कोरबा: पावर प्लांट से निकली राख की पहुंच सिर्फ घर के आंगन तक सीमित नहीं है. यह सांस के जरिए लोगों के फेफड़ों तक भी पहुंच रही है. राख में सिलिका, एल्युमिनियम, आर्सेनिक, मैंगनीज और सीसा जैसी घातक धातु मौजूद होती है. यह इतने बारिक होते हैं कि इन्हें बिना किसी उपकरण के देख पाना संभव नहीं है. यह जहरीला राख लोगों को कई तरह की बीमारी देने में सक्षम है. (Diseases increasing due to ash of power plant in Korba)
प्रगति नगर निवासी बच्ची लाल कहते हैं कि ''मुझे कोरबा में रहते हुए 40 साल बीत चुके हैं. मेरी उमर बीत गई लेकिन कोई बदलाव नहीं हुआ है. खास तौर पर गर्मी के मौसम में जब थोड़ी सी भी हवा चलती है, तब आंगन में दो से तीन मुट्ठी राख जमा हो जाती है. यह प्लांट से निकला हुआ है. जिले में राखड़ डैम के अलावा सड़क पर भी राख फेंका गया है. हवा चलने से चारों तरफ राख उड़ती है. हम गरीब हैं इसे रोक नहीं सकते, इसलिए हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है.''
अब तो साल में 5 बार जाते हैं डॉक्टर के पास: जिले के पर्यावरण एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान का कहना है कि ''जिले में प्रदूषण का स्तर बेहद चिंताजनक है. लोग पहले एक या दो बार ही डॉक्टर के पास जाते थे. अब हमें 5 बार डॉक्टर के पास जाना पड़ता है. प्लांटों से निकलने वाली राख और सड़कों पर चलने वाले भारी वाहन सभी इसके लिए कारण हैं. जिले में एयर वाटर और सॉइल तीनों तरह के प्रदूषण अपने चरम पर हैं. न सिर्फ हवा सांस लेने योग्य नहीं है, बल्कि अब खेत भी बंजर होते जा रहे हैं. हम किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं कि वह केमिकल का उपयोग बंद कर जैविक खेती की ओर बढ़ें ताकि कुछ तो बचा रहे.''
नोटिस जारी कर जिम्मेदारी कर ली पूरी!: स्थानीय पर्यावरण संरक्षण मंडल के जूनियर साइंटिस्ट माणिक चंदेल का कहना है कि ''गर्मियों से पहले हमने प्लांटों को नोटिस जारी किया है ताकि वह राख का उचित तरह से निपटान करें. मापदंडों के मुताबिक पानी का छिड़काव करें, मिट्टी के नीचे दबा कर रखें. हमने नोटिस जारी कर दिया है.'' लेकिन विभाग के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि नहीं की कि इस नोटिस का कितना पालन हो रहा है?
कोरबा के लिए अभिशाप बन रहा कोयला, कोल के साथ प्रदूषण के मामले में भी टॉप पर
कीर्तिमानों की कीमत चुका रही जनता!: कोरबा में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी के अलावा एनटीपीसी, बालको जैसे 12 पावर प्लांट संचालित हैं. जिनसे 6000 मेगावाट से ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है. राज्य की बिजली की जरूरत को पूरा करने के साथ ही कोरबा के पावर प्लांट मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों को बिजली देते हैं. कोरबा में पैदा की गई बिजली से देश के कई राज्य रोशन होते हैं. कोयला आधारित पावर प्लांट से बिजली उत्पादन के दौरान हर महीने कोरबा में 13 लाख मीट्रिक टन राख का भी उत्सर्जन होता है. यह कोरबा से बाहर नहीं जाता. इसका दंश कोरबावासी ही झेलते हैं. राख का ठीक तरह से प्रबंध नहीं किए जाने के कारण जिलेवासी प्रदूषण का दंश झेल रहे हैं.
राख यूटिलाइजेशन में पावर प्लांट फिसड्डी: केंद्र और राज्य की एडवाइजरी के मुताबिक अब पावर प्लांटों से उत्सर्जित फ्लाई ऐश की ईंट बनाने के साथ ही लो लाइन इलाकों में समतलीकरण और अन्य कामों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए. राख के शत-प्रतिशत यूटिलाइजेशन के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन पावर प्लांट इसका 50 फीसदी भाग का भी यूटिलाइज नहीं कर पाते. हालात यह हैं कि राख का परिवहन करने के लिए भी निजी कंपनी को ठेका दिया गया है. यह कंपनियां मनमाने ढंग से राख यहां-वहां डंप करते हैं. बिजली उत्पादन का कीर्तिमान स्थापित करने वाले पावर प्लांट राख यूटिलाइजेशन के मामले में फिसड्डी साबित हो रहे हैं. जिम्मेदार भी नियमों का पालन करवाने की दिशा में गंभीर नहीं हैं.
कोरबा की हवा 28 गुना ज्यादा प्रदूषित: जनवरी 2022 में छत्तीसगढ़ सरकार के ही राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (SHRC) की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक कोरबा की हवा राष्ट्रीय मानक स्तर से 28 गुना ज्यादा प्रदूषित है. कोरबा से हवा के 14 सैंपल लिए गए थे. इसके सैंपल में सिलिका, निकल, सीसा और मैंगनीज जैसे मटेरियल के कण मिले थे. यह कोयला और कोयले से निर्मित राख में पाए जाते हैं. इस तरह के कणों का हवा में पाया जाना बेहद घातक होता है. यह सिलिकोसिस नाम की फेफड़ों की घातक बीमारी के साथ ही कैंसर के लिए भी उपयुक्त वातावरण का निर्माण करते हैं. कोरबा में PM 2.5 का स्तर कुछ स्थानों पर 265 तो कोयलांचल क्षेत्र के इमलीछापर में यह 1600 पाया गया था. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पीएम 2.5 का स्तर 25 ug/mx होना चाहिए.
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दो दशक से लोग इसी हालात में जी रहे : साल 2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक 88 औद्योगिक समूहों में कोरबा गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र में शामिल था. कोरबा को देश का पांचवा सबसे अधिक क्रिटिकली पॉल्यूटेड शहर बताया गया था. इसका कारण यहां पर कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट को माना गया था. तब भी यह कहा गया था कि फ्लाई ऐश का ठीक तरह से प्रबंध नहीं किए जाने के कारण यह स्थिति बनी हुई है. राख यूटिलाइजेशन के मामले में पावर प्लांटों की स्थिति 50% से भी कम है. दो दशक बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं.
केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार किया फिर भी कुछ नहीं बदला: हाल ही में आकांक्षी जिलों की समीक्षा करने केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राज्य मंत्री अश्वनी चौबे कोरबा पहुंचे थे. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वीकार किया कि कोरबा में उनकी मॉर्निंग वॉक पर जाने की हिम्मत नहीं हुई. कोरबा को देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल किया गया है. इसके लिए कुछ उपाय जरूर करेंगे. अधिकारियों की मीटिंग ली है. कड़े निर्देश भी दिए हैं. हालांकि इसका असर कितना हुआ, यह किसी को नहीं पता.