हो चुकी है. हालांकि हड़ताल का शत प्रतिशत असर खदानों में नहीं दिख रहा है. बावजूद इसके 80 से 90 फीसदी काम ठप है.

कोरबा के मजदूर संगठन का प्रदर्शन

पढ़ें- केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में श्रमिक संगठनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल शुरू

देशव्यापी हड़ताल में एटक, इंटक सीटू और एचएमएस सहित सभी प्रमुख श्रमिक संगठन शामिल हैं. सभी के श्रमिक नेता खदानों के समक्ष उपस्थित होकर मजदूरों को काम पर जाने से रोक रहे हैं. कई मजदूर ऐसे भी हैं जो हो श्रमिक नेताओं से नजर छिपाकर काम पर पहुंच रहे हैं, लेकिन श्रमिक नेताओं का दावा है कि खदानों में काम 90 फीसदी तक ठप पड़ा हुआ है.

मजदूरों के हड़ताल की वजह

केंद्र सरकार के हाल ही में कमर्शियल माइनिंग के निर्णय के साथ ही कई ऐसे संशोधन किए गए जिन्हें श्रमिक संगठन, मजदूर विरोधी बताते हैं. मजदूर नेताओं का सीधे तौर पर आरोप है कि सरकार आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दे रही है. कमर्शियल माइनिंग के जरिये कोल इंडिया के वर्चस्व को समाप्त करना चाहती है. मैन पावर को लगातार घटाया जा रहा है, जिससे कार्य का बोझ बढ़ रहा है. कार्य के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए जाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. मजदूर नेताओं का सबसे बड़ा विरोध इस बात को लेकर भी है कि श्रमिकों के पीएफ फंड को ईपीएफओ में विलय करने संबंधी विधेयक सरकार ने पारित कर दिया है.

50 से 60 मिलियन टन का होगा नुकसान

कोल सेक्टर में एक दिन में कई टन कोयले का उत्पादन होता है. औसतन प्रतिदिन 50 से 60 मिलियन टन कोयले का उत्खनन सभी खदानें मिलकर करती हैं. इस हड़ताल से कोल इंडिया को एक बड़ा नुकसान होगा. उत्पादन 50 से 60 तक मिलियन टन तक प्रभावित हो सकता है. कोरबा की कोयला खदानों से देश के कई राज्यों को कोयला सप्लाई किया जाता है. रेल के जरिए गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों को कोयला निर्यात किया जाता है.

बड़े आंदोलन की भी चेतावनी

जिले में बड़ी तादाद में कोयला खदान स्थापित है. मानिकपुर खदान से लेकर कुसमुंडा, गेवरा सभी छोटे-बड़े खदानों के समक्ष मजदूर नेता व काम पर जाने वाले कामगार एकत्र हुए हैं. जो हड़ताल का समर्थन करने के लिए एकजुट हुए हैं. श्रमिक नेताओं का सीधे तौर पर कहना है कि 26 नवंबर को केवल एक सांकेतिक प्रदर्शन है. यदि सरकार ने मजदूर विरोधी नीतियों को वापस नहीं लिया तो, वह और भी बड़ा आंदोलन करेंगे जो कि अनिश्चितकालीन हो सकता है.

कोरबा: देश के 10 श्रम संगठनों ने केंद्र सरकार की जनविरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है. महीनों की तैयारी के बाद 26 नवंबर को कोयला उद्योग में एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल किया गया है. हड़ताल से कोल इंडिया की कोयला खदान में काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोरबा में भी हड़ताल की शुरुआत हो चुकी है. हालांकि हड़ताल का शत प्रतिशत असर खदानों में नहीं दिख रहा है. बावजूद इसके 80 से 90 फीसदी काम ठप है.

कोरबा के मजदूर संगठन का प्रदर्शन

पढ़ें- केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में श्रमिक संगठनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल शुरू

देशव्यापी हड़ताल में एटक, इंटक सीटू और एचएमएस सहित सभी प्रमुख श्रमिक संगठन शामिल हैं. सभी के श्रमिक नेता खदानों के समक्ष उपस्थित होकर मजदूरों को काम पर जाने से रोक रहे हैं. कई मजदूर ऐसे भी हैं जो हो श्रमिक नेताओं से नजर छिपाकर काम पर पहुंच रहे हैं, लेकिन श्रमिक नेताओं का दावा है कि खदानों में काम 90 फीसदी तक ठप पड़ा हुआ है.

मजदूरों के हड़ताल की वजह

केंद्र सरकार के हाल ही में कमर्शियल माइनिंग के निर्णय के साथ ही कई ऐसे संशोधन किए गए जिन्हें श्रमिक संगठन, मजदूर विरोधी बताते हैं. मजदूर नेताओं का सीधे तौर पर आरोप है कि सरकार आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दे रही है. कमर्शियल माइनिंग के जरिये कोल इंडिया के वर्चस्व को समाप्त करना चाहती है. मैन पावर को लगातार घटाया जा रहा है, जिससे कार्य का बोझ बढ़ रहा है. कार्य के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए जाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. मजदूर नेताओं का सबसे बड़ा विरोध इस बात को लेकर भी है कि श्रमिकों के पीएफ फंड को ईपीएफओ में विलय करने संबंधी विधेयक सरकार ने पारित कर दिया है.

50 से 60 मिलियन टन का होगा नुकसान

कोल सेक्टर में एक दिन में कई टन कोयले का उत्पादन होता है. औसतन प्रतिदिन 50 से 60 मिलियन टन कोयले का उत्खनन सभी खदानें मिलकर करती हैं. इस हड़ताल से कोल इंडिया को एक बड़ा नुकसान होगा. उत्पादन 50 से 60 तक मिलियन टन तक प्रभावित हो सकता है. कोरबा की कोयला खदानों से देश के कई राज्यों को कोयला सप्लाई किया जाता है. रेल के जरिए गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों को कोयला निर्यात किया जाता है.

बड़े आंदोलन की भी चेतावनी

जिले में बड़ी तादाद में कोयला खदान स्थापित है. मानिकपुर खदान से लेकर कुसमुंडा, गेवरा सभी छोटे-बड़े खदानों के समक्ष मजदूर नेता व काम पर जाने वाले कामगार एकत्र हुए हैं. जो हड़ताल का समर्थन करने के लिए एकजुट हुए हैं. श्रमिक नेताओं का सीधे तौर पर कहना है कि 26 नवंबर को केवल एक सांकेतिक प्रदर्शन है. यदि सरकार ने मजदूर विरोधी नीतियों को वापस नहीं लिया तो, वह और भी बड़ा आंदोलन करेंगे जो कि अनिश्चितकालीन हो सकता है.

Last Updated : Nov 26, 2020, 1:42 PM IST
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