कोरबा: भूलन, द मेज छत्तीसगढ़ की पहली ऐसी फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. भूलन इसलिए भी खास है क्योंकि यह पहली बार होगा जब किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को देशभर में एक साथ 27 मई को रिलीज किया जा रहा है. जिसे 100 से ज्यादा स्क्रीन मिलेंगे. फिल्म से जुड़ी कहानियों और छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में संभावनाओं को लेकर फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. (Manoj Verma director of Bhulan The Maze )
सवाल - भूलन, फिल्म के बारे में बताइए और छत्तीसगढ़ के सिनेमा पर क्या असर होगा, जब इस राष्ट्रीय पुरस्कार मिला?
जवाब - देखिए, छत्तीसगढ़ के लिए तो यह माइलस्टोन है. जब छत्तीसगढ़ की फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, यह पहली बार है, जब किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म को यह पुरस्कार मिला है. जिनको यह नहीं मालूम था कि छत्तीसगढ़ में फिल्में बन रही है, और बन रही है तो किस स्तर की फिल्म बन रही है. अब उनको यह पता चल गया है कि छत्तीसगढ़ में कैसी फिल्में बन रही हैं जोकि राष्ट्रीय पुरस्कारों की हकदार हैं. (chhattisgarhi movie bhulan the Maze )
सवाल - आमतौर पर छत्तीसगढ़ की फिल्में केवल प्रदेश में ही रिलीज होती है , लेकिन इसे आप बड़े स्तर पर रिलीज़ कर रहे हैं, उसके बारे में बताइए?
जवाब - अभी तक छत्तीसगढ़ में जो फिल्में बन रही थी. वह मुख्यधारा की थी. यहां के जो लोग हैं, वह हीरो को बड़े रूप में देखना चाहते हैं. अब तक हमने हीरो को उसी रूप में देखा है. इसलिए उसी तरह के फिल्में यहां पर चली हैं. लेकिन भूलन एक समानांतर सिनेमा है. जो कंटेंट बेस्ड है. इस फिल्म में किसी नायक को हीरो की तरह पेश नहीं किया गया है. बल्कि फिल्म की कहानी नायक है. इसके जो दर्शक वर्ग हैं. वह अलग तरह के हैं, वह पूरे देश में मिलेंगे. इसलिए हम पहली बार इसे देश भर में एक साथ रिलीज़ कर रहे हैं. इसके लिए हमने यूएफओ से बात की, जो वितरण के लिए तैयार हुए. अब हम इसे देशभर में रिलीज करेंगे. जिस योजना के तहत हम चल रहे थे. अब तक उसके तहत काम हुआ है.
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सवाल - इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली और इससे भविष्य में कैसे उम्मीदें हैं?
जवाब - फिल्म की पूरी कहानी तो अभी मैं आपको नहीं बताऊंगा. फिर आप फिल्म नहीं देखेंगे. जो पूरी फिल्म है वह संजीव बख्शी जी के उपन्यास पर आधारित है. (Novel of Sanjeev Bakshi) छत्तीसगढ़ में भूलन कांदा नाम का पौधा होता है. जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि यदि आपका पैर उस पर पड़ जाए. तो आप रास्ता भटक जाते हैं और तब तक वह वापस नहीं आते. जब तक आपको कोई छूकर जगा ना दें. इसी तरह हमारी न्याय व्यवस्था का पैर भी किसी भूलन पर पड़ गया है, और इसे छूकर जगाने की जरूरत है. इसी कॉन्सेप्ट को ले करके हमने यह फिल्म बनाई है. इस फिल्म में गांव वालों की एकता, उनका भोलापन और उनकी एकजुटता को दिखाया गया है. एक गांव वाले को कुछ होता है तो पूरा गांव कैसे उसके लिए एकजुट हो जाता है. जो कि हमें शहर में नहीं देखने को मिलता. न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था पर यह फिल्म बनी है. काफी मनोरंजक ढंग से कहानी कहने का प्रयास किया. कोई ज्ञान देने की कोशिश नहीं है. बस सिंपल तरीके से कहानी को बताया गया है.
सवाल - बॉलीवुड को छोड़कर, हम साउथ के फिल्म इंडस्ट्री को मानते हैं, क्या उस तरह की संभावना छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी देखते हैं?
जवाब - छत्तीसगढ़ी फिल्मों का यदि कंटेंट ऐसा होगा जो सिर्फ राज्य से संबंधित ना होकर व्यापक तौर पर सार्वजनिक हो, तो पूरा देश उसे स्वीकार करेगा. निश्चित तौर पर साउथ क्या हॉलीवुड स्तर पर भी यहां फिल्में बन सकती हैं. लेकिन चूंकि अभी हमारे पास उतने दर्शक नहीं है. हमारा दायरा सीमित है, इसलिए फिलहाल वह स्थिति नहीं है. लेकिन निकट भविष्य में निश्चित तौर पर इस तरह के संभावनाएं छत्तीसगढ़ी सिनेमा भी है.
सवाल - ऑफबीट फिल्म बनाने का हौसला आपको कहां से आया?
जवाब - मैं सबको यह बात बताता हूं. एक बार मैं गोवा में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा लेने गया था. मुझे वहां किसी सज्जन ने सामने वाले से ये कहकर इंट्रोड्यूस कराया कि ये छत्तीसगढ़ से है और फिल्में बनाते हैं. इस पर सामने वाले ने कहा कि क्या छत्तीसगढ़ में भी फिल्में बनती हैं? हमें तो पता ही नहीं है. मैंने उन्हें जवाब दिया कि हां 15-20 साल से छत्तीसगढ़ में फिल्में बन रही है. उन्होंने कहा कि क्या आप लोग फिल्म वहीं बनाकर वहीं खत्म कर देते हो, हमने तो कभी सुना ही नहीं. तो वहां से मुझे प्रेरणा मिली. मैं कंटेंट की तलाश में था. इसी दौरान मेरी मुलाकात संजीव बख्शी जी से हुई. उन्होंने बताया कि "मैं भूलन पर एक उपन्यास लिख रहा हूं. आप देखिए अगर आपको पसंद आए तो". मैंने जब भूलन के बारे में सुना तब यह मुझे अद्भुत कॉन्सेप्ट लगा और तय किया कि इस पर फिल्म बनाएंगे. आज यह सभी के सामने है.